कलयाणवाचन-काबाट २४. कल्याणवाधन (सं• लो०) कल्याणस्य वाचनं उच्चारणम्, २ मानकर जन्म लेनेवासा, नो अच्छे वक्त पैदा इ-तत्। शास्त्रविहित कर्मसमूहके प्रथम ब्राधणसे हुवा हो। पढ़ाया जानेवासा एक मन्त्र। यजमानको शास्त्र. कल्याणासय (सं०.वि.) कल्याणस्य पालयः, ६-ततः। विहित कसं प्रारम्भ करते समय ॐखः कर्तव्येऽस्मिन् १ मङ्गलका पाश्रय, नेकोका ठिकाना।. (पु.) कर्मणि कल्याणं भवन्तोऽषि वन्तु' मन्त्रसे प्रार्थना करना २ परमेश्वर। चाहिये। इस पर बाण 'ॐ कल्याणम्' मन्त्र तीन कल्याणास्पद (म०वि०.) कल्याणस्य प्रास्पदः, ६-तत् । चार पढ़ता है। फिर उसे निम्नलिखित मन्बसे कल्याण- १ मङ्गलका यात्र, मचाईका घर। (पु.)२ जगदोखर। वाचन करना पड़ता है,- कल्याणिका (सं० स्त्री.).कल्याण संज्ञायां कन्टाप "चों पृथिव्यामुह लायान्तु यत्क्लयाम् पुराहतम् । प्रत इत्वम् । मनःशिला। मनःमिला देखो।. . ऋषिभिः सिहगन्धर्व सत् कल्याण सदास्तु नः" कल्याणिनी (सं. स्त्री०) कल्याणं अस्त्यस्याः, कल्याण: कल्याणवादी (सं० वि०) कल्याणं वदति, कल्याण इनि-डो। १वला। अला देखो। २ कल्याणविशिष्टा वद-णिनि। कल्याणवता, भनाईकी बात कहनेवाला। स्त्री, भली औरत। कल्याणविनोद, कल्याणमट देखो। कल्याणी (सं. नि.) कल्याणमस्यास्ति, कल्याण-इनि । कल्याणवीज (सं.पु.) कल्याणं बीजं यस्य, बहुव्री। कल्याणयुक्ष, नेक, भन्ता। १ मसूरक्ष, मसूरको दालका पेड़। मस र देखो। कल्याणी (सं. स्त्रो.) कलयाण डो। १ माषपणों । (६-तत्) २ मंगलका कारण, भलाईका सबब । २ गामी, गाय। "उपस्थितयं कन्या नाम्नि कीर्तित एव यता" कल्याणशर्मा (पु.) वराहमिहिरकत वृहत् संहि (रण १०० ) ३ गत वृक्ष, राल का पेड़। ४ सर्ज वृक्ष, साके एक टोकाकार। धुनेका पेड़। ५ प्रयागको एक प्रसिद्ध देवी। कल्याणसिंह-बीकानरके एक राजा। यह राजा कलयाणीय (म०वि०) कल्याण ढक्। कन्यापक जीतसिंहके पुत्र थे। १६.३ वत्में कल्याणसिंह योग्य, मङ्गलमय, नेक, भलाई करसकनेवाला। राज्याभिषिक्त हुये। २७ वर्ष इन्होंने राजत्व किया था। करवाण्यादि .(८० पु.) पाणिनि-व्याकरणका एक कल्याणसुन्दरान (को०) राजयमाका एक रस । गण। कलयाण्यादीनामिनाच । पर ४।१।१२६। इसमें कलयाची, .८ तोले मारित पत्रको आमलको, मुस्तक, वृहती, सुभगा, दुभंगा, बन्धकी, अनुष्टि, अनुसृष्टि, जयती, शतमूची, क्षु, विल्वपत्र, अग्निमन्थ, बाला, वासक, वन्नीवदों, ज्येष्ठा, कनिष्ठा, मध्यमा और परस्त्री मब्द कण्ठकारी, श्योणाक, पाटलि तथा बलाके १२१ पल भन्तर्भूत है। ठक् प्रत्ययक पन्तमें उक्त शब्दके नियोय. रसमें पृथक मदन कर गुप्ता समान वटो बनासे यह इनङ प्रादेश होता है। औषध प्रस्तुत होता है। कलयान (हिं.) कलाप देखो। कल्याणाचार (सं० पु.) कल्याणकरः पाचारः, मध्य कचयावाल, धापाल देखो। पदलो। १ मङ्गलकर याचरण, भला चाल चलन । कलयापातक, कदापाल देखो। (नि.) २ मङ्गसकरकार्य करनेवाला, जो अच्छी कलुष ( ली.) मणिवन्धा, कलाई। चाल चलता हो। कम (स.वि.) कलते शब्द न सहाति, कल-प्रच् । कल्याणाचारी (सं० वि०) कल्याणाचार पत्यस्य, वधिर, बहरा, जिसे कानसे सुन न पड़े। कल्याणाचार-इनि। मङ्गलमय पाचारणयुक्त, अच्छी कझट (सं० पु. ) स्पन्दसर्वस्व पोर स्पन्दसूत्र-विवरण चाल चलनेवाला। नामक ग्रन्थक प्रणेता। काश्मीर इनका जन्मस्थान कल्याणाभिजनन (सं• लौ०) कल्याशकरं अभिजननम्, था। पाशात्य पण्डित इन्हें 2.2वें शताब्दके. कर्मधा । १ मङ्गलकर जन्म, नेक पैदायश । (नि.) व्यक्ति मानते हैं। किन्तु हमारी विवेचनामें काट ।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२४६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।