पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७६७

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अभिनय तरह मृदुमन्द हंसी और हंसकर किस तरह देखेंगो? इसलिये छल करके उन्होंने गलेको मोती- कोमल अङ्गुलौकी उठाकर उर्मिलाको देखाया, फिर माला तोड़ डालौ। माला तोड़ कर उन्होंने सखियोसे उस समय लक्ष्मण कैसे लज्जित होकर अस्पष्ट मृदु कहा,-"अरी! मेरो मोतीको माला टूट गई।" स्वरसे बोले थे-बै उर्मिलां पृच्छत्यार्या"-मुखादिके भाव इतना कह सब इधर-उधर घूमने और मोतियों को हारा विशेष रूप उसका अनुकरण न करनेसे अभि चुनते हुए दृष्टिभर श्रीकृष्णको देखने लगीं। नयमें कुछ भी सौन्दर्य रहनेका उपाय नहीं है। इन सब स्थानों में नायक देखनेको नायिकाके शकुन्तला दुष्मन्तके निकटसे चली जाती है। मनमें जैसे प्रकृत भाव उदय हुआ. मनके जैसे यथार्थ जानेका मन न होते भी जाना चाहिये। फिर चलौ विकारसे शकुन्तला जाते जाते खड़ी हो गई और भी कैसे जाय-अधिक न सही छल करके थोड़ा सा राधिकाने जैसे मोतोको माला तोड़ डाली थी, अभि- ठहरेगी-क्षण भर रहेगी। वह महाराजके सुधा नयके समय ठीक वैसे ही मनका भाव प्रकाश करना पूर्ण चन्द्राननको और थोड़ा सा देखकर जायेगी। चाहिये। हावभाव द्वारा मनका भाव प्रकाश करना- परन्तु उपाय क्या है? अकारण तो विलम्ब नहीं कर ही अभिनयका जौवन है। दुष्मन्तके पाससे शकु- सकती। विना किसी कारणके विलम्ब लगानेसे न्तला चलतो, पेरमें कुशका अङ्गुर चुभता और पेड़में सहेलियां ठट्टा करेंगी। इसीसे चतुर बालिकाने बल कल फंस जाता है, सामान्य भावसे यह सब चतुराई करके कहा,- अनुकरण करना कठिन नहीं है। परन्तु उस समय "अनसूर्य ! अहियावकुससूईए परिक्खद' मे चल कुरवप्रसा शकुन्तलाको तरह चलते चलते खड़े न होनेसे अभिनय हापरिलग'चवकल।" कैसे बनेगा, उस खड़े होने में सुन्दरता न आवेगी। 'अनुसूये ! अब मुझसे चला नहीं जाता। कुशके वीभत्स, करुण, रौद्र प्रभृति रसयुक्त वाक्यहारा नये नये अङ्गुर पैरमें सुईको तरह चुभते हैं। फिर मनका भाव अनुकरण करनको वाचिक कहते हैं। कुरुवकको डारमें मेरा बल्कल फंस गया है। यह अभिनयमें वाक्यहारा मनका भाव प्रकाश करनेको कह कर वह कुरुवकको डालसे अपना वल्कल छुड़ाती थोड़ी बातसे कुछ छल रख और कुछ अस्पष्ट कर और तिरछी नजरसे राजाको देखतो है। मनको बात कहना चाहिये। इसी लिये नाव्यशास्त्रज्ञ छल करके शकुन्तलाने मुंह सिकोड़ा,-पैरमें लोग कहते हैं, कि अभिनय एक आदमोके गुणसे

मानो बहुत पीड़ा हो रही थी। मुह सिकोड़कर मनोहर नहीं बनता। पहले तो नाटक सुकविका

वह खड़ी हुयी। रचा हुआ होना चाहिये, फिर अभिनेता सहता, गोपबालिकाओं को साथ लेकर राधिका जल लेनेके सुगायक, सुश्री और अनुकरणकुशल भी रहे। लिये यमुनापर गई हैं। वहां देखें, तो घाटपर विना इन सब गुणों के अभिनयका मनोहर होना जगत्का मन मोहनवाले श्यामशशि विराज रहे असम्भव है। हैं। गापिका जल हिलारकर घड़ा भरतों और दृष्टि दुष्मन्त राजाके लिये शकुन्तलाके अन्तःकरणमें • भर केवल उसी काले रूपको देखती हैं। सबसे पहले सहस्रों बिच्छुओंको ज्वाला उपस्थित हुई है। शरीरमें - राधिका किनारपर आई और सहेलियोंसे कहने अत्यन्त दाह है, देह जल भुन गई है, यही बहाना लगीं,- कर वह आंख मूंदे सोती है। प्रियम्बदा और "आयिये चलें, देर होती है। इस तरह वह अनुसूया समाप आकर कमलके पत्तेसे हवा करने सखियोंसे कहतीं और तिरछी दृष्टिसे बार बार लगीं। हवा करते करते उन्होंने प्यारमें एक बार ? श्रीक्वष्णको ओर देखती हैं। परन्तु कुछ विलम्ब होना चाहिये, क्योंकि विना विलम्ब कृष्णको वह कैसे हला सचन्दले ! भवि सुभदि दै गलिणीपत्तवादौ ? शकुन्तलासे पूछा,-