पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७६३

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७५६ अभिधातव्य-अभिधान नाम, खिताब। २ शब्दनिष्ठ अर्थबोधजनक शक्ति पांचवें शताब्दमें प्रबल हो उठनेपर ब्राह्मणोंने सब विशेष, लफज को हरफी ताकत। अभिधीयते अनेन, बौद्ध पुस्तकोंको जला दिया था। उस समय केवल करणे अङ । ३ वाचक शब्द, लफ़ ज़, आवाज़। अभिधान हो बच गया। अमरकोष तीन खण्डोंमें ४ भट्टमतसे-फलजनक व्यापाररूप शब्दनिष्ठ भावना विभक्त है, इसीसे कोई कोई इसे त्रिकाण्ड भी कहते विशेष। ५ अलङ्कारशास्त्रके मतमें-साङ्केतिक अर्थ हैं। इस पुस्तकमें प्रायः दश हजार शब्द हैं। नानार्थ बतानेवाली शब्दको शक्ति। प्रकरणमें शब्दोंके स्थापनका कोई नियम नहीं; केवल "तव सङ्केतितार्थस्य बोधनादग्रिमाभिधा ।" (साहित्यदर्पण). अन्तवर्णसे ग्रथित हुआ है। इसके आनुकूल्य लिङ्ग अभिधातव्य (सं० त्रि.) कहा या नाम लिया जाने और शब्दका अर्थबोध होता है। किन्तु हमारे देशमें वाला, जी जाहिर करनेको हो। पहले आद्यवर्णानुक्रमसे अभिधानको रचना को न अभिधांव सिन् (सं० वि०.) अपना नाम खोनेवाला, जाती, इसीसे कोई शब्द निकालने में बहुत कष्ट होता जो अपनी शोहरत जाया कर रहा हो । था। इसके अतिरिक्त दूसरा भी एक दोष है। अनेक अभिधान (सं० क्लो०) अभिधा भावे लुबट् । एकथन, स्थलोंपर एक एक चरणमें पृथक् पृथक् शब्द और बातचीत। अभिधीयते कथ्यते अनेन करणे लुपट् । उनके अर्थ लिखे हैं, अतएव किस शब्दका क्या अर्थ २ नाम, ध्वनि, निर्घोष। ३ शब्दार्थ प्रकाश-करनेवाला है, यह भी समझनेके लिये कुछ विवेचना रखना अन्यविशेष । चाहिये। संस्कृत भाषामें अनेक अभिधान चलते हैं। किन्तु विश्वप्रकाश पुस्तक सचराचर केवल "विश्व" उनमें कुछ पुस्तकोंका ही अधिक आदर है। अमर नामसे प्रसिद्ध है। महेश्वर खुष्टीय बारहवीं शताब्दी में सिंह-विरचित नानार्थवगैयुक्त नामलिङ्गानुशासन जीवित थे। विश्वप्रकाशमें एक अक्षर, दो, अक्षर, है, यह पुस्तक सचराचर अमरकोषके नामसे प्रसिद्ध तीन अक्षर इत्यादि प्रणालीसे शब्द ग्रथित हुए हैं। है। महेश्वर विरचित विश्वप्रकाश, हेमचन्द्र-विरचित अन्त्य प्रत्ययानुसार इन शब्दोंके स्थापनको दूसरी भी अभिधानचिन्तामणि, हलायुध-प्रणीत अभिधानरत्न प्रणाली देखी जाती है। जी हो, इच्छा होने पर कोई माला, पुरुषोत्तमदेव-विरचित त्रिकाण्डशेष एवं हारा शब्द ढूंढ़ निकालना सहज नही है। वली, मेदिनीकर प्रणीत नानार्थशब्दकोष, और केशव हेमचन्द्र भी खुष्टीय बारहवीं शताब्दीमें महेश्वरके रचित कल्पद्रुनाममाला, धरणौकोष, अनेकार्थध्वनि बाद प्रादुर्भूत हुए थे। अनेक स्थलों में हेमचन्द्रने महे. मञ्जरी, माळकानिघण्टु, शाश्वत, बहुरचित एकाक्षर श्वरको प्रणालीके अनुसार हो शब्द संग्रह किये हैं। कोष, महादेवप्रणीत अव्ययकोष, रामशर्मवत उणादि- अभिधानरत्नमालाप्रणेता हलायुध गौड़के सजा कोष और शब्दार्णव प्रभृति बहु अभिधान है। लक्ष्मणसेनको सभामें विद्यमान थे। इसका परिचय इन सब अभिधानों में अमरकोष ही अधिक प्राचीन उन्होंने आप हो ब्राह्मणसर्वस्वके प्रारम्भमें दे दिया है। है। इसकी रचना महाराज विक्रमादित्यके सभासद - पुरुषोत्तमदेव हृष्टीय तेरहवीं शताब्दी में जीवित अमरसिंहने की थी। इतिहासमें एकाधिक्य विक्रमा थे। उनका रचा हुआ विकाण्डशेष अमरसिंहके दित्यका नाम मिलता है। उनमें जिनके नामसे संवत् अभिधानका परिशिष्ट मात्र है। यह अमरकोषको चला, वही प्रथम रहे। सन् ई०के पञ्चम और प्रणालीसे हो सङ्कलित हुआ है। जी सब शब्द सचरा- एकादश शताब्द दूसरे भी दो विक्रमादित्य हुये थे। चर और कहीं नहीं देखे जाते, उनमें कुछ-कुछ यह बात कहना कठिन है, कि अमरसिंह कौनसे पुरुषोत्तमके त्रिकाण्डशेष-संग्रहमें मिलते हैं। विक्रमादित्यको सभामें रहे। अमर बौद्ध थे। प्रवाद । मेदिनीकर खुष्टीय पन्द्रहवीं शताब्दीमें प्रादुर्भूत है, कि उनके रचे हुए अनेक काव्य भी रहे। खुष्टीय | हुए थे। इनके शब्द सङ्कलनको प्रणाली कुछ विश्व-