पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१४

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। १४ कपोत उठता है। अंगरेजीमें इसे पोउटर पिजन (Pouter मिया-रत एवं पीतमिश्रित होता है। फिर pigeon) कहते हैं। चक्षु रक्तवर्ण रहता और चचुके पाखं पर फूस लौटन-एक प्रकारका क्षुट्रजातीय खेतवर्ण पड़ता है। गोला है। यह मट्टीमें लोट सकता है। इसीसे दरयायौ-देखने में खर्वाकार लगता है। इसका इसको लोटन कहा करते हैं। लोटानेके लिये चच्च क्षुद्र होता है। इस कपोतका गलदेश पर्यन्त लोटनको दक्षिण इस्तसे ऐसे पकड़ते, जिसमें वहाङ्गठ मस्तक और पुच्छ एकवणं रहता, मध्यस्थल खेत द्वारा एक और अनामिका तथा कनिष्ठा हारा पपर पढ़ता है। जिसके मध्यस्थलमें गुल निकलता, उसको पक्ष दबा रखते हैं। तर्जनी एवं मध्यमा गलदेशक कबूतरवाज गुम्न-दरयायो कहता है। यह कृष्ण, दोनों पाखं से वक्षःस्थलके दोनों पाखं पर पहुंच रक्त और पीतवर्ण होता है। जाती है। फिर दक्षिण एवं वाम लोटनको एसप्रकार बुगदादी-देखने में काला होता है। इसका चषु हिलाते, जिसमें घाट (गुद्दी)को एकवार दाहने और प्राय: डेढ़ इच्च लम्बा और उसका अग्रभाग टेढ़ा बायें हिलता पाते हैं। कोई एक मिनट ऐसे ही रहता है। बड़े बड़े चक्षुवोंके पार्श्व में फूल पड़ हिला महोपर छोड़ देनेसे यह लोटा करता है। ४५ जाता है। यह एक हस्त पर्यन्त दीर्घ होता है। लोट लगाने पर इसे पकड़ उठा देना चाहिये। किसी किसीके कथनानुसार यह कपोत तुर्कीके नतुवा कड़ी मट्टोसे टकरा मत्था फट जाना सम्भव है। वुग़दाद नगरसे इस देशमें आया है। इसको अंगरेजीमें स्वतन्त्र नाम न रहते भी टम्बलर उलुक-जातीय-प्रवादानुसार उलूक और कपोतके (Tumbler ) कह सकते हैं। जो एकबारगी हो सङ्गमसे उत्पन्न है। यह देखनेमें खेत और बहुत लोट सकता, उसे कबूतर वान वेदम-लोटन खर्वाकार होता है। फिर कोई कोई उलक सदृश भी कहता है। देख पड़ता है। यह उलूककी भांति बोलता है। पाउष-(पुग्ध) के अनेक भेद हैं। इसका चचु गिरहवानों में नीचे लिखे कबूतर पच्छे होते हैं- अधिक क्षुद्र होता है। गलदेशके पालक वक्षके ऊपर पपलका-देखने में सफेद लगता है। चक्षुके पाव- उत्तराभिमुखौ हो नहीं रहते, दोनों पान को झुक पर सरसों-जैसा एक चुद चिन्ह प्रथवा पक्षपर कचा बीचमें वालोंको विणनीसदृश लगते हैं। इसका समस्त रहता है। सर्षप-सदृश्य कृष्ण चिङ्गविशिष्ट अब- गलदेश भर नहीं जाता, वपके जल देशमें अधै लके का अधिक चिहयुक्त शावक उत्कष्ट जातीय पङ्ग लि परिमित स्थान वैसा देखाता है। इस समझा जाता है। जातिका कपोत सुगठित और दृढ़काय होता है। कदा-पोताधिक्य रलवर्णं देख पड़ता है। पक्षपर इसको मस्तक पर शिखा रहनेसे 'टरपेट' कहते हैं। रेखा रहती है। फिर चक्षुके मध्य दो गोलाकार दाग भारु सा-वर्ण में कृष्णको अधिकता लिये धूसर होते हैं। रहता है। चक्षु रक्तकमलको मांति लाल होते है। कागनी-सफेद होता है। इसको चक्षुमें वर्णविशिष्ट चच्च शुद्र और क्षणवर्ण लगता है। गलदेश कलङ्क रहनेसे मोतीचूर कहते हैं। मयूरको भांति चिक्कण देख पड़ता है। बच्चु में खु,तमौ-ईषत् पिङ्गल रहता और चक्षुमें गोलाकार आवरणी छष्णवर्ण. फूल नहीं पाते। चक्षुको कसा लगता है। इसमें स्त्रीनातिकी संख्या प्रति रहती है। पल्प पाती है। कारा-मस्तकसे गलदेश पर्यन्त कष्यका प्राधिक्यं इस परिवारवाले दोबाज के पक्ष पनेक पालक खेत होते हैं। जिसके पक्ष में केवल एकमात्र पासक लिये धूसर रहता है। फिर पृष्ठ और वक्षस्थल खेत पाता, वह एकबाल कहाता पाटस तथा श्वेत विन्दुयुक्त होता है। ---