कलि २१५ है। दिव्य परिमाणसे महत वत्सर पीछे चतुर्थ कति बोसनेपर पुनरि सत्ययुग प्रारम्भ होगा। ( भागवत १श्य स्कन्ध, १५०, १०.१८ थो.) इस युगमे धर्म एक पाद और अधर्म तीन पाद है मनुष्यके पायुका परिमाण १०८ वत्सर और देहका प्रमाण अपने अपने हाथसे साढ़े तीन हाथ पड़ता है। अवतार श्रीकृष्ण हैं। युगके शेषको दशम अवतार कल्कि उत्पन्न हो पापियों का विनाश साधन करेंगे। 'प्राण निरग्नि, अवगतप्राण और भोजनपानके प्रनियम बन जायेंगे। कलियुगका विशेष धर्म दान है। साहिता प्रतिमें लिखा है,- "तपःपर वयुगे बेनायो धानमुचाते। बापरे यवमेवाड दानमेकं चली युगे।" (मनुचिता) सत्ययुगमें तपस्या, वेतायुगमें ज्ञान, हापरमें यन्त्र और कलियुगमें दानमात्र विशेष धर्म है। "तप:पर' तयुगे वैसा जानमुच्यते। हापरे यवमेवाइः कषी दान दया दमः" (महामारत) सत्ययुगमें तपस्या, बेतायुगमें जान, हापरमें यन्त्र और कलियुगमें दान, दया तथा दम विशेष धर्म है। "वयोधर्म : नवयुगे शाम के वायुगे म सम् । हापरे चावर प्रीय कसो दान' दया दमः' (हस्पति) सत्ययुगमें वैदिक धर्म, वेतामें ज्ञान, हापर, यज्ञ और कलिमें दान, दया तथा दम विशेष धर्म है इसी प्रकार सिपुराण, अग्निपुराण प्रतिमें भी 'एकवाक्यसे दानका विषय अनुमोदित है। कलियुगको सहिताके नियय सम्बन्ध पराशरने लिखा है- "कृत तु मानवो धर्म ने वायो गौतमः मतः । बापरे लिखिती बली पाराम मनः।" सत्ययुगमें मनुसंहिता, वेतामें गौतम, द्वापर में 'शङ्क- सथा लिखित और कलियुगमें पाराशरसहिता धर्मशास्त्र है। कलिक दोषकी शान्तिको लिङ्गपुराण, वृषवारदीय, महाभारत और शिवपुराणमें शिवपूजाका उपदेश दिया है। फिर स्कन्दपुराणमें एकमात्र शहर हो कलियुगके -देवता की गये हैं। "धा कतयुगे देव; बेसाया भगवान् रविः । वापर भगवान् विपुः कली देवो महेयर" (स्कन्दपुराण) सत्ययुगमें ब्रह्मा, बेसामै सुर्य, हापर, विष्णु और कतिमें महेखर देवता हैं। अन्यान्य स्थलों में कालिका और गोपालको कलिका जाग्रत देव माना है:- “लौ जागवि गोपालः बली नागर्ति कालिका।" काशीवास, गङ्गासान प्रकृति कलिकाची मुलिका उपाय है,- "नान्यत् पश्यामि नन्तूना मुक्त्वा वारापसों पुरीम् । सर्वपापप्रशमन प्राययित्त कली युगे । ये विप्रायो पुरों प्राप्य न मुषति कदाचन । विजिन्य विज्ञान दोषान् यानि मन् परमं पदम् ।" ( खन्दपुराण) कलियुगमें वाराणसीपुरीको छोड जीवोंका सर्व पापनाशक प्रायश्चित्त दसरा नहीं । जो प्रावण इस पुरीमें पाकर सर्वदा बना रहता, वह कलिज पापसे छूट परम पद पा सकता है। गङ्गास्नानके सम्बन्ध लिखा है- "ते सवापि तीर्थानि वैचायाँ पुष्करं शतम् । हापरे तु कुरुषे कलो गई व वैवचम् ॥" (भविष्यपुराण) सत्ययुगमें समुदाय तीर्थ, वेतामें पुष्कर, हापरम कुरक्षेत्र और कलियुगमे एकमात्र गना ही को तीर्थ समझाना चाहिये। "गीता गङ्गा तथा भिक्षुः कपिलायव्यसेवनम् । वासरं पपनाभस्य सप्तमं न कली युगे" (महामारत) गीता, गङ्गा, भिक्षुक, कपिता, अम्बत्थ वृक्ष (योपर- का पेड़) और इरिवासरको सेवा को छोड़ कलियुगमें सप्तम धर्मकार्य नहीं होता। हरिनामकोतनके माहात्म्य सम्बन्धपर कहा है, “य ऽहनिय नगवानुवांदवस्त्र कीर्तन । कुर्वन्नि तान नरव्याघ्र नं वलिवांधते नरान् । चक्रायुधस्य नामानि सदा सर्वच कौतयेत् । नायीचं कोसने तस्य स पविवकरी यतः। पज्ञानादथवा चानादुनमशोकमाम यत्। सीवितमघपुसो ददयो यथान" (विषधमो चर) जो दिन रात जगत्मष्टा वासुदेवका कीर्तन लगाता,
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२१४
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