पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१२४

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रान- कर्ण-कर्णकौटा १२५ राधेय, राधापुत्र प्रभृति भी कहते थे। २ तराष्ट्रक चला था। मुगलोंके पाक्रमणसे मेवाड़के भग्न और नष्ट अंगोंका. इन्होंने पुनः संस्कार कराया। एक पुवा (मारत, पादि ११५३) कणं-मेवाड़ के एक राणा। यह गजपूत-धीरकेशरी धानीके चतुःपाशस्थ प्राकार परिखा द्वारा धेरे गये। प्रतापसिंहके पौत्र और राणा अमरसिंहके ज्येष्ठ पुत्र थे। पेगोलाका जलरोधक बांध भी बढ़ा था। १६२८ ई० पिळनिदेशपर विधर्मी कवनसे जन्मभूमिको बचानक (१६८४ संवत् )को प्रियपुत्र जगत्सिंहके हाय राज्य- लिये इन्होंने अनेक बार मुगल सम्राटे युद्ध किया। भार सौंपं इन्होंने परलोक गमन किया। इनके समय मेवाड़ बहुत बिगड़ा था। पुनः पुनः २ आर्यावर्तके एक सम्राट । यह कण चेदि नामसे लड़नेपर मेवाड़का राजकीय शून्य हुवा और मेवाड़के प्रसिद्ध थे। वर्षदेव देखो। प्रधान प्रधान वीरका प्राण गया। ऐसो अवस्थाम राज- कर्णक (सं• पु०) कर्णयति विभिद्य जायते, कर्ण ख ल । पूत-वीर कितने दिन मुगलवाहिनी के विरुद्ध पस्त्र १वृक्ष प्रभृतिका शाखापत्रादि, पेड़ वगैरहको फोड़कर चला सकते थे ! चन्तकी राजकीष शून्य होनेसे कणं निकननेवाला पत्ता वगैरह। २ मक्य विशेष, एक सूरत नगर लट अर्थसंग्रह करने पर वाध्य हुये । मछली। इसन्निपातविशेष। इस रोगमै दोषवयसे १६१३ ई० को यह जहांगीरके पुत्र खुरम (शाहजहान)- कर्णमूलपर शोथ उठता और तीव्र वर चढ़ता है। फिर से हार गये। फिर मेवाड़ के राणा अमरको मुगल कण्ठप्रह, वधिरता शासन, प्रलाप, प्रखेद, मोह और सम्राट् से लड़ना पड़ा था। सन्धि होनेपर कर्ण खुर दहनका प्रावल्य भी देख पड़ता है। ४ वृक्षादिका मकै साथ अजमेर जा नहांगीर बादशाहसे मिले। एक रोग, पेड़ वगैरहकी एक बीमारो। ५ कण धार, बादशाहने यथेष्ट पादर-अभ्यर्थनाके साथ इन्ह अपने मांभी। (३०) ६ नौकाके पाखं का उसे ध, नाष या दक्षिण पाखं बैठनेको श्रासन दिया। उस समय प्रति जहाजका वगली उभार। ७ तन्तु, किसलय, सूस, दिन बादशाह कण से मिन्नते और बहुमूल्य वस्त्रोप ८ प्रसारित पद, फैले हुये पैर। (नि.) हार तथा विविध य-सामग्री दे सम्मानवर्धन करते भिक्षुक, भीख मांगनेवाला। थे। जहांगोर अपनी जीवनीम लिख चुके है कणकवान् (*.नि.) कर्णकविशिष्ट, जिसमें बगली 'माळभूमिको प्राकृतिक अवस्थाके अनुसार कर्ण डालें रहें। मुखसय्य द्रव्य सामग्री अपने व्यवहार में लाना जानते न कर्ण कटु (सं० वि०) अप्रिय, कानमें खटकनेवाला, थे। वह अतिशय नाजुक और अतिअल्पभायी रहे। जो सुनने में बुरा लगता हो। फिर हमसे बहुत मिलने जुलनेको इच्छा भी वह कर्णकण्डु (सं० पु०-स्त्री.) कर्णस्य कर्णे नातो वा रखते न थे। अपने प्रति विश्वास बढ़ानेके लिये हम कण्डः। कर्ण स्रोतोगत रोगविशेष, कानके गट्टे की उनको सान्वनावाक्यसे पाखास दिया करते। हम एक खुजली । कफसंयुक्ता मारत यह रोग लगा देता है। दिन उन्हें नुरजहांके निकट ले गये। महिषीने उन्हें (माधवनिदान) कफनाशक विधिसमूह हो कर्णकण्डुका हस्ती, अश्व, खड्ग प्रभृति नाना प्रकार पारितोषिक प्रधान औषध है। दिया था। कर्णकण्डू (सं० स्त्रो०) वर्षवारा देखो। वास्तविक जहांगीर कर्ण से विजेताकी तरह व्यव-वर्णक सन्निपात, कर्षक देखो। हार करते न थे। वह सर्वदा कर्ण का सम्झम बढ़ा- कर्णकि (सं० क्लो०) कर्णमल, कानका मैन । नेको सचेष्ट रहते। १९२१ ईमें मेवाड़ के चन्तिम | कर्ण कोटा (सं० स्त्री०) कणं गतः कर्णस्य भेदकः स्वाधीन राजा महाराणा अमरसिंहने ज्येष्ठ पुत्र कर्ण को कोटः, कर्णकोट-टाप् मध्यपदलो। सिंहासन दे डाला। जलौका, कनसन्चायो। २ शतपदी, इजारपा, कन- कार्य के राणा बननेपर मेवाड़में शान्तिका राजत्व खजूरा! 1 (Julus corniſex) Vol. IV. 32 किल्ला . १ कर्य -