पद्मा और कल्कि-कल्किपुराण २३५ स्वर्गगमनका संवाद सुनाया था। वह सब शोकात गमन, पद्माके उद्देश, कल्कि एवं शुकका सिंहनगमन, 'हुये। कल्कि राजत्व छोड़ दोनों पबियोंके साथ सानके छल सरोवरमें पद्माका अभिसार, पद्माशा जल हिमालय प्रदेशमें गङ्गा किनारे पहुंचे थे। वहां कौतूहल, कलकि तथा पनाका मिलन, ट्रथका उन्होंने अपने आपको स्मरण किया। फिर चतुभुज संवर्धन, कलकि पद्मा-विवाह, कल्किके दर्शनसे स्त्रोत्व मूर्ति में परिवर्तित हो वह गोलोक गये । प्राप्त राजाका पुस्वचाभ एवं कल्किस्तव, वर्णाश्रम रमाने पनच में देह छोड़ पतिलोक पाया था। पृथिवी धर्मपर कल्किका उपदेश, राजाका प्रश, अनन्त ‘पर सत्ययुगमा प्रभाव अक्षुस रहा। देवापि और मरु मुनिका आगमन, अनन्त मा पूर्व वृत्तान्त कथन, शिव- राज्य शासन करने लगे। कतिपुराण देखी। का स्तव, पिताके मृत्यु पर अनन्तका मायादर्शन और भागवतमें कल्कि भगवान्का वयोविंश पवतार वैराग्यावलम्बन, अनन्तका मोक्ष, रानावों का प्रत्या- कहा है। (भागवव १।३।२४-२५) गमन, ककि पद्माका शम्भचको प्रस्थान, विश्वकर्मा- जैनियों में भी कतिक अवतारको कथा सुन पड़ती का विधान, मावर्गका वंशवधन, विष्णु यथाका है। वह कहते है-महावीरके निर्वाण पानेके पीछे यज्ञाभिलाष, कल्किका खजनोंके साथ दिग्विजय की प्रति सहन वर्ष कल्कि होता है और वह जैनधर्मके गमन, जिनराजका वध, बोडोंका निग्रह, मायाका विवड मत स्थापन करते हैं। (जैन इरिबंस) अन्तर्धान, वौड-रमपियोंका युद्धोद्योग, अस्त्र देवतादि. कल्किपुराण-एक अतिरिक्त उपपुराण । यह अष्टादश का प्राविर्मात्र, ज्ञानके योगका कयन, मुनियोका उपपुराणोंसे बाहर है। इसमें सोन अंश लगे है। आगमन, कुथोदरीका वृत्तान्त, सपुत्रा कुयोदरीका प्रथम एवं हितोयमें सात सात चौदा और हतीयांश वध,. हरिदारको कल्किका गमन, मुनियों का मकीस सब पैंतीस प्रध्याय है। इनमें क्रमान्वयसे साक्षात्, मरु एवं देवापिका मिलन, उभयके परिचय- शकमार्कण्डेयका संवाद, अधर्मके वंशका कीर्तन, सूत्रसे सूर्यवंश तया चन्द्रवंशका कीर्तन, मरुका राम- कलिका विवरण, पृथिवी तथा देवगणका ब्रह्मचोकको चरितश्रवण, मरु एवं देवापिके साथ कल्किको -गमन, ब्रह्मवाक्यानुसार शम्भलस्थ ब्राह्मण विष्णु यथाके युद्धार्थ गमन, धर्म तथा सत्ययुगका मिलन, कोक रहमें मुमतिके गर्भसे विष्णु एवं उनके अंगभूत तीन विकीकका विनाग, भलाटमें गमन, शय्याको वा ज्येष्ठ सहोदरके जन्मका विवरण, कल्कि-विष्णु यथा- युद्ध, सुयान्तासे शशिध्वजका विष्णुभक्तिकीर्तन, रण: का संवाद, कल्किका उपनयन, परशुरामसे कल्किका ! स्थलमें अभिध्वज कलंक कल्लिधर्म. एवं सत्ययुगका साक्षात्, उनसे वेदाध्ययन, अस्त्रशस्त्र शिक्षा, कल्किका पराजय, उनको उठा थपिध्वनका अपनी पुरीमें 'शिवाराधन, हरपावतोके समक्ष कल्किका शिवस्तव प्रविथ, सुशान्ता कट क स्तव, कल्लिाके साथ रमाका पाठ, शिव अश्व, खडूग, शक, प्रस्त्रादि एवं वरका विवार, शशिध्वजके प्रजन्मका विवरण, द्विविद एवं लाम, शम्भलको प्रत्यागमन, वन्धुगणसे वरका कीर्तन, जाम्बवानका वर्णन, स्थमन्तकोपाख्यान, शधि- नरपति वियाखयूपको सभामै कल्किका संक्षेपसे वर्णा ध्वजका मोक्ष, विषकन्याका मोचम, राजावों को. अमधर्मकथन, शुकका पागमन, शुकाकिसंवाद, राज्यदान, पुनादिका अभिषेक, मायास्तव, शम्भचम सिंहसका वर्णन, पद्माका चरित, शिवसे पद्माका वर यत्रादिका अनुष्ठान, नारदसे विष्णु यथाका भतिचाभ, साम, पद्माके स्वयम्बरका प्रायोजन, स्वयम्बरकी सभाम धर्म एवं सत्ययुगका अधिकार, रुक्मिणीव्रत, कल्किका पागत राजावोंका स्त्रीभाव, पद्माका विषाद, शुकको विद्यार, पुत्रपौत्रादिका वर्णन, ब्रह्मकल्लिा-संवाद, दूतरूपसे प्रेरण, शत्रपा-संवाद, पद्माका विष्ण विष्णु का वैकुण्डगमन, पदमाकयाका शेष, शुकदेवका पूजन, पदादिसे केशान्त पर्यन्त विष्णु के प्रत्येक अङ्गका प्रस्थान, मुनिगणोक्त गङ्गास्तव, पुराणका विवरण वन तथा ध्यान, शुक्रको प्रहार दान, एकका प्रत्या. और पुरायके अवपका फन्त लिखा है।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२३४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।