पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२३८

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विशेष। कल्पकतरु-कल्पपादप. २३४ २ कर्चर, ककर। कल्पयति गद्यपद्यादिकमुदभाव्य शेटे अमलतासका पेड़ । ३ केशवप्रणीत एक रचयति । ३ ग्रन्थकर्ता, किताब बनानेवाला । शब्दकोश। ४ संस्कार, रस्म। (त्रि.) ५ रचक, बनानेवाला। कल्पद्रुम (सं० पु०) कल्पयामी दुमयोति, कर्मधा। ६ भारोपक, लगानेवाला। १ कल्पवृक्ष। २ छोटा पमलतास। ३ स्मृतिशास्त्र कल्पतर देखी। कल्पकतरु. ४ तन्त्रशास्त्र विशेष कल्पकार (सं० पु.) कल्प कल्पसूत्रं करोति, कल्प कल्पन (सं० लो० ) कप भावे ल्युट् । १ छेदन, काट छांट। २ रचना, वनाव। ३ विधान, ठहराव । कापण्। १ कल्पस्वकारक प्राखलायनादि। कल्प वैशं करोति। २ नायित, नायो। (नि.) ३ वैश ४ धारोप, लगाव। ५ प्रकृत विषयका उद्धावन, कारक, रूप बनानेवाला। ४ छेदक, छेदनेवाला। अन्दाज कल्पना (सं० स्त्री०) कप्-णिच् भावे यु-टाम् । कल्पकारक (सं०पु०) कल्प-क-खु ल । वलकार देखी। १ इस्तिसज्जा, सवारीके लिये हाथोकी सजावट । कल्पक्षय (सं०पु०) कल्पस्य सृष्टः क्षयो यन, बहुव्री। ३पनुमान, अन्दाज। ४ रचना, बनावट। ५ पर्था- प्रलय, कयामत, संसारका नाश। पत्तिरूप प्रमाण विशेष, एक सुबूत। इसमें होनेवाली "कलवरी पुनस्ते तु प्रविशन्ति परं पदम् ।" (विणपुराण) बातीका हवाला रहता है। ६ नतन विषयका उद्भा- कल्पगा (सं० स्त्री०) गङ्गा नदी। वन, नयी बातका निकास। काव्य, उपन्यास और कल्पतरु (सं० पु०) कल्पथासौ तस्येति. कर्मधा. चित्र प्रादि कल्पनासे ही बनते हैं। अथवा कल्पस्य तकः राहोः शिरः इत्यादिवत्, ६-तत्। कल्पनाकाल (म.नि.) कल्पनाया: काल कालो १ देवलोकका वृक्षविशेष,। विहितका एक पेड़। यस्य, बहुव्री। सङ्कल्पको भांति पाशु विनाशी, मन- -यह वृक्ष मांगनेसे सकलपदार्थ देता है। सूवेको तरह जल्द बिगड़ जानेवाला। यह शब्द "निगमकल्पतरोगलितं फलम्।" (मागवत ।।१।३) पस्थिक पदार्थका विशेषण है। २ स्पतिशास्त्रविशेष। ३ शारीरकसूत्रमायपर कल्पनाथ (हिं. पु.) वृक्षविशेष, एक पेड़। भामती टीकाको एक व्याख्या। ४ उदारपुरुष, सखी, (Justicia paniciculata ) -मुंहमांगी चीज देनेवाला। ५क्रामकक्ष, सुपारीको कल्पनाशयि (संस्त्री०) कल्पनाया: नवोद्भावनस्य पेड़। ६ रसविशेष, एक कुश्ता। रस (पारद ), भक्तिः, ६-तत्। नूतन विषयके उद्धावनको शक्ति, गन्ध (गम्भक), विष (वत्सनाभ) और ताम्रको नयी बात निकालने की ताकत । समभाग पीस क्रमशः पांच दिन तक पांच बार गोरो- कल्पनी (सं० स्त्रो०) कल्पयति केशादीन छिनत्ति चनाको भावना लगती हैं। पन्तको निर्गुण्डीके भनया, कप च्छेदने युट-डीप। कतनी, कैंची। रसमें सात दिन घोट लेने और फिर बाद कके रसको कल्पनीय (स० वि०) कल्पनाय हितम, कल्पन- तीन भावना देनेसे यह प्रौषध प्रस्तुत होता है। इसकी ठक्। १ कल्पनाके उपयोगी, अन्दाजके लायक । -वटी सर्षप समान बना छायामें सुखाते हैं। जीर्ण ज्वर २ छेद्य, काटने का विन। ३. विधानके उपयुक्त, और विषमज्वरमें २१ वटी खिलायी जाती हैं। इसके ठहराने लायक। ४ भारोपणके उपयोगी, लगाने सेवन समय रोगीको कजुची पिप्पलीका उष्ण जल का बिल। पिलाना, शर्करा तथा दधि खिलाना और नहखाना कल्पपादप (सं० पु.) कल्पयति सर्वकामं सम्माद- चाहिये। (भषयरवावली) यति कल्पः, कल्पयासौ पादपति, कर्मधारकल्प- कल्पगु (सं. पु.) कल्पयासी दुश्चेति, कर्मधा० । तरू, खगका एक पेड़। "मयां न चमे ऽपितकरूपपादपः।" १ कत्यसक, स्वर्गका एक पेड़। २ इखारग्वध वृक्ष, {षध ।।१५) २ विभीतक, बहडेका पेड़। ।