२२२. कलिङ्गन-कलिन्दनन्दनौ वल्य, पिचदाहन्न, सन्तर्पण और वीर्य कर होता है। कलिङ्गिका (सं० स्त्री०) कलिङ्गगङ्गा, कामरूपको एक (राननिघा) ८ चातक, पपीहा । विमोतक बच नदी। (कालिकापुराण) बहेड़ेका पेड़। कलिन (सं० पु.) के वायु नन्नति तिरस्करोति कलिङ्गज (सं.पु.) इन्द्रयव । रोधनेन इति शेषः, क-जि-अण् निपातनात् साधुः । कलिङ्गड़ा (हिं० पु. ) कलिङ्ग, एक राग। यह दीपक १ कट, चटाई | इसका अपर संस्खत नाम किसिम रागका पञ्चम पुत्र है। रात्रिके चतुर्थं प्रहर इस है। २ कुलिनन, कुलौंजन। रागको गाते हैं। कलिङ्गड़े में सातो खर लगते हैं। कलिक्षम (सं० पु०) बनविशेष, एक पेड़ इसका स्वरपाठ इस प्रकार चलता है-मग ऋ स स ऋ| कलित सं.वि.) कल-त। १ विदित, जाहिर। ग म प ध नि सा। २ प्राप्त, मिला हुवा। ३ भेदित, अलग किया हुवा। कलिङ्गड़ी (सं० स्त्री०) दुर्गा। ४ गणित, गिना हुवा। ५ उपार्जित, कमाया हुवा। कलिङ्गह (सं० पु०) कुटजवच, कुटकीका पेड़। ६ अनुगत, दबाया हुवा । ७ आथित, सहारा पकड़े कलिङ्गयव (सं० पु०) इन्द्रयव । हुवा। ८ विचारित, समझा हुवा। ८ वर, बंधा कलिङ्गवीज (सं० लो०) इन्द्रयव । हुवा। १० उक्त, कहा हुवा। ११ मौत, सिया कलिङ्गारठी (सं० स्त्री०) कलिङ्गदेशको शुण्डी, एक हुवा। १२४त, पकड़ा हुवा। सोंठ। यह तिक, बलकर, अग्निदीपन, अजीर्णहर "करकलितकपाल: एलो दसपाणिः" (भैरवध्यान ) और बालकातिसारघ्न होती है। फिर यवधार (ली.) भाव त । १३ शान, समझा। मिलाकर खिलानेसे कलिङ्गशुण्ठी गर्भिणीको वान्ति कलितरु (सं• पु०) विभौतक वृक्ष, बहेड़ेका पेड़। दूर कर देती है। (पविसंहिता ) कलिगु, कलिम देखो। कलिङ्गा (सं० स्त्री०) काय मुखाय लिङ्गमस्याः, कलिङ्ग- कलिट्ठम ( पु० ) कलिना प्रायितो द्रुमः, मध्य १ मारी। २ बवता, तेवरी। पदलो। १ सरल देवदारु, सीधा देवदार । ३ भन्ना- ३ कर्कटशृङ्गी, ककड़ासोंगी। ४ सुन्दर स्त्री, खूबसूरत तक पक्ष, भेलावेंका पेड़। ३ विभोतक हप, ५ भोलराजको पनी । यह टुपन्तको बहेड़ेका पेड़। माता थौं। (नसिंह पुराण २८११८) कचिनाथ (पु०) कलेः कलिरेव वा नाथः । १ कलि- कलिङ्गादिकषाय (म० पु. ) कलिङ्ग, पटोलपत्र और युगके प्रभु, कचि। २ सुनिविधेष। इन्होंने एक कटुरोहिणीका पाचन । यह पित्तन्वरको दूर करता गन्धर्ववेद प्रणयन किया था। है। (चक्रदत). कलिन्द (सं० पु०) कलिं ददाति यसि वा, करि-दा कलिङ्गाद्यगुड़िका (स. स्त्री०) ज्वरातिसार रोगका | दो वा खच्-मुम्। १ स्य, सूरन । २ विमोतक एक पौषध, बोखारके दस्तों को एक दवा । कत्तिन वृष, बहेड़ेका पड़ा ३ पर्वस विशेष, एक यहाड़। इछी (इन्द्रयव ), विल्ल, जम्बू, पान, कपित्य, रसाचन, पर्वतसे यमुना नदी निकलो हैं । (रामायप, किष्किन्धा १० १०) लाचा, हरिद्रा, होवेर, कटफन, शुकनासिका कलिन्दन (स• पु.) १ कर्काक, पेठा, विचायती (भोणाकलक), लोध्र, मोचरस, शव, धातकी और कुम्हड़ा। २ तरबुज, तरबूज, कौंदा। वटङ्गक (बरगदको बो) बरावर बरावर तण्डुलो- कनिन्दकन्या (स. स्त्रो०) कलिन्दस्य पर्वत विशेषस्य दकसे रगड़ बटी बनाने और छायामें सुखाते हैं। "कविन्दबन्या मथुरा गवापि गहोमिममा जव माति।" () तण्डलोदक मष्टगुण जलम चावल धोनेसे होता है। इस गुड़िकाके मेवनसे वरातिसार, शून, अतिसार कचिन्दजा, कलिन्दशैलजा देखो। और रशादोष निवारित होता है। (परिभाषाप्रदीप). कलिन्दनन्दिनी (सस्त्री०) कलिन्द नन्दयति. कसिन्दा । टाए बनी। औरत । कन्या इव। यमुना नदी।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२२१
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