पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२२२

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कलिन्दशैलना-कलिवल्लभ २२३ नन्द-गिनि-डी। यमुना नदी। सांगुली और कुतहारी है। इसे बंगला उलट- कलिन्दशैसजा (में स्त्री०) कलिन्दशलात् जायते कम्बल, सन्याली में सिरिक समनो, पञ्चायोमै मुलिम, कन्निन्द-गेल जन ड-टाप। यमुना नदी। दक्षिणी नातका वचनाग, मराठी में करियानाग, मार कलिन्दशैलजाता, मलिन्द सजा देखो। वाडोम इनदई, तामिलमें कलेप्य कफियङ्ग, तेलगुमें कलिन्दिका (सस्त्री.) कलिं द्यति नाशयति, कलि वालय्यागहा, मलायम वेमतोनी, बायोमै सिमदोन और दो-खच्-मम् स्वार्थे कन-टाप पत इत्वम्। सर्वविद्या, सिंहली, नेयङ्गम कहते हैं। (Gloriosa superba) हिकमत। यह एश विशाल पोषधि है। करियारी अपने कलिन्दी (हिं) सानिन्दो देखो। पत्तोंकी नोकके सहारे ऊपरको चढ़ती है। भारत, कतिपुर (सको०) १ पद्मराग मणिको एक पुरातन ब्रह्म और सिंहलके वनमें यह स्वभावतः उत्पन्न होती खनि, मानिकची एक पुरानी खान। २ पद्मराग मणि है। वर्षा ऋतु के समय इसमें सुन्दर और सुदीर्घ भेद, किसी किसाका मानिक। इसे लोग मध्यम पुष्प पाता है। पत्र पतले और नोकदार होते हैं। समझते थे। मूल न्यिविशिष्ट रहता है। पुष्प झड़ने पर मिचें- कलिप्रद (स.पु.) मद्यशाला, शरावखाना। जैसा फल लगता है। पक फलके अन्तर्गत वीज कलिप्रिय (स.पु०) कलिः कलहः प्रियी यस्य, होता है। इसका मूल विषय है। बहुव्री। १ कलहप्रिय नारद मुनि । "यातिमियस्य करियारीको जड़को भारतीय वैद्य और मुसह- मियमियवर्ग:।" (घुवंश) २ वानर, बन्दर। ३ विभी मानी हकीम औषध व्यवहार करते हैं। विच्छ और तकवच, बहेड़ेका पेड़। (नि.) ४ दुष्टप्रकृति, कनखजरेके काटने पर इसका पुत्तटिस चढ़ता है। बदमिजाज, झगड़ालू। कलियुग (सं० लो०) कलिरैव युगम् । चतुर्थ युग। कलिफल (सं.ली.) विभौतक फल, बहेड़ा। कलि देखो। कत्तिम (पु.) शिरीष वृक्ष, सिरिसका पेड़। कलियुगाद्या (सं० स्त्रो०) कलियुगस्य पाद्या पाय- कलिमल (सं० लो०) पाप, गुनाह । तिथिः, तत्। माशे पूर्णिमा, माहको पूरनमामी। कलिमार, कलिमारक देखो। इसी तिथिको कलियुग लगा था। कतिमारक (सं० पु.) कलिना खदेहस्थ कण्टकेन | कलियुगालय, कलिता देखो। .मारयति, कलि-मणिध ख ल । १ पूतिकरत, कलियुगावास, कलिता देखो। करीत। २ कण्टकवान् करच, कंटीला करौंदा। कलियुगी (संवि०) १ कलियुग में उत्पन्न होनेशाता। कलिमाल, फलिमानक देखो। कलिमानक (सं० पु.) कचौनां कण्टकानां माला कलिल (सं०वि०) कल्यते मिथात, कलि-इलन् । यत्र, कलि-माला-क। पूतिकरन, करोल। सविनयनिमाधिभभिशोत्यादि। उप। १।५५ । १ मियित, कलिमाल्य (सं० पु.) कलोनां मास्यं यत्र, बहुव्री। मिला हुवा। २ गइन, घना । ३ पाच्छन्न, भरा हुवा। पूतिकरन, करौल। (ली.) ४ समूह, देर। कलिया (प. पु.) तपक मांस, घोमें भूना हुवा "यदा ते मोडलिव इहिन्यंतितरियति ।" (गोता २।५२) गोश्त। इसमें मसालेदार भोल रहता है। वालिवन्य (सं०नि०) कलियुगमें न करने योग्य, कलियाना (हिं. क्रि.) १ कली पाना, गुल्ला फूटना। जिसे वर्तमान युगमें बचाना पड़े। अषमेधादि यन, २ पक्ष पाना, नये पर निकलना। देवरादिसे नियोग, सन्यास, मांस-पिण्डदान प्रति कत्तियारी (हिं. स्त्री.) कलिहारी, एक जहरीला कर्म अन्य युगमें कर्तव्य रहते भी कलिमें वज्य है। पौदा। इसका हिन्दी पर्याय-करियारो, करिहारो, कदिवसभ-चालुक्यराज ध्रुवका एक नाम । २ पापो, दुरा।