पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७५८

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७५१ चाहिये। अभिचार पादनाथै चार आचरणं । अभि-चर-भावे घज । हिंसा, यो मन्त्र पढ़ बकरके शिरपर फूल चढ़ा उसकी हनन। पहले अथर्ववेदोक्त मारण उच्चाटन आदि पूजा करना और वलिमन्त्र पढ़ना चाहिये। फिर अभिचार एवं मूल कर्म प्रभृति नाना प्रकारको क्रिया यह मन्त्र पढ़कर वलिको उत्सर्ग करना पड़ता है,- सम्पन्न की जाती थी। अद्याविने मासि महानवम्यां अमुकगोबोऽमुकदेवशर्मा अमुकशव नाथाय तन्त्रमें छः प्रकारके अभिचारका उल्लेख है। यथा- इमं छाग अमुक दैवतं भगवत्यै दुर्गायै तुभ्यमई सम्प्रददै। उसके बाद, १ मारण, २ मोहन, ३ स्तम्भन, ४ विद्देषण, ५ उच्चा आँ क्र. फट: यह मन्त्र पढ़कर वलिको काट डालना टन, ६ वशीकरण । १ मारण-क्रियादिद्वारा किसौका एतदुधिर' दुर्गायै नमः, यह कर रक्त और प्राणनाश करना। २मोहन-किसीके मनको मोह मस्तक देते हैं। अन्तमें मूलमन्त्र पढ़ अष्टाङ्गके मांससे लेना। पहले राजसभा आदि स्थानोंमें जाते समय होम करनेपर उसी क्षण शत्र का प्राण नष्ट हो कोई-कोई मनुष्य इसी क्रियाका अनुष्ठान करते थे। जाता है। पहले लोगोंको ऐसा विश्वास था, कि मालिक तान्त्रिक लोग अब भी मारणादि अभिचार करते उससे मुग्ध होकर उनपर प्रसन्न होंगे। ३ स्तम्भन- हैं। कहते हैं, कि शतभिषा नक्षत्रको अधीरातक मन्वहारा अस्त्र, अग्नि आदिको शक्तिका नाश करना। समय जलमें डुब्बो मार और शत्रु का नाम लेकर 'पहले लोगोंको विश्वास था, कि ऐसे मन्त्र और सरौतेसे एक ही बार एक सुपारी काट डालनेपर औषध आदि वर्तमान रहे, जिनसे शरीरमें अस्त्रका शत्र का प्राण नष्ट हो जाता है। हमने वृद्ध लोगोंसे घाव न लग सकता और आग डालनेसे भी जल न सुना है, पहले जो मारणादि अभिचार क्रिया करते, सकती थी। ४ विहेषण-दो मनुष्यों में अधिक प्रीति उन लोगोंको राजा और जमीन्दार दण्ड देते थे। रहते विशेष क्रियादि द्वारा उनके मनमें भेद डाल २ मोहन-तान्त्रिक होम, मन्त्र और औष- विरोध खड़ा कर देना। ५ उच्चाटन-मनको चञ्चल धादिद्दारा लोगोंको मुग्ध कर लेते हैं। कहते, या उन्मत्त बनाना। ६ वशीकरण-किसी स्त्री आदिको सधवा स्त्रीका चिताभस्म, सुरत और अगुरु-चन्दन ‘वशीभूत कर लेना। एकसाथ मिलाकर बायें हाथको प्रदेशिनी वा कनिष्ठा १ मारण-पहले अनेक प्रकारसे मारण किया अङ्गसौसे कपालमें विन्दी लगा देनेपर उसे देख सभी जाता था। अब भी कहीं-कहीं यह काम होता है। मुग्ध हो जाते हैं। तन्त्रसारके मतसे मारणक्रिया इस तरह सम्पन्न की ३ स्तम्भन-पूर्वकाल तान्त्रिक लोग नानाप्रकारको जाती है- चतुराईसे किसीका वास्तम्भन, किसीका हस्तादि पहले नियमके अनुसार देवीको पूजा होम आदि स्तम्भन, शत्र की सेनाका आगमन स्तम्भन आदि अभि- करना चाहिये। उसके बाद जिस शव को मारना चार करते थे। अम्निस्तम्भनको प्रक्रिया इस तरह हो, उसका नाम लेकर खड्न अभिमन्त्रित करना श्राव प्रसिद्ध है, बेलका आटा और जोंक दोनोंको एक- श्यक है। चोम् विरुई रुपिणि चण्डिके वैरिणममुकं देहि देहि स्वाहा । साथ पीसकर हाथमें लगा लेनेसे अग्निस्तम्भन होता फिर एक बकरा ले-छागादिकममुन्नोसि। इस तरह है। तान्त्रिकोंके मतसे शीतकालमें स्तम्भन अभिचार शत्र का नाम निकाल अभिमन्वित करना चाहिये। करना श्रेष्ठ है। यह प्रकरण समाप्त हो जानेपर बकरके मुंहपर तीन ४ विद्देषण-यह क्रिया प्रोमकालमें पूर्णिमा जगह लाल सूत बांध शत्रु का नाम ले प्राणप्रतिष्ठा तिथिको दोपहरके समय की जाती है। जिन लोगों में करना पड़ता है। उसका मन्त्र यह है- विद्वेष उत्पन्न करना हो, भैसका गोबर और घोड़ेको लोद गोमूत्र में मिलाकर उसीसे उन लोगोंका नाम श्रीम् पयं स वैरी यो हेष्टि तमिमं पशुपियं । विनाशय महादेवि स्फ स्फे खादय खादय ॥ लिखनेपर शीघ्र ही विरोध उठ खड़ा होता है।