. कर्णल-कर्णवालिस १३१ कर्णल (सं० वि० ) कर्ण: कर्ण शशिरस्यस्य, कर्ण: । न्यूयार्क, वर्जिनिया, कामडेन, प्वाइण्ट, कमफट प्रभृति सूच। प्रशस्त श्रवणशक्षिविशिष्ट, पच्छी तरह सुन स्थानको जीत लिया। किन्तु इयक नदीके तौर इयर्क सकनेवाला, जिसके कान रहे।। ही नामक नगरके युद्धमें फरासीमो और अमेरिका- कण लग्नस्कन्ध (संपु०) स्कन्धस्थितिभेद, कन्ध के वासी द्वारा एक बार पानान्त होनेपर हार कर शत्रुके रइनकी एक हालत । नृत्यमें स्वन्धको सरल बना और हाथ सदन इन्हें पाम समर्पण करना पड़ा। (१७८१ उठा कर के निकट लानसे यह स्थिति हो जाती है। ई.) इन्हीं के पराजयसे अंगरेज़ ढोले हुये। १७२० कर्णलता (स..स्त्री०) कास्य नता इव, उपमिः । को अंगरेजोने सन्धि कर कणं वानिसको छोड़ाया था। कपाली, कानको लो। राजाके प्रियपात्र रहनसे पराजय पाने भी यह विशेष कर्ण लतिका (सं० स्त्री.) कर्णस्य लता इव, कर्ण तिरकत न हुये। खता खायें कन्-टाए घत इत्वम् । कर्ण पाली, कानको १७८६ ई०को लार्ड कर्ण वालिस भारतके गवर- (Lobe of the ear) नर जनरल बनाये गये और उसी वर्ष सितम्बर कर्ण वंश (सं० पु० ) कर्ण: कर्ण क्षतिवत गो यत्र, मास कलकत्ते पा पहुंचे। यह शान्तखभाव, गम्भोर- बहुव्री०। मच, वांमका ऊंचा ठाट । बुद्धि, सुविचारक्षम, लोकप्रिय, महान् वृदय और कर्ण वत् (सं० वि.) कर्ण : प्रशस्वेन प्रस्यास्ति, कर्ण - लोकहितपो थे। इनके प्रति समय भारतमें युद्ध विप्र- मतुप मस्य यः । १ दीर्घक विशिष्ट, बड़े कानवाला। हादि कुछ न रहा। किन्तु वारन हेरिणामने शासन २ कप युक्त, कानवाला। ३ कोमलशाखा वा कोलक कारको दुर्नीतिस देय भरा पड़ा था। अत्याचार विशिष्ट, किल्ले या कोलवाला। ४ परिवयुक्त, जिसके पविचारसे भापामर साधारण घबरा गये और अने- पतवार रहे कानक देयो राजा विध्वस्त हुये। सतरां ऐसी अवस्था कर्ण वर्जित (सं० पु. ) कर्णन श्रवणेन्द्रियेण वर्जितः । लार्ड कर्ण वालिस पा और स्त्रीय स्वभावके गुपसे नाना होनः। १ सपं, सांप । इसके पृथक कणेन्द्रिय नहीं हितकर कार्य उठा भारतीय प्रजाके विशेष प्रिय बने। होता। (वि०)२ कर्ण होन, कनकटा। ३ वधिर, उस समय बड़े बड़े अंगरेज कर्मचारी तथा सैनिक स देगके लोगों से वाणिज्य व्यवसाय चलाते और राजा- कर्ण वश (सं० पु.) मस्यविशेष, एक महन्नी। यह वोंके निकट उपटोकन पाते थे। सैनिक नानाविध वृत्त, गोल, कृष्ण पौर गल्सवान् होता है। मांस उपायसे पुरस्कार ले लेते। शान्तिरक्षाके लिये कितना दीपन, पाचन, पथ्य, बुध और बलपुष्टिकर है। हो सैन्य रखा जाता था। लार्ड कर्णवालिसने यह कर्णवालिस-भारतके एक भूतपूर्व गवरनर-जनरल । सकन कुप्रथा उठायो। इन्होंने सैनिक और अन्य- १७३८ ई.की ३१वौं दिसम्बरको इन्होंने जन्म लिया। विध कर्मचारीके लिये वेतनका प्रवन्ध बांधा था। नाम चार्लस कर्ष वालिस था। यही. कर्णवालिस लखनऊक नवाव से जो सन्धि हुयो, उसमें अनेक प्रदेशके द्वितीय पाल और प्रथम मारक्षिस बने । मनोति और प्रसङ्गत रीति रही। इन्होंने पुनर -पिताके रहतं कर्णवालिस लार्ड क्रस बहाते थे । उस विषयको विवेचना लगायो और यह बात १७६२ ई० को इनके पिता मरे। पिळपदके पधि उहरायो-सीमान्त प्रदेयमें सैन्यव्ययके लिये नवाब कारी होने पर यह इहालेण्डेखरके विधय प्रियपाव प्रतिवर्ष ७४ लाख बदले ५० लाख हो रुपये देंगे। हुये। शासनके कार्यम इन्हें सर्वतोमुखी क्षमता और फिर उनसे दूसरे विषय लिया नानिवाला सब रुपया स्वाधीन मत प्रकाश करनेको शशि थो। जब प्रमे बन्द कर दिया गया। नवादको अपने राज्य में स्वाधीन 'रिका-वासियों ने स्वाधीनताके लिये युद्ध किया, तब .भावसे गासनकाय चतानकी क्षमता मिली। उन्होंने पति उमाह तथा विशेष कौशतके साथ पाले हैदरावाद राज्य में निनामये ग हर सर. 1 बहरा।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१३०
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