पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२४८

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वा। कल्लोलिनौवल्लभ -कवच २४८ कहोशिनीवझम (सं० पु०) कल्लोलिनीनां नदोनां । कल्हरना (हिं. क्रि०) ईषत् छत वा तेल में तलना, वहम इव । समुद्र, बहर। थोड़े घी या तेल में गर्म कड़ाहीमें किसी चीजको कख (सं० पु०) हारप्रान्त विशेष. 'दरबाजेका एक उलटना-युलटना। किनारा। वास्तु वा भवन निर्माणशिल्पके अनुसार कल होरा-सिन्धु प्रदेशको बलची मुसलमान जाति। यह तीक्ष्यान रहता है। यह लोग चपनको अब्बासका वंशधर बताते हैं। कल्ह (हिं०) कलि देखो। कवक (सं० पु० की.) कवते पाच्छादयति विस्तार- कल्हक (हि. स्त्री.) पशिविशेष, एक चिड़िया। यति वा, कव-प्रच् संज्ञायां कन्। १छवाक, कुकुर- यह कपोतके समान होती है। इसका वर्ण इष्टकको मुत्ता। यह पखादा समझा जाता है। "जगनं ग्टचन भांति लोहित होता है। फिर कण्ठ मष्णवर्ण, चक्षु पलाय कवकानि च।" (मनु) लहसुन, गाजर, प्याज भार खेत और पट रतवर्ण रहते हैं। कुकुरमुत्ता खाना न चाहिये। २ कवन, ग्रास, कल्हण (पु.) राजतरङ्गिणी नामक प्रसिद्ध लुकमा, कौट। संस्क त इतिहासके रचयिता । यह काश्मीरवाले प्रधान कानच (म पु०-क्लो०) कु-धुच। मतन्यचिवन्यञ्चन्यर्दिमा रानमन्त्री चम्पक पभुके पुत्र रहे। राजतरङ्गिपोसे त्यधिक प्रत्यादि। उप ४।२। अथवा के देह वञ्चति विपक्षा- समझते हैं, कि कलहण ४२२४ सप्तर्षि वा लौकि। स्वाणि वश्वयित्वा रक्षति, क-वञ्च-प्रच् : के वातं वञ्चति काब्द और १०७० शक (११८८ ई०)को जीवित १ सवाह, जिरह। इसका संस्कन पर्याय- थे। इनकी गजतरष्टियो भारतवासियोंके पादरका तनुन, वर्म, दंशन, उरछद, कटक, नगर, जागर, बड़ा धन और भारतीय पुरातत्त्वविदोका अमूला वस्तु अजगव, कटक, योग, सन्नाह और कञ्चक है। हैं। पहले साधारण विश्वास करते, कि भारतवासी खणं, रौप्य, ताम्म और लौह कई धातुसे, कवच अपने प्राचीन इतिहास लिखनेको पावश्यक म सम- बनता है। इसको छोड़ काष्ठ, चर्म और वल्कल हारा झते थे। कलहमने यह अपवाद मिटा दिया है। भी कवच प्रस्तुत होता है। उता ट्रष्यों में उत्तरोत्तर इन्होंने महाराज युधिष्ठिरके समकालीन ' गोनन्दसे द्रव्यसे बना कवच अधिक गुपयुक्त है। ऋक्स हिता भारम्भकर अपने समसामयिक सिंहदेवके राज्य काल पढ़नेसे समझ पड़ता है,कि वैदिक कालमें स्वर्ण निर्मित पर्यन्त काश्मीरका इतिहास लिखा। इनको राज. कवच हो चलता था। शरीरका प्रावरक, लघु, दृढ़ तरङ्गिणी पढ़नेसे काश्मीरके प्राचीन राजावों की वंशा और दुर्भद्य कवच साधारण होता है। छिट्रयुक्त, वली, सङ्क्षिप्त जीवनी, राज्यकालको विवरणी और अतिशय भार वा सूक्ष्म और सहजभेद्य कवध निकृष्ट काश्मीर तथा उसके निकटस्थ जनपदको अवस्था है। कवचको खेत, पोत, रक्त और कृष्ण कई प्रकार समझ पड़ती है। रानतरङ्गिणीको रचना-प्रणाली रंगते हैं। अाजकल. युद्दमें प्रायः कवच पहना नहीं भी अधिक कवित्व और शब्दलालित्यसे पूर्ण है। जाता। फिर भी गत युरोपीय युहमें इसकी उप- कलहर, बहर देखो। योगिता प्रदर्शित हुयी थी कलहरना (हि.क्रि.) १ ईषत् तेल वा धृतमें भुनना, २ शरीररक्षाके लिये देवताका एक मन्च। पहले थोड़े घी या तेलसे कड़ाही सिंकना। २ दुःखसे मन्त्रविशेषसे उद्दिष्ट देवताको पूजा कर कवच पढ़ते उठने न पाना, पड़े पड़े चिल्लाना। हैं। फिर भूर्जपत्र पर कवचको लिख और स्वर्ण, कल्हार (म.ली.) कुमुद, बधोला, कोकावेली। रौप्य वा तानसे मढ़ कण्ड पथवा दक्षिण बाडु में धारण करते है। तान्त्रिक मन्त्र 'ई' (हुशार)को • "सीविकऽब्द चत" शककालख-साम्प्रतम् । कवच कहते है। समव्यत्यधिक या सहसपरिवार" (रागतरलियो १६५२) ३ पटक, दमन पापड़ा। ४ गर्दभापत, पाक- Vol. IV. 63 । 1