पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/८७

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अक्षरलिपि मानतः सन् ई से पांच सौ वर्ष पहले पापिरास् पत्र जनक बोध होनेसे छोड़ी गई और साधारण लिपिमें पटमें जैसी सब अरमोय लिपियां लिखी गई थीं, वैसी अपेक्षाकृत घसौटके टुकड़ोंको अक्षरमाला ग्टहीत हुई हो अक्षरमाला सन् ई से २०० वर्ष पहले तक बनी यह शषोक्त नषको लिपि ही वर्तमान अरबोलिपिकी रही। इसी समय मिश्रदेशमें पारस्यराजका प्रभाव जननी है। अप्रतिहत था। ऐसी वक्राकृति या वसीट अरमीय सौरियाके उत्तरवासी खुष्टानों में एष्ट्राङ्गालिया नाम- लिपिके साथ असुरीय कोलफलककी पार्ख स्थ और को दूसरी एक अरमीयलिपिका प्रचलन है। नेटोरीय चुम्बकांश लिखित लिपिका बहुत कुछ सौसादृश्य है। मिशनरी दल इस लिपिको मध्य-एशिया में ले गया था, अरमौय लिपि जल्द-जल्द और घसीटकर लिखनेसे पोछे वह क्रमसे तुर्कस्थानसे मञ्चूरिया तक सुदीर्घ जन-: क्रमश: गोलभावको धारण करती है ; कारण फनिक पदवासियोंके लिपिरूपसे परिगणित हुई। लिपिमें अक्षरोंकी नोके साधारणतः समान हैं। उपरोक्त लिपिको छोड़ अरब देशके दक्षिणस्थित अपनी नोंके गोल होनेसे अरमीय अक्षर, क्रमश: यमन प्रदेशमें और एक तरहको लिपि प्रचलित थो। चतुष्क हिब्रू-अक्षरों में परिणत हुए और फिर उसके अक्षर दक्षिण सेमेटिक या इथियोपिक नामसे धीरे-धीर Palinyraको अलङ्गत लिपि (Ornamental परिचित हैं। व्याकरण और वाक्यविन्यासके क्रम- writing)का विकाश देखने में आया । निर्णयसे इन सब दक्षिण सेमेटिक लिपियोंके भी सेवीय अरब जातिके नवतीयोंमें पहले यह अरमीय और माइनीय नामक दो विभाग बनाये गये हैं। अक्षरलिपि प्रचलित थी। इसके अक्षरोंक अंश अल्प अन्यान्य शिलालिपियों को भांति, यह सेवीय लिपि भी परिवर्तनसे ही वर्तमान अरबी अक्षरोंमें रूपान्तरित दक्षिणसे क्रमशः वाम ओरको बढ़कर लिखो जाती थी, हो जाते हैं। उत्तर-पूर्व अरब-देशक तिमावाले किन्तु कितनी ही इथियोपिक फलक-लिपियों में वामसे मन्दिरस्तम्भमें इस श्रेणीको लिपि विद्यमान है, जो चलकर दक्षिण ओरको लिखते-पढ़ते हैं। यह आज भी सन् ई०से पहले के ५वे शताब्दसे भी पहले खोदी निर्णीत नहीं है, कि किस समय दक्षिण अरब- गई थी। इस लिपिमें प्राचीन अरमीय लिपिके कितने में सेवीय और माइनीय लिपिका प्रादुर्भाव हुआ और ही अंश हैं। इससे परवर्ती समयकी कितनी ही किस समयमें चिरन्तन प्रसिद्ध दक्षिणसे वामको लिपि- नवतीय शिलालिपियां आविष्कृत हुई हैं। समयके अङ्कणरूप सेमेटिक प्रथा वर्जनकर उससे विपरीत यानी तारतम्यानुसारसे इन फलकलिपियोंमें यथेष्ट परिवर्तन वामसे दक्षिणाभिमुखी इथिओपिक प्रथा प्रवर्तित हुई। हो गया है। चार्लेस डोटी, हुबार और इउटिङ्ग प्रभृति भारतीय खरोष्ठीलिपिको तरह ईरानी, अरबी, पण्डितोंने विशेष गवेषणाके साथ इन फलकोंका पाठो सेमेटिक, साइप्रिय, लेटिन, फिनिक प्रभृति सभी पाश्चात्य डारकर उसी लिपिमालाके अक्षरोंका क्रमविकाश भाषाओंको हो लिपिप्रणालो दक्षिणसे वाममुखी थी दिखानेको एक तालिका उद्धृत की है। यह शिला सन् ई०से पहले के ८वें शताब्दमें उत्कीर्ण डिपिलन- फलक प्रधानतः सन् ई०से पहले ७५ और ८ वर्षके को सुबहत् पात्रोपरिस्थ प्राचीन आर्टिकलिपि, किउ- बीचमें खोदे गये थे। इसके लिपिपयायको अनुसरण रीयसे प्राप्त साइप्रीय फलकलिपि और उसके निम्नस्थ करनेसे सहजमें ही वर्तमान अरबी लिपिका अक्षर यूनानी समवर्ग और प्रिनेष्ठीवाले गोल्ड फाइविउलेके विन्यास अनुभूत किया जा सकता है। उपरस्थ प्राचीन लेटिनलिपि प्रभृति दक्षिणसे वाममुखी अरब देशमें किउफिक और नषको नामको दो लिपिका निदर्शन हैं। प्रकारवालो अक्षरमालाका व्यवहार था। शिलालिपि [संख्यालिपि, स्वर, देवनागरी प्रति शब्द देखो।] और मुद्रादिमें साधारणत: प्रथमोक्त लिपि ही व्यवहृत

  • लिपसिउसका कहना है, कि इस इथियोपिक अक्षरमालाका अधि-

हुई थी, इसी कारण साधारण कार्यमें वह, असुविधा कांश प्राचीन भारतीय लिपिसे लिया गया है।