1 कपोत जाता है। होमियोपाथिके मतका कोई कोई औषध इसके लिये विशेष उपकारी है। प्रायः खेस रहता, केवल पक्षके वर्णमें ही भेद पड़ता है।. फिर जो चिल्ल सदृश लगता, वह ईष्टक- गिरहबाज कबूतर आकाशमें उड़ते या भूमिपर के रक्त में ईषत् पोत मिला देनेके वर्ण मिलता है। उतरते समय उलट-पुलट गिर लगाता है। यह स्याईको रंग निहायत काला रहता, जिसमें कुछ उसकी जातिका स्वभावसिह कार्य है। इस कामको कुछ नीलापन झलकता है। दोनों पक्षोंपर ही उक्त गिरहबाजी कहते हैं। कोई कोई कबूतर बड़ी | वर्ण होता है। फिर गलदेशवाले पूर्वोक्त दोनों स्तरों में मिरहबाजी करता है।. गिरहबाज एकबार उड़नेसे पालकको शिखायें उन्हीं उन्हों वर्षों की देख पड़ती हैं। बहुत थे चढ़ता, इसीसे अनेक समय श्येन (शिकरा) बिलकुल सफेद और कुछ बैंजनी लगनेवाले खाकी पक्षी द्वारा मारे पड़ता है। फिर कोई कोई एक रंगका कोबिन (कलगीदार) भी कहीं कहीं मिल बारगी ही दोनों ओर गिरह लगा उड़ सकता है। जाता है। इसका चच्च ईषत् क्षुद्र और चक्षुके मणिका एक प्रकारका गिरहबाज़ बांसों चढ़ता है। किन्तु चतुष्पार्श्व प्रसित होता है। पक्षक शेष बड़े पालक पड़ा पहले पूरे तौरपर गिरहबाजी कर नहीं सकता, तीन ही हते हैं। यह अति भोर होता है। घोड़ा-बहुत धूम फिर सौधे उड्ने लगता है। जो अंगरेजीमें इस श्रेणीको नेकोबाइन और जाक मिरहबाज पति अल्प दूर जा गिरहबाजी करता, (Jacobine and Jack ) #a ससे गरमाया समझना पहता है। गर्म होनेसे अधिक लका क्षुद्र श्रेणोका कपोत है। लक का विशेषः दूर उड़ना असम्भव है। चिह्न पुच्छके पालकोंका मयूर-पक्षकी भांति सर्वदा क्या गोला, क्या गिरहबाज-सब तरहके कबूतरोंको छत्राकार रहना है। ऐसे कबूतरको पूरालका कहते 'दृप पछी लगती और उनके लिये फायदेमन्द भी हैं। साधारणत: जिनके पुच्छ, पालकपूर्ण छत्राकार ठहरती है। विशेषतः गिरहबाज़ भली भांति धूप न नहीं पाते, वह आधे लका कहाते हैं। पूरे लके.का: मिलनसे घबरा जाता है। प्रातपहीन स्थान इसके वर्ण समस्त खेत होता है। फिर वर्ण अधिक लिये विषम अनिष्टकर है। गिरहबाज व्याकुल उज्वल सफेद रेशमकी भांति रहते इसको रेशमी होनेरो पुच्छके पालक उखड़ने या कटनेपर पाराम लका कहते हैं। कोई कोई पूरा लका बिलकुल पाता है। यह देय में अधिक बड़ा नहीं पड़ता, काला भी रहता, जो देखने में अधिक मनोहर साधापास १२से १५ इन्च पर्यन्त रहता है। इसको नहीं लगता। पाधा लका सफेद, काला और- अंगरेजीमें टम्बलर-पिजन (Tumbler-pigeon)| बिसुनकान्ताके रङ्गका होता है। जो .लका देख-- करते हैं। नेमें नानावर्णविशिष्ट और सुन्दर रहता, उसका गोला कवृतर देखने में अति सुन्दर लगता है। नाम नकशा पड़ता है। पूरा लका भूमिपर चुगते इसके भिन्न भिन्न परिवारको प्राकृतिम जो विशेष समय बहुत पच्छा लगता है। यह बैठ जाते या बहण्य पाता, वह नोचें लिखा जाता है- चलनेको पैर उठाते अपना. गलदेश कुछ सका ऐसे पवनीदार-इस कपोतको ग्रेगोका विशेष लक्षण सुन्दर भावसे हिलाता, कि देखते होदय मस्तकके पश्चाद्देशसे चक्षुके पाखं को राह पञ्चके ऊपरी प्रानन्द उमड़ पाता है। दो-एक श्रेणीवाले माग पर्यन्त दो स्तर उच्च पालकोंका होना है। इसका उकों के मस्तकपर चोटी नहीं रहती। किन्तु सकल ही पैरों में पर होते हैं। अंगरेजीमें इसको फैन-- एक स्तर वच और अपर स्तर पृष्ठकी ओर झुक टेस-पिजन ( Fantail pigeon ) यानी लमपरा पड़ता, मध्यस्थलं सीमन्तकी भांति रहता है। कबूतर कहते हैं। बैंकोविन सुख, स्याह, सफेद और जद रङ्गका होता है। ष्ठ, पुच्छ, वक्षःसंल और मस्तक मौरानो-स्याह, सुख, जर्द, गहरा को और
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१२
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