कपोत पासमानो-देखने में तरल धसवर्ण होता है। पाराकान और रामरी होपमें भी इसको संख्या यथेष्ट पुसका चञ्च खेल रहता है। हैं। हिमालयके मध्यप्रदेश में इसी जातिका एकप्रकार सफ़ेदा-स्वाहा, चीना और मामूली तीन श्रेणी | शिखायुक्त कपोत होता है। इसका रूप पति मनो- विमक्त है। स्थाईको पूंछ काली या लाल होती है। हर लगता है। दारजितिनके निकट इस जातिके गले में कयो चपटे और पांख में गोल दाग रहते हैं। जो एक प्रकार कपोत रहते, उन्हें नेपाली 'नामपुम्को' चीनाके गलेमें कितनी ही लाम्म छौंटें पड़ जाती हैं। कहते हैं। फिर नीचगिरि पर्वत, इसो जातिके श्रांख रङ्गीन रहती है। फिर उसमें दो गोल दाग भी होनेवाले एकप्रकार कपोत राजकपोत कहाते हैं। होते हैं। स्याहा और चीना दोनों देखने में बहुत यह देय में पुच्छके पालक समेत प्राय: २५ पञ्च अच्छे लगते हैं। मामूली सफेदेके श्रङ्ग, गलदेश पड़ता है। हिन्दुस्थानके जङ्गली गोले और गिरहवाल और पुच्छी कलङ्क रहता है। इस श्रेणी में आ सकते हैं। श्य श्रेणौके पावत्व मूरा-दूस कपोतके गलदेश, पृष्ट एव पुच्छमें सफेद कपोत कुमायू प्रदेशके उत्तर, उत्तर-एशिया और और काली ओंट रहती है। फिर किसीके केवल अस जापानसे समस्त युरोपखण्ड पर्यन्त देख पड़ते हैं। और चक्षुमें ही कलङ्क देख पड़ता है। धनका वर्ण अधिक नील नहीं रहता, नौलका सय ला-देखने में गाद धूसरवर्ण होता है। पक्षपर प्राधिक्य लिये धूसर लगता है। काश्मोर अञ्चलमें दो-दो रखा रहती हैं। यह कपोत बाजी, चक्कर और हिमालय पर एकप्रकार खेतचञ्च, कपोत होते हैं। उड़ान के हिसावले भला-बुरा समझा जाता है। यह देखने में अतिसुन्दर समझ पड़ते हैं। अंगरेज़ खगतत्त्ववेत्तावोंके मतसे कपोत और इन सकस एवं अन्यान्य जाति वा कपोत भेदके डलूकका साधारण नाम कोलम्बिडी (Columbidee) | अंगरेजी खगतत्त्वमें लिखे लक्षणालक्षण पतिसून है। यह प्रधानतः शस्य खा जीवन धारण करते हैं। रूपसे बता देना एकप्रकार असम्भव है। कारण उक्त फिर इन्हें भूमिपर घूम घूम चुगना अच्छा लगता जातीय पक्षी न देख केवल कविको वर्णनाके सहार है। इनमें अधिकांशका वर्ण नील रहता है। कोई पालति कल्पना कर लिखना कैसे युलिसिह वर्ष और स्वभावके अनुसार कपोतकी तीन श्रेणी हो सकता है। इसीसे अंगरेजो खगतत्व के अनुसार ठहरायी गयी हैं। श्म लफोलोमिनी ( Lapholae. समस्त जातिके लक्षणालक्षण नहीं लिखे । mince) wafa Feiteit, ( Crested-pigeons ) कपोत पति मुखी प्राणी है। प्रति सामान्य श्य पालग्विनी (Palumbinea) अर्थात् वन्य (Wood असुख और विपसे इसको समूह इति हो जाती pigeons ) और ३य कोशम्बिनी ( Columbinae)| है। हिन्दुस्थानमें कपोतको लक्ष्मोका वरपुत्र मानते अर्थात् पार्वत्य ( Rock-pigeons ) कपोत। हैं। अनेकको विश्वास रहता-इसे पासनेसे रहस्यका प्रथम श्रेणीको एकमात्र जाति आजकल षष्ट्रे. महाल बढ़ता, दरिद्रत्व घटता और लयोका दर्शन लियामें देख पड़ती है। इस कपोतके मस्तकपर सिलता है। फिर इसके परका वाघु मनुष्य के शरोरमें मयरको चूड़ाके समान हिगुण शिखा रहती है। लगनेसे सर्वरोग दूर होता है। इसीसे कितने ही अंगरेली खगतत्त्वमें इसको लाफोलोमस पाण्याटिकस लोग कपोत पालते हैं। वन्य कपोतको रहमें पा ( Lapholaemus antarticus ) अर्थात् दक्षिण-महा वसने पर कोई नहीं उड़ाता। कलकत्ते में वशाली सागरीय द्विगुण शिखायुक्त कपोत कहते हैं। और हिन्दुस्थानी महाजन अपने अपने व्यवसायक 'गोमें एक प्रकार बननी चमक लिये पतले पास्मानी स्थानमें सयन कपोत'प्रतिपालन करते हैं। रखका कबूतर होता है। यह मध्य-भारतके पूर्वा शसे मनुष्यके असाधारण अध्यवसायसे राजकपोतका समुद्रोपकूलपर्यन्त सकल स्थानों में मिलता है। प्रासाम, एक अपूर्व गुण आविष्क त हुवा है। यह सिखाने श्य
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१५
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