पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१६७

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कर्मविपाक समस्त परित्याग कर केवलमात्र अर्थ जोड़ता, जो गो ३८ गुल्म-एकाको मिष्ट वस्तु भोजन तया नोच- तथा भूमि दवा बैठता, जो निष्ठुर पड़ता और जो जातीय स्त्री-गमन करनेसे जीवनान्तमें अमिपूयपूर्ण सरल एवं सच्चरित्र युक्ती भार्याको छोड़ता, वह व्यक्ति काकोल नामक नरकभोग मनुष्य ४ वत्सर पियो. नरकान्त में ग्रहणौरोगग्रस्त हो जन्म लेता तथा पशु लिकायोनिमें रहता और मानवयोनिमें गुल्मरोगका द्रव्य धन प्रकृतिसे मुंह मोड़ता है। क्लेश सहता है। ३३ पाण्डु-परभार्या वा नीच जातिको स्त्रीसे सङ्गत ४० शूर-निरपराध किसीको शूल मारने अथवा होने पर बहुकान पर्यन्त विविध यमदण्ड झील मनुष्य शूलसम कष्टदायक वाक्य कह डालने और दम्पतीम जन्ममें पाण्डुरोगग्रस्त और शीणचेता रहते हैं। खेहभेद निकालनेसे ४ मन्वन्तर यमयन्त्रपा उठानेपर ३४ कामला-अनादि चोरनिसे नौवनान्त, विविध पक्षियोनिमें वियोगका दुःख होता है। फिर मनुष्य नरकभोग अष्टादशवर्ष पर्यन्त काकका प्रभृति तिर्यक् । जन्ममें शूलरोग लग जाता है। योनि पाते और मनुष्यजन्ममें कामला रोगका कष्ट ४१ प्रीरोग-साध्वी ऋतुचाता स्त्रीसे सहवास उठाते हैं। न रखने और प्रामइत्या, भ्रूणहत्या वा गोहत्या करने ३५ कास-कर्मभेदके अनुसार पांचो प्रकारका कास पर ३५१८००००० वत्सर नरक भोग मनुष्यजन्म उत्पन्न होता है। १ अतिकठोर मिथ्यावाक्यसे किसीको अर्थीरोग होता है। सतानपर पित्तप्रबल कासरोग लगता है। २ ब्राह्मण ४२ भगन्दर-प्राचार्यको भार्या के साथ गमन अथवा का स्थान विनाश करनेसे वातजन्य कास आता है। स्त्री, बालक तथा वृद्धका धन हरण करनेसे नरकामा ३ जलाशय ध्वंस करनेसे मजन्य कास उठता है। में फिर जन्म ले मनुष्य भगन्दररोगका दुःख उठाता है। ४ ब्रह्मा, विष्णु और शिवको विभित्र माननेसे सन्निपात ४३ छर्दि-गोके मुखसे कोयो वस्तु खींच फेंक जन्य कास होता है। ५ यन्त्रको छोड़ पशु मार कर देनेपर परजन्ममें वायुजन्य छदिरोग होता है। फिर खानेसे सर्वदोषजन्य कासरोगका लश उठाना पड़ता है। पिछलोकको तर्पण न कर स्वयं अच्च पीनेसे पित्तजन्य ३६ खासकास-यह रोग भी कर्मविशेषसे महा, छदिरोग लगता है। जवं, छिन्न, तमक और क्षुद्र भेदमें पांच प्रकारसे ४४ हिका-किसी योगीकी तपस्या बिगाड़नेमे होता है। १ यज्ञ व्यतीत ख़ासरोधपूर्वक पशको मार हिलारोग होता है। मांस खानेसे महाखास चलता है। २ पुराणकथाके ४५ अरोचक-पिता, माता और प्रतिधिको प्रब समय दूसरी बात छेड़नसे जवखास उठता है। न दे खयं खा लेनेसे परजन्मपर हीन जातिमें उत्यय ३निषिच दान लेनेसे विवखास पाता है। शास्त्रार्थ. हो परोचक रोगका कष्ट उठाते हैं। में वृथा दोष लगानेसे तमकखास बढ़ता है। ५ पाक ४६ स्वरमा-गानको समाप्ति न पाते गायकको कालको विघ्न डालनेसे क्षुद्रखासरोग होता है। वाधा पहुंचाने जम्मान्तरमें स्वरमा रोगप्रस्त होना । ३७ यमा-विमहत्या, गच्छितधनहरण, वृत्ति- च्छेद, प्रजापीड़न तथा गुरुद्रोह करनेसे नौवनान्समें ४० प्रतिष्णा-ढषित गोसमूहके अपानमें विविध दुःसा यन्त्रणा पठा कुछ काखतक कमियोनिमें वाधा डासने अथवा मल निकामनसे प्रसंसारमा राना और मनुष जन्म मिसनेपर यक्षारोगका दुःख भूमिपर कीटयोनि रह मनुष्यजन्म पा कर पति- कृष्णा लगती है। सहना पड़ता है। ३८ रक्तपित-प्रत्यन्त दुर्व्यवहार, परद्रव्य अमि ४८ विस्फोट-चहासके साययम नानि और लाव, परभार्या कामना और पिटयवधू गमन करनेसे जसपो जानेसे नरकान्तको विसोट रोग होता है। रपित्त रोगावात होते। ४८चम और मूळ-जो कुटिमबति समाखन पड़ता है।