२२६ कल्क---कल्कि कल्का ..(सं०पु०) कल्-क । कदापाराचंचलिभ्यः कः। घय ३४० ॥ कारकै १ दिश्युमि पष्टाविंशति दिययुगका वर्तमान १ शिल्पपिष्ट द्रव्य, पत्थर पर पीसी हुयी चीज़। शुष्क कलियुग है। इससे पहले स्वायम्भव, खारीचित्र, वा जलमिश्रित द्रव्यमान पत्थर पर पोसनेसे कल्का उत्तम, तामस, रैवत और चाक्षुम नामक कामदार कहाता है। इसका संस्कृत पर्याय-पिष्ट, विनीय, बोत.चुके हैं। इन मन्वन्तरों में इकहत्तर सादर पावाय और प्रक्षेप है। हिन्दी में इसे चरन और वुकनी हिसाबसे ४२६ दिश्य युग हुये। प्रत्येक दिवगमें या बुकन कहते हैं। एक प्रहरसे अधिक काल एक एक कलियुग निकला । वर्तमान वैवखत रहने पर कल्क द्रव्य का वीयं घट जाता है। २ सपिष्ट मनुके २७ दिव्य युग और धमोके माथ २० इचिदुम द्रव्य, पानीमें पौसी हुयी चौज । ३ मध्वादिपेषित मी है। वर्तमान खेतवराइकल्प में कुल ४५३ वसिम द्रव्य, शहद वग़ रहमें पीसो यो चीन। इसमें प्रधान बीते हैं। प्रत्येक कलिको शेष अवस्थाम नारायचे द्रव्य एक कप पौर मधु, कृत वा तेल द्विगुण पड़ता है। कल्लिमूर्ति परिग्रह करते ४५३ वार ककिसीसा फिर सिता वा गुड़ द्विगुण और द्रव चतुर्गुण डालते हैं। इयो है। फिर वर्तमान कलियुग अन्तमें भी एक ( परिभाषा प्रदीप) ३ त तैलादिका शेष, धी तेल वगैर चार कल कि अवतार लेंगे। प्रत्येक मन्वन्तम • हका बचा हुवा दिया। ४ दम्भ, घमण्ड। ५ विभि नारायणके अवतारादि समान होते हैं यह विमोमो सकक्ष, बहेड़ेका पेड़। ६ विष्टा, मैना। ७किट, पुराणसे स्पष्ट समझा नहीं सकते। मुतरां कौन निवा ८पाप, गुनाह ८ द्रव्यमानका चणे, किसी चीज़की कर सकता है कि विगत मन्वन्तरों वा कलियुमों में बुकनी। १० कर्णमल, कानका मैल । तुरुष्क नामक कल्कि अवतार हुआ था या नहीं। मगवान्को बलि गन्ध ट्रव्य, लोवान । ११ प्रतारणा, फटकार । १२ अव लौलाके सम्बन्ध कलिापुराणकारने लिखा है- सेह, चटनी। १३ करिदन्त हाथी दांत। (वि.) कल्लिका शेषपाद पति ही स्वाध्याय, पक्षा, बारा, कम्यति पापं पाचरति । १४ पापामा, पापी वषट् एवं प्रोद्धार अन्तईित दुवा, मृतरां देवों का गुनाहगार। पाहारादि भी रुक गया। इस समय वह ममत कल्कान (सं.ल.) कल्क साध्य करोति, कल्क हुये और दोना, वीणा, तथा मलिना पोको पाग णि भावे युट। १ शठताचरण, फरेब, धोकेवाजी। कर अत्यन्त हताश मनसे ब्रह्मलोक जा पही। विष विवाद, झगड़ा। मन ब्रह्मलोकमें उपनौत होते उन्होंने मात्र, मगन्द, कल्कि ( (सं० यु०) कल्क पापं हार्यतया अस्ति पस्य, सनातनादि एवं सिद्धगण द्वारा स्तूयमान सोकपितामा इन् । भगवान् नारायणके दश अवतारों में दशम वा ब्रह्माको सुखोपविष्ट देख प्रवनत मस्तक प्रवामपूर्वक शेष अवतार। भूमण्डलमें कनिका धारो पाद वा अवस्वान किया था। पितामहने उनसे साटर बेठने- पूर्ण अधिकार पनि अर्थात् समुदय मानवोंके एक वर्ण को कह कुशच पूछा ! फिर देवोंने कतिक दोडसे बड़े हो जाने और विष्णुका नाम मुलानेसे भगवान् करिक धर्मनाय हुवा, वह सब ययायय बता दिया। शनि नामसे अवतीर्ण होंगे। वह कलिको निपौड़ित कर देवोंको अवस्था देख आखास प्रदानपूर्वक का बा- पथिवीसे भगावेंगे; म्लेच्छकुलको मिटा सहर्म चलावंगे। चचिये, विष्णु को रिझावुझा तुम्हारा प्रमोट सिद्ध (महाभारत, भागवत, विष, गरक, नारसिंह इत्यादि) बधा देवोंके सममियाहार विपर्व सत्य, ता. दापर और कलि-चार युगोंको निकट गये। विशुको स्तव पादिसे सन्तुष्टकर उन्होंने 'पृथिवी पर अधिकार मिला करता है। इन्हों चारो देवों की प्राथमा बतायो यौ। नारायण विधिये मुखले युगोंक समष्टि कासको 'दिव्ययुग' कहते हैं। १ कलिको विवरण मन कहने लगे-विभो ! हम भापके दिव्ययुगोंमें एक मन्वन्तर होता है। पाणकरम अभिप्रायानुसार यभन्नग्राममें विषयमावे औरस और समति गमे जब लेंगे। हमारे तीन छह माता मनु वैवखतका अधिकार चलता है। वैवखत पधि- करेंगे। - -
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२२५
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