पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७४४

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दौलत। अब दुल्लह वस्साफ-अब्बास ७३० मुहम्मदके गुजरातवाले बाजबहादुरसे हार जानेपर | अब्धिज (सं० पु.) अब्धौ समुद्र जायते ; जन-ड, अकबरने इन्हें उस प्रान्तको फिर जीतने भेजा था। ७-तत्। १ चन्द्र, चांद। २ शङ्ख । ३ अश्विनीकुमार। किन्तु इनके स्वतन्त्रताको चेष्टा देखानेपर अकबरने (त्रि.) ४ समुद्रजात, बहरसे पैदा हुआ। इन्हें मार भगाया। अब्धिजा (सं० स्त्री०) १ सुरा, शराब। २ लक्ष्मी, अब्दुल्लह वस्साफ-'तज्जीयत्-उल् अयसार' नामक ग्रन्थप्रणेता। सन् १३०० ई०के समय इन्होंने गुजरातके | अब्धिझष (सं० पु०) समुद्रका मत्स्य, बहरको मछली। विषयमें लिखा था,-'गुजरातका दूसरा नाम कम्बा- अब्धिडिण्डोर (सं० पु.) समुद्रफेन। यत है। इस प्रान्तमें ७०००० ग्राम और नगर बसे | अधिद्दीपा (सं० स्त्री०) अधिसंख्याता लवणादि सप्त- होंगे। सभी स्थान प्राबाद और लोगोंके पास संख्याता दीपा यस्याः । सप्तद्वीपा पृथिवी। रुपये-पैसेका ढेर लगा है। चार ऋतुमें सत्तर अधिनगरी (सं० स्त्री०) अब्धौ समुद्रसमीप नगरी। प्रकारके सुन्दर फूल खिलेंगे। वायु इतना विशुद्ध है, हारका। कि लेखनौसे जो चित्र खींचा जाता, वह सजीव देख | अब्धिनवनीतक (स० पु०) अब्धेनं वनौतमिव, इवे पड़ता है। कितने ही प्रकारके वृक्ष, लता, वनस्पति प्रतिकृतौ इति कन्। चन्द्र, चांद। आदि आपसे आप उत्पन्न होंगे। जाड़ेमें भी भूमि | अब्धिफल (सं० पु०) समुद्रजातफल, समुद्रफल । नाफरमान्से खिली रहती है। वायु स्वास्थ्यकर हो इसका गुण यह है,- और सदा वसन्त चमकेगा। जाड़ेको फसल ओसकी “फल' समुद्रस्य कटूपणकारि वातापह भूतनिरोधकारि। तरौसे ही तैयार हो जाती है। गर्मीको फसल विदोषदावानलदोषहारि कफामयवान्तिविरोधकारि ॥” ( राजनिघण्ट) पानीपर निर्भर करेगी। वर्षमें दो बार काले अङ्गर अब्धिफेन (स० पु०) अब्धेः फेनः, ६-तत् । समुद्रफेन । पकते हैं। अब्धिमण्डू को (सं० स्त्री०) अब्धि मण्डयति ; मण्ड- अब्दुल वहाब-वहहाबी धर्मप्रतिष्ठाता और किसी उक गौरादि० डोष, ६-तत् । शुक्ति, सीप । अरबौ नृपतिके पुत्र। तुर्की धर्मके विरुद्ध उपदेश देने अधिवक्ष (सं० पु०) शाखिमूलवृक्ष । कारण यहां अपनी मालभूमिसे निकाल दिये गये थे। अधिशय (सं० पु.) अब्धौ शेते ; शी अधिकरण इन्होंने अपने मित्र दरायियह-नृपतिके साहाय्यसे अच्, ७-लत् । समुद्रस्थ वटपत्रशायी विष्णु । तलवारको धारपर अपना धर्म फैलाना चाहा और सन् अब्धिशयन, अधिशय देखो। १७८७ ई के समय दरायियहमें ही मर गये। अब्धिसार (सं० पु. ) रत्न, जवाहिर। अब्देवताक, अब्दवत देखो। अधिहिण्डोर (सं० पु.) समुद्रफेन । अब्दैवत (सं०वि०) आपो देवता यस्य, बहुव्रौ। अब्धाग्नि (सं० पु.) अब्धी सागरे स्थिता अग्निः । जलोपासनासम्बन्धीय । बड़वानल, बहरके भीतर रहनेवाली आग। अधि (संपु०) आपो धीयन्तेऽस्मिन् ; धा आधार अब्बास (अ.पु.) वृक्षविशेष, कोई पौदा। यह कि, उपपदस। १ सरोवर, तालाब। २ समुद्र कोई एक गज ऊंचा रहेगा। इसका पत्र कुत्तेके बहर। ३ चार या सातको संख्या। कर्ण-जैसा दीर्घ एवं ताक्ष्णाग्र होता और मोटा मूल अधिकफ (सं० पु.) अब्धः समुद्रस्य कफ इव। चोबचीनी कहाता है। पुष्प प्रायः रक्तवर्ण, कभी- समुद्रफेन। इसका गुण यह है,- कभी पीत और खेत भी खिलेगा। जब पुष्प गिर "चतुष्यः शीतलचैव पटलादिरुजाहरः । जाता, तब उसकी जगह काला-काला मिर्च-जैसा वीज निकलता है। सरब विषदीषनः कर्णशूलहरः परः । कफञ्च कण्ठरोगश्च पित्तश्च व विनाशयेत् ॥ (वैद्यकनिघण्टु ) अब्बास-मुसलमान-धर्माप्रवर्तक मुहम्मदके चाचा। Vol. I. 185