.. ३ कर्मः कर्मचष्टा-कर्मदोष १५० कमचेष्टा (सं० स्त्री०) कमपि चेष्टा, ७-तत्। । कमणा (सं०पष्यः) कर्मसे, क्रिया हारा, कामके साथ। 1. क्रियाक अनुष्ठानका उद्योग, कामकी कोशिश।. कर्मणिवाथ (सं० पु.) व्याकरणोश वाच्यविशेष । इस वामें कर्मकर्ता बन जाता है। फिर वचन “यात्मकन्या भवेदिच्छा इछानन्या भवेत् छविः । कविमन्या मवेश्चेष्टा चेष्टानन्या किया भवेत्।" (मनु) और पुरुष भी कर्मपदका ही निहिष्ट होता है। कम चोदना (स.वि.) कमणि कर्मावबोधने चोदना | कमण्य (सं० स्त्री०) कर्मणि साधः, कमन्-यत् । विधिः। १ कविषय प्रेरणाकारक विधि। कर्म १ कम योग्य, काम कर सकनेवाला। २ कर्म विशेष में चोथवे प्रवर्तते ऽनया,प-टाप। २ कर्ममें प्रवृत्तिका हेतु। पावश्यक, किसी कामके लिये जरूरी। "जामय परिचाता विविधा कर्मचोदना।" (गीता) कुशल, काम करने में होशियार। ३ कर्मविधि। कर्मण्यता (म० स्त्रो०) कर्मण्यस्य भावः। कम- “चोदना चोपदेशय विशिष्ट कार्यवाचिमः व्यमेन उल लक्षणं विगु कुशलता, तत्परता, मुस्तैदी।
- यामका ज्ञानादिवघमवलम्बा कर्मविधिः प्रवर्तते। (बौधरखामो) कर्मण्यभुक् (सं०वि०) कमणं वेतनं भुङ, से, कम एय-
कर्मन (सं० घु०) कर्मणः कमजन्यादृष्टान्नायते, भुज क्विए। वैतनोपजीवी, नौकर। कर्म-जन-ड। १ कर्मफलजन्य रोगादि। यह रोग कमण्या (सं० स्त्री० ) कर्मणा सम्याद्यते, कर्मन्-यत्- शास्त्रानुसार निर्णीत औषधप्रयोगसे भी नहीं दवसा । टापा १ वेतन, तनखाह । २ मूख्य, कीमत । केवल कमके क्षयसे ही इसको शान्ति होती है। कर्मत: (सं० अव्य०) कार्यानुसार, कामके मुवाफिक । २ जन्मपरिग्रह । कायिक, वाचिक और मानसिक कम त्याग (सं० पु०) कर्मणः त्यागः, ६-तत् । १ वैत- कर्मविशेषके फलसे योनिविशेषमैं जन्म लेना पड़ता है। निक कर्मका त्याग, नौकरीका इस्तेफा। २ सांसारिक ३ पायपुण्यादि। ४ क्रियानन्य संयोगविभागादि। कर्म का त्याग, दुनयावी काम छोड़ बैठनेको हालत। ५ वेगनामक संस्कार। "मूधमाने तु वेग: स्यात् क्षमजो वेगनः | कमब (सं० ली.) कम को स्थिति, फर्ज पदा क्वचित।" ( माषापरि०) ३ वटवृक्ष । कर्मणो नातः विष- भोगवासनावशात् क्रमशो मलिनीयमानठत्तिभिर्जात कर्मदक्ष , (सं० वि०) कर्मणि दया, ७-तत्। कर्ममें इत्यर्थः । ७ कचियुग। (वि.) क्रियाजात, कामसे पट, काम करने में होथियार। बना हुवा। कर्मदुष्ट (सं० वि० ) कर्मणा दुष्टः, ३-तत् । । कर्म “तथा दादि वैदचा समज दोषमात्मनः।" (मनु १५१०) विशेषसे पतित, किसी कामसे गिरा हुवा। २ पापी, कर्मजगुण (सं० पु.) शर्मयो जायते यो गुणः, गुनाहगार। कर्मधा। क्रियानन्य संयोग, विभाग और वैग गुण। कर्मदेव (वै. पु.) कर्मया देवः प्रासदेवभावः। देव- "संयोग विभागक्ष बैगये ते तु कर्मनाः।" (भाषापरि०) विशेष । अष्टवसु, एकादश रुद, द्वादश मादित्य, इन्द्र कर्मजित् (सं० पु.) १ जरासन्धवंथीय मगधके एक और प्रजापति-तेंतीस कर्म देव है। अग्निहोत्रादि नृपति २ उड़ीसके कोई राना। इन्होंने ७८ से वैदिक कर्म के फचसे इन्हें देवलोक मिला है। इनमें १४३ ई. तक राजत्व किया। इन्द्र प्रभु और वहस्पति पाचार्य है। देवयोनिमें जन्म कमंत्र. (सत्रि०) कम नानाति, कमन-चा-क। लेनेवालेको प्राजानदेव कहते हैं। कर्मबोधक, हिताहित और समय देख कर्म विशेष कर्म देवी (सं० स्त्री०) मेवाड़ के राजा समरसिंहको करनेका मान रखनेवाला। पढ़ी। इनके पुत्र का नाम राहुप था।.. समरसि' देखो। कर्मठ (सं० वि०) कर्मणि घटते, कर्मन्-अठच् । नर्मपि कर्म देवता (सं० स्त्री.) कर्म देव, यज्ञादि कर्म से बने - घटोऽठच् । पा ॥१५ । १ कर्मकुणन, काममें होशियार। ये देव । "शावामयनुस्य तवी भ्यतानोत् । स कर्मठ; वर्ममतानुवन्धि । (महि ॥४५) | कर्म दोष (सं• पु:) कमव दोषः कसैतदोषो वा। Vol. IV. 40 करनेकी हालत . . .: ... .: