पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७७१

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अभिनव–अभिनवधर्मभूषणाचार्य पौछे कुछ धार्मिक रूपमें देख पड़ा। ताज़ियेदारी । अभिनवकामेश्वर (सं० पु०) वाजीकरणका भेषज, अभिनय नहीं, तो दूसरी कौन चीज़ हो सकती है! बुड्डेसे जवान् होनेको दवा। इसके बनानेको विधि यहूदियों में अभिनयको चाल बिलकुल न रही। इसतरह लिखी गयी है,- "तोलकैकं समादाय पृथगुगन्धकस्तयोः । हां उनके दो प्रधान पुस्तकोंमें पौछे अभिनयका रक्तोत्पलदलाम्भोभिर्मद येत् दिवसवयम् । आभास कुछ-कुछ बा गया था। मर्दयित्वा पुनदेयं गन्ध माषचतुष्टयम् । पोलिनेशिया और अमेरिकामें पहले अभिनयका तस्य व पत्रतीयेन पुनर्दत्वा च गन्धकम् । नाम भी न सुनते रहे। जङ्गली लोग जब आनन्दित शहिन्याश्चापि तोयेन रुध्वा काचघटे दृढ़े। होते, तब कूद-कूद नाचा-गाया करते थे। ततस्तु बालुकायन्त्र पचैयामवयं ततः । मिश्रमें अभिनय अवश्य होते रहा। वहांके धार्मिक काचकूप्याः समाकृष्य सिद्धसूतमतः परम् ॥” (रसरवाकर ) पुस्तकों में अभिनयका खासा आभास मिलता है। अभिनव कालिदास, नव कालिदास-सझेप-शङ्करजय- मिश्रवाले सङ्गीतविद्याका बड़ा आदर करते थे। प्रणेता माधवाचार्यको उपाधि । २ अभिनव कालिदास वह खूब वंशी बजाते और नाचते रहे। नामक कोई स'स्कृत कवि। यह अभिनव भारत- यूनानी अभिनय मिश्र या एशियाके किसी भी चम्यू और भागवतचम्यूके रचयिता हैं । ३ शृङ्गारकाष- स्थानसे क्यों न निकला हो, किन्तु उसकी उन्नति भाष्यप्रणेता। यह काश्यप-अभिनव-कालिदास भी खतन्त्र रूपसे हुयौ थी। उसमें जातीय धर्मका पूरा कहाते थे। समावेश रहा। देवतावोंकी पूजा ही यूनानी अभि- अभिनवगुप्त-१ शैवोंके आचार्य-विशेषका नाम । इन्होंने नयको भित्ति है। सन् ई०से ७०८ वर्ष पहले यूनानि मन्त्र द्वारा शिवपूजापद्धतिको स्थापन किया था। योंके गीतवाद्यने अभिनयका रूप धारण किया। २ काश्मीरके कोई प्रसिद्ध दार्शनिक। यह क्षेम. थेसपिस, प्रिनिकस, आरिस्टोटल और सोफोलिसने राजके गुरु, चुखलके पुत्र, वराहगुप्तके पौत्र, मनो- वियोगान्त अभिनय बनाया एवं सुसेरियनने संयो रथगुप्तके भ्राता, उत्पलदेवके शिष्य और सोमानन्दके गान्त अभिनय आविष्कार किया था। संयोगान्त प्रशिष्य रहे। इन्होंने संस्कृत भाषामें ईश्वरप्रत्यभिज्ञा- अभिनयको उत्पत्ति हंसी-खुशौके गानेसे हुई है। विमर्षिणी, घटकपर-कुलकत्ति, तन्त्रसार, तन्वा- रोमकोंने अभिनय यूनानियोंसे सौखा था। फिर लोक, धन्यालोकलोकलोचन नाम्नी काव्यालोकको भी इटली गाने-बजाने और साजने सजानेका घर टोका, परमार्थसार और उसकी टोका, षट्त्रिंशतिका रहा। रोमक आदिसे ही गाने-बजानेमें हास्य आदि तत्त्वविवरण, विम्बप्रतिविम्बवाद, बोधपञ्चदर्शिका, कितने ही रस मिलाते आये हैं। सन् ई०से ३६४ भगवद्गीतार्थसंग्रह, भैरवस्तव, शाक्तभाष्य, स्पन्दसूत्र- वर्ष पहले रोम-नगर में प्रथम अभिनय हुआ था। पीछे टीका प्रभृति ग्रन्थ लिखे थे। सन् ८८३ ई०से १०१५ लुसियस,पम्मोनियस और दूसरे ग्रन्थकारने पुस्तकरूपमें ई के बीच इनके ग्रन्थ बने रहे। अभिनय लिखना आरम्भ किया। सन् ई०से २४० । अभिनवचन्द्रार्घविधि (सं० पु०) द्वितीयाका चन्द्र वर्ष पहले रोमकोंने अपना संयोगान्त और वियोगान्त निकलते समय होनेवाली रीति विशेष । अभिनय देखाया था। अभिनवतामरस (स' क्लो०) १ बारह अक्षरका अभिनव (सं० पु.) अभि-नु भावे अप। १ आनु. वृत्तविशेष, जिस खास बहरमें बारह हरफ रहें। कूलाके निमित्त स्तव, खुश करनेको तारीफ। (त्रि.) अभिनवं नूतनं तामरस पद्मम्, कर्मधा० । २ नूतन अभिमतं प्रशस्तं नवम्, प्रादि-स.। २ प्रथमोत, पद्य, नया कमल। नूतन, बिलकुल बच्चा, हालका, नया, ताजा । ३ अनु- | अभिनवधर्मभूषणाचार्य-न्यायदीपिका नामक धर्म- भवशून्य, नातजरबेकार, जिसे तजरबा न रहे। शास्त्रसम्बन्धीय सस्क तग्रन्थ-रचयिता।