1 - १४० काटिक गोरे सियाही बाकी वेतन और मछलोपत्तनको लटका रही। ८ सप्ताह फरासीसी सेनाका अवरोध चला। अंश न पानसे बिगड़ पड़े। किन्तु निजामको फौज १७५८ ई० को १५वौं फरवरीको मन्द्राज जाता जाता दश कोस दूर रह जाते सुन वह निरस्त्र हुये। फोर्ड देखा गया। किन्तु उसी समय अंगरेजोंकी नौसेना मछलीपत्तन दुर्ग अधिकार कर बैठे। निजाम फरा श्रा पहुंची। फरासीसो भी खाद्यादिक प्रभावसे सौसी फौज पानेको राह देखते थे। फरामोसी रण पार्कोटको लौट पड़े। तरी कूलपर पायो। किन्तु फौज उतरनको खबर अगरेजोको समुद्रपथसे खाद्य और सैन्यका किसीने न पायो। निजामने फरासीसियोंसे चिढ़ साहाय्य मिलता था। किन्तु फरामोसी पुदिचेरौसे अपना स्वार्थ बनानेको अंगरेजोंके साथ सन्धि कर ली। कोई साहाय्य न पानिपर बिलकुल बैठ रहे। १०वौं उसमें अंगरेजोको चिरकाल चार लाख रुपये प्रायके सितम्बरको फरासीसी नौ-सेनाके कुछ अंशको विन- उपयुक्त भूसम्पत्ति सह मछलीपत्तन नगर मिलने, कमसीके निकट पाते ही अङ्गारेज सेनानी पोकोसने भविष्यत्में क्लष्या नदीके उत्तर फरासीसियोंकी कोई छनमन किया। फिर फरासीसी नौ-सेनाका एक दल कोठी न रहने या चलने और सूबेदारको अपने काममें काउण्ट आसिके अधीन चार लाख रुपये के रत्नादि कोयो फरामोसी न रखने की बात ठहरी। और सैन्यादि ले पहुंचा, किन्तु भारतवर्ष में उत. लाली सेण्ट डेविडका अवरोध छोड़ चल दिये। रनका आदेश न पाते अन्यत्र चला गया। इसी बीच अंगरेजोंके आडमिरल पोकोक और. फरासीसियोंके बन्दीबास अङ्गारजीने आक्रमण किया और १७६० काउण्ट डि पासि करमण्डल उपकूल में स्वस्ख नौसेना के ई०को कुटने फरासीसियोंसे छ न लिया। फरासीसी साथ उपस्थित थे। पोकोकने अपनी ओरसे दो बार यहीसे हारने लगे। बन्दीबासके युवौ वुसि वन्दी आसिको प्राक्रमण किया। आसि डर कर पुदिचेरी बने थे। कुटने फिर आर्कोट जौत अन्य स्थान भाग गये। फिर व लालौसे फटकारे जानेपर उन्हें अधिकार किये। फरासोसो कुछ भी बिगाड़ न सके । मरिच शहरको राइ लेना पड़ी। लालीका बन्न इससे मार्च मासके मध्य उपकूल पर कालिकट और पुंदि. घटा था। किन्तु कर्णाटिक के नवाब चांद साहबका चेरीको छोड़ फरासोसीयोंका दूसरा कोयो पधिकार मृत्यु हुवा। फरासीसी उनके ज्येष्ठपुत्र राजा साइबको न रहा। लाली अर्थ वा सैन्यसाहाय्य न पा महा वर्णाटिकका नवाब मान गद्दीपर बैठानेकी चेष्टामें लगे। व्यतिव्यस्त हुये और अन्तको महिसरके हैदर अली लाली इससे व्यस्त हुये। मुहम्मद अली आर्कीटके मदद मांगने लगे। हैदर अली स्वीकृत हुये, किन्तु. शासनकर्ता थे। उन्हें इस्तगत करनेको लालीने हठात् किसी कारण वश शीघ्र स्वराज्यको ससैन्य प्रतारणापूर्वक कहा-१०००१) २० में हम पार्कोट चल दिये। सुतगं फरासीसियोंका कोयी उप. लेने को सम्मत हैं। मुहम्मद अली उसी में मान गये। इधर मेजर मनसनने फरासिसियों को खालौने छलसे घुस नगर दखल किया। आर्कोट लेने सम्पूर्ण रूप हराया था। किन्तु लालीने हठात् ध्यो पोछे वह चिङ्गलिपट दुर्ग पानेके प्रायोजनमें लगे। सितम्बरको अक्षरेनोंका शिविर पाक्रमणकर मनसनको किन्तु अंगरेज मन्द्राजके निकट फरामोसी राज्य गुरुतर रूपसे पाहत किया, किन्तु कुटसे सम्यूण परा- कहां होने होते थे। उन्होंने चितलिपट दुर्ग सैन्यादि जित होना पड़ा। कुटने फिर पुन्दिचेरीको घेरा था। भेज सुरक्षित किया। लालौने मन्द्राज अधिकार कर क्रमशः दुर्ग में खाद्यका अभाव आया। दो दिनसे सकनेको यथेष्ट धन न पाया। फिर भी वह साहस अधिक खाद्य न चलते देख लालौने दुर्ग छोड़ मन्द्रा- जके राजा साहबके निकट पाश्रय पकड़ा। पूर्वक सिर्फ ८४ हजार रुपयेके सहारे दिसम्बर मास इसी प्रकार फरासीसी प्रादुर्भाव भारतसे उठा था। मन्द्राज घेरनेकी भागे बढ़े। मन्द्राज यह आक्रमण कर्णाटिकके मध्यका केवल तियागर और गिनि नामक. सहनेको प्रस्तुत था। किन्तु सैन्य संख्या अधिक न कारन उठा।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१३९
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