यह सीधी 1 करौली करौली (हिं. स्त्री०) खड्ग, तलवार । प्रकार पक्षी देख पड़ते हैं। मत्स्यादि भी बहुत हैं। रहती और भोंकनेमें चलती है। करौलौके पश्चिमांशमें विस्तर सप, कुम्भीर प्रकृति करौली-१ राजपूतानेका एक देशीय राज्य। यह सरीसृप रहते हैं। पक्षा० २६. ३ एवं २६.४' उ. और देशा० ७६ उनिब-करोखीको उच्च गिरिमालामें बड़ा कोयो २५ सथा ७७ २६ पूके मध्य अवस्थित है। यहां वक्ष नहीं। चम्बलनदीके ऊर्ध्व भागमें धातकी, पलाश, भरतपुर और करौली एजेन्सीका तत्त्वावधान चलता खदिर, कार्पाश, शाल, गर्जन, और निम्बवत होता है। इसके उत्तर एवं उत्तरपूर्व भरतपुर तथा धवल- है। यहां कृषि यव, गई, चना, तम्बाकू, धान्य, पुर, दक्षिणपथिम जयपुर और दक्षिण-पूर्व चम्बल नदी ज्वार, बाजरा, इक्षु और सनकी उत्पत्ति है। है। चम्बल नदी ही इसे ग्वालियरसे पृथक करती स्थानीय जलाशय, कुण्ड पार चम्बल नदीके तरङ्गसे है। भूमिका परिमाण १२०८ वर्गमौत और लोक कृषिकार्य चलता है। संख्या प्रायः १५ लाख है। वाणिज्य-यहां वस्त्र, लवण, इक्षु, तुला, महिष एवं करौली राज्य सच, निम्न और पर्वतमय है। वृष मंगाया और धान्य, कार्पास तथा छाग बाहर उत्तर ओर गिरिमाला सीमाके प्राचीररूपसे मस्तक भेजा जाता है। उठाये खड़ी है। गिरिका शृङ्गः उच्चतामें १४०० फीटसे जलवायु-स्थानीय जलवायु अधिक मन्द नहीं। पधिक नहीं। यहां चम्बल नदी ही प्रधान है। ज्वर, अतिसार और वातरोग लग जाता है। किन्तु इस नदीसे पांच शाखा निकल करौली वही हैं। दूसरी बीमारी इस राज्यमें नहीं होती। नाम पञ्चनद । पच्चनद उत्तरमुखी हो वाणगङ्गासे इतिहास-मुकजीको कारिकाके अनुसार करौलीके मिल गया है। करौली नगरके दक्षिण-पचिम कालि प्रथम राना धर्मपाल थे। नीचे उक्त कारिका दी पर और निरौते नामसे दो क्षुद्र नदी बहती हैं। जाती है- इन दोनों नदीमें वर्षाकाल मिन्न अपर समय प्रति- सुक्नीको कारिका। वयानभाटका विवरण। सामान्य जल रहता है। यहां पर्वतोंके कुण्डोंका धर्मपाल जल उष्णप्रधान और प्रस्वास्थ्यकर है। सिंपाल पर्वतमें प्रधानतः दो प्रकारका प्रस्तर है-एक विन्ध्य और अपर मणिप्रस्तर। नहां मणिप्रस्तर नरपालदेव संयामपाल रहता, उसीको चारा और अधिक परिमापसे विन्ध्य भी देख पड़ता है। स्थानीय चुनेका पत्थर नोलाभ, सोचपाल कपिल अथवा हरिहणविशिष्ट होता है। बढ़िया पोचपाख विमौरी पत्थर भी पाया जाता है। ताजमहलका प्रायः विरामपाल भनेकांश करौलीके पत्थरसे ही बना है। यहांका ज्येष्ठपाल विजयपाल विजयपाल एक पत्थर अनेक स्थानमें चूने के लिये फूका जाता तिद्धनपाल तिधुनपाल है। करोखीके अधिकांश ग्राम प्रस्तरनिर्मित हैं। धर्मपाल चिविपाल यहांसे उत्तरपूर्व पर्वतपर सौह-सनि निकली है। कुमार (कुबर) पाल धम्मपाल शीवजन्तु-चम्बल नदीके निकट वनमें सिंह, भल्लक, कुंवरपास हरिण, सांभर, और नीलगाय बहुत हैं। नगरके परिपाल ११८०" सोहपाल हरिपाल पास शशक, उहिडाल, चक्रवाक, कुक्कुट, एवं भनढापाख सोहनपाल जलाशयादिमें वक, हंस, कारडव प्रभृति नाना- समय। नगपाव कुछपाल १०८० " " ११२० १९५० 19 भनयपाल. . अजयपाल
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