१०४ करौषी-करुणमझो करोषो (सं० पु.) करोषः विद्यते यत्र, करीष-दनि । । देवनिन्दा, भूतलपर पतन, क्रन्दन, विवर्णता, जय- करोषयुक्त देश, सूखे गोबरका मुल्क । खास, निर्वातस्य प्रदीपको माति निर्जीववत् निश्वासको रखी (हिं० कि० वि०) तिर्यक् दृष्टि द्वारा, तिरछी रोक और प्रलाप है। करुण रसका व्यभिचार भाव ननरसे। वैराग्य, जड़ता और चिन्ता प्रकृति है। देवमिन्दाका. रुण (सं० पु.) करोति ममः भानुकूल्याय, क. उदाहरण नीचे देते हैं,-. एनन् । उदारिभ्य धनन् । उए ४५३ । १ खनामख्यात निम्बक "विपिने व नटानिवन्धन तव चेदक मनोहर' वपुः । वृक्ष, किसी किसके नौबूका पेड़। ( Citrus decu अनयो घंटना विधः मुट ननु सङगेन शिरौपचर्दनम्।" mana) से हिन्दी महानीवू, चकोतरा, वातावो नोवू (माडिव्यषव राधवदिवास या सदाफल, बंगलामें बतोर या वातापी नीबू, सिन्धीमें सङ्गीतयास्त्र में यह रागरागिनी कापरसमें गेयः बिजोरा, गुजराती में घोलकोतरु, मराठीमें पपनस, है,-भैरव, भैरवी, रामकन्ती, खद, गान्धार, मारवाड़ीम पप्पा, तालिममें बोम्बलिनस, तेलगुमें पाद ! जोगिया, विभास, कुकुम, देवकरी, अलैया, विचा- पन्दू, कनाडौम सकोतराइब , मलय, बोम्बेलिमरुन, वन, सिंदूरा, सिन्ध, सुलतानी, पूर्वी, टोड़ी, गौरी, महिसरीमें पूमपले मूस,ब्रह्मोमें गहतोनेस और सिंहली. केदारा, ईमन कल्याण, जयनयन्ती, हमोर, भूपाली, में जमवूल कहते हैं । यह मलयदीपपुष्च, फ्रेण्डली पौर कान्हड़ा, खम्भाच, झंझोटो, विहाग, बागेश्वरी, सूरत, फिजीमे स्वभावतः उत्पन्न होता है। करुण नवोपसे शहरा, मोहिनी, मालकोष, बङ्गाली, मंचार और भारतमें पाया है उपप्रधान देश में अधिकांश इसे । ललिता सगति है। भारत तथा मधमें यह अधिक होता है। ३ दया, मेहरवानी, दूसरेका 'दुःख दूर करनेको किन्त दाक्षिणात्य तथा वनदेयको अपेक्षा भार्यावर्त में इच्छा। ४ करुणाका विषय, मेहरबानीको वात। यह कम मिलता है। बतावियासे पाने कारणही "अनुरोदितीव करुणेन पविधा विरुदैन ॥ (माध) ५ बुदेव इसे .बतावी कहते हैं। इसका फल. बहुत बड़ा किसी वुदेवका नाम। ६ परमेश्वर। पापियों के रहता और तौलनेपर कभी कभी पांच से दस सेरतका प्रभयजनक परिव्राजकार तीर्थ विशेष। (कालिकापुराण) निकलता है। यह देखनमें गोलाकार होता है। ८ फलितक्ष, मेवादार पेड़। १० मलिका इंच, लक् चिकनी और पोलो देख पड़ती है। गूदा सफेद चमेली।। ११ असुरविशेष । (नि.) १२ दयाधुन, या गुलाबी लगता है। गोंद किसी काम नहीं आता। यह वक्ष,मदा फला करता है। बम्बईके बाजार में जो मेहरवान् । १३ शोकात, रस्त्रोदा । (अ.) १४ गोकसे रोग कर। (को०) १५ पावन कर्म, यकीजा करुण दिसम्बर या जनवरी मास आता, वा सबसे काम। अच्छा कहा जाता है। राजवल्लमने इसके फत्तको कफ, वायु, पाम तथा करुषध्वनि (पु० सं० ) करुणाचकः ध्वनिः। दुक मदीनाशक पौर पित्त-प्रकोपक बताया है। वा शोकमें मानव मुखसे निर्गत शब्द, अफसोमको प्रावाना २ शृङ्गारादि अष्टरमके अन्तर्गत ढतीय रस । साहित्यदर्पण इसका लक्षणादि इस प्रकार सिखता- करुषमझौं (सखी.) करा करण्योम्या महो। नवमलिका, मोतिया । (Jasminum sambac ). बन्धुवान्धवादिके वियोगसे करुण रस उठता है। इसका इसे हिन्दीमें मोतिया, देना, वनमलिंका या मोगरा, कपोतवर्ण होता है। अधिष्ठात्री देवता यम है। करुणरसकी खायिभाव मोक, भासम्बन-भाव पांचजन बंगला मलिक, चाबी में चम, मराठीम मोनरी, (निसका वियोग पड़ गया हो) और उसके दासादि-मारवाडौम मागरा, गुजरातोम मोगरो, तामिसमें को अवखा दीपंनभाव। इसका प्रभाव । मंजिण्य, वैशमै बोमो, बगाड़ोमें 'मविगे, मवव
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१०३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।