पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/९८

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अभाव। ६२ अक्षोड़-अखण्डितर्नु अखरोट (फल)। पौलू वृक्ष। (Juglans regia, अखङ्ग (हि० वि०) न खंगनेवाला। न चुकनेवाला। Walnut) कर्पराल। कन्दराल, अक्षोड़। न घटनेवाला। अविनाशी। अक्षीड़ (सं० पु.) अक्षः विभौतक इव ओडति, अक्ष अखट्ट (सं० पु०) न-खट्ट-अच्, नञ्-तत् । पियाल वृक्ष । ऊड-अच्। पार्वतीय पोलू वृक्ष, पहाड़ी अख,रोट। चिरोजी। पियासाल। (Buchanania Latifolia)। अक्षोनि–(हिं. स्त्री) अक्षौहिणी। अखट्टी (सं० स्त्री०) न-खट्ट-असद व्यवहारः । आखुटो। अक्षोभ (सं० पु०) न-क्षुभ-घञ्, नञ्-तत्। १ क्षोभका सदाचारिणौ। २ अनुद्दग। ३ शान्ति। ४ दृढ़ता। अखड़वार (हिं० पु०) कूर्मी जातिको एक श्रेणो। ५ धीरता। ६ स्थिरता । ७ हाथी बांधनेका खूटा। अखड़जात (अ० पु०) इख़राजातका अपनश। (त्रि०) १ क्षोभरहित । २ चाञ्चल्य या चञ्चलतारहित । १ खर्च । २ खिराज, राजस्व, राजकर । ३ उद्देगशून्य । ४ स्थिर, गम्भीर, शान्त । अखड़ा (हि. पु०) तालाबके बीचका मछली पकड़ने- अक्षोभ्य (सं० वि०) न शुभ-यत्। १ अचञ्चल, स्थिर। वाला गड्डा । चंदवा । मंझान। २ गम्भीर। अखडैत (हि० पु०) अखाड़े में लड़नेवाला। पहलवान । "महोदधिमिवाक्षोभ्यं महेन्द्रसदृशं पति” (रामायणम् ) मल्ल । बलवान्। लड़न्तिहा। अक्षोभ्यकवच (सं० क्लो०) कर्म-धा। तन्त्रोक्तकवच- अखण्ड (सं० त्रि०) न खड़ि-घञ्। जो खण्डित न हो। विशेष। पूरा। साङ्गोपाङ्ग । सम्पूर्ण। अटूट । जिसके टुकड़े न हों। अक्षोभ्यतीर्थ-दूनका दूसरा नाम गोविन्दशास्त्री था। अविच्छिन्न । समग्र। समूचा। २ लगातार । जो बीच में सन् १२४८ ई में माधवतीर्थको मृत्यु होनेसे यह उनके न रुके। जिसका क्रम भ्रष्ट न हो या सिलसिला उत्तराधिकारी हुए। यह आनन्दतीर्थके शिष्य और न टूटे। ३ बेरोक । निर्विघ्न जयतीर्थक गुरु थे। अखण्डन (सं० पु०) न-खड़ि-ल्युट। १ परमात्मा। २ अक्षौहिणी, अक्षौहिनी (सं० स्त्री०) अक्ष-ऊहिणी। काल। (त्रि०) पूर्ण । खण्डरहित। ऊह-इन् ऊहिणी [ अक्षा(हिन्यां हधिवक्रुच्या ; वार्तिक । ] । अखण्डनीय (सं० वि०) १ जिसके टुकड़े या खण्ड न पूरी चतुरङ्गिनी सेना। सेनाका एक परिमाण । हो सकें, जो काटा न जा सके। सेनाको एक नियत संख्या। इसमें १०८३५० पैदल, २ जिसका प्रतिवाद न हो सकता हो। पुष्ट, पक्का । ६५६१० घोड़े, २१८७० रथ, और २१८७०, हाथी | अखण्डल (हि० वि०) अखण्ड। पूरा। समूचा। सम्पूर्ण । होते हैं, जिनकी सम्मिलित संख्या, २१८७०० है। अखण्डानन्द-अइतरत्नकोष, रत्नकोषको टीका, मन्त्री- अक्षण (सं० त्रि०) अश-क्न । काल । व्यापक । अखण्ड । द्वारप्रकरण, महाविष्णुपूजा-पद्धति और मुक्तिसोपान अक्स (अ० पु०) १ छाया, परछाई, प्रतिविम्ब। ग्रन्थके प्रणेता। २ चित्र, तखोर। अखण्डानन्दमुनि-अखण्डानुभूतिके शिष्य । तर्कभाषा- अक्सर, अकसर देखो। प्रकाश-व्याख्या, तत्त्वहीपन-पञ्चपादिका-विवरण प्रभृति अक्सी तस्वीर (फा० स्त्री०) आलोकचित्र । फोटो। ग्रन्थोंके पूर्णता। अख (हिं० पु०) वाटिका। बाग। अखण्डित (सं० वि०) न-खड़ि-त। जिसके टुकड़े न अखगरिया (फ़ा० पु०) वह घोड़ा, जिसके अङ्गसे मलते हुए हों। अविछिन्न । विभागरहित। सम्पूर्ण । पूरा। समय अग्निकणा निकलें। ऐसा घोड़ा सालहोत्र समूचा। जिसमें कोई रुकावट न पड़े। निर्विघ्न । वालोंने दोषी ठहराया है। बाधारहित। लगातार। सिलसिलेवार । अखगावन-विहारको कण्डू जातिके अन्तर्भुक्तं मगही अखण्डितत्तुं (सं० पु०) अखण्डित-ऋतु। बहुव्री । लोगोंकी एक श्रेणी अखण्डितः निरवच्छिन्न-फलपुष्पादिप्रभव ऋतुः समयः अकाट्य।