पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७१८

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अबुल फज.लके ग्रन्थ अबुल्-फजल-अबुल माली और राजसिंह नियुक्त किये थे। कईबार युद्ध होनेसे । ते रहे। दूसरे दिन वह उसी द्रव्यको बनानेको अनु- वीरसिंह परास्त पड़े। शेषको वह जङ्गलमें जाके मति लगाते थे। जो द्रव्य सुस्वादु न मालम पड़ता, छिपे थे। राजसिंहने उन्हें पुनर्वार युद्धमें हरा दिया। अबुल फजल उसके विषयमें कुछ न कहते ; केवल किन्तु कुछ काल बाद ही अकबर मर गये थे। इस चखकर देखनेके लिये वही पात्र सन्तानके पास लिये वीरसिंहको फिर आशङ्का न रही। जहांगीरके सरका देते रहे। अबदुर-रहमान एक बार उसे चख सम्राट होनेपर उन्होंने ओळ पुरस्कार पाया और पाचकसे चखनेको कहते थे। पाचक चख और देख- तीन हज़ार सवारके मन्सब बने । कर वैसी सामग्री फिर कभी न बनाता था। अबुल फजलका चरित्र विशुद्ध रहा। वह शत्रुके अबु ल-फज.लके पुत्रका नाम अब्दुर-रहमान और प्रति भी रूढ़ वाक्य न बोलते थे। शैख़ पौत्रका नाम विशोतान रहा। चरित्र अब्दुन्नबी और मखदूम-उल मुल्कने मुबा मृतासे ग्यारह दिन बाद अब्दुर-रहमान भी मर गये। रकका विस्तर अपमान किया। कुछ काल बाद इन्होंने 'अकबर-नामा', 'आइन-इ-अकबरी' और सम्राट्ने इन दोनो व्यक्तिको कौशलसे निकालने के 'मकतूबात-अल्लामी' लिखने कारण बड़ी प्रसिद्धि लिये मक्के भेज दिया था। अबुल्-फ़जल यह बात पायौ थी। 'मक्तूबात अल्लामौ' तो पत्र- अकबर नाममें लिख गये हैं। किन्तु लेखके किसी व्यवहारके लिये आदर्श हो समझो जाती छत्र में भी विद्वेष नहीं देखते। है। ईरानी पिलपैकी कहानियोंका अनुवाद 'अयार अबुल-फ़ज.ल सत्यको ही सर्वप्रधान स्वीकार करते दानिश' भी इन्हींका बनाया है। इन्होंने मुगल बाद- थे। इसीसे कुरान्को सकल बातपर इन्हें श्रद्धा न रहो। शाहोंका इतिहास अकबर राज्यशासनके ४७वें वर्षतक इनके बार-बार हिन्दू या नास्तिक कहानेका यही लिखा था, उसी वर्ष इनको मृत्यु हुयी। कारण था। इनका चित्त अतिशय उवत रहा और अबुल्-फज,लको रचना गम्भौर, सतेजः और मधुर यह सभी लोगोंके साथ प्रणय रख चलते थे। घरके निकलेगी। बुखारके राजा अब्दुल्लहने किसी समय दास-दासी प्रभृति सकल पर ही इनका विशेष अनुग्रह कहा था,-समाट अकबरके तौरको अपेक्षा अबुल्- रहा। कर्तव्य कर्ममें त्रुटि पाकर भी कभी इन्होंने फजलका लिखा देखनेसे भय अधिक आता है। किसीको नहीं डांटा-डपटा। यह निर्दिष्ट समयपर अबुल फेजो-यह शैख मुबारकके बेटे, अबुल फजुलके सबको ही वेतन दे देते, किसीको कार्यमें अपटु देखते भाई और सम्राट अकबरके मित्र रहे। इनका जन्म भी बोलते न थे। इनको धारणा रहो–'किसी कर्म सन् १५४७ ई में हुवा था। इन्हें संस्कृत भाषाका चारीको नियुक्तकर कामके समय यदि अकर्मण्य अच्छा ज्ञान रहा। इन्होंने हिन्दी भाषामें कितने ही पायिये, तो भी उसे कर्मच्युत करना न चाहिये। दोहे बनाये हैं। अबुल्-फ़ज़ल और फ़जी शब्द देखी। कर्मच्युत करनेसे प्रभुको ही कलङ्क लगेगा।' लोग | अब ल माली-सम्राट-अकबरके प्रधान कर्मचारी। समझते, जिसे मनुष्य पहचानने की क्षमता नहीं होती, बलवायी बननेपर यह काब ल भाग जानेको वाध्य वही पहले न देखकर अकर्मण्यको काम सौंपता है। हुये थे। वहां पहुंचनेपर अकबरके भाई मोर मिर्जा किन्तु अबुल फजलके पक्ष में यह कलङ्क लग न सकेगा। मुहम्मद हाकिमने अपनी बहन मिहर-उन्-निसा अबुल्-फज.ल असम्भव पाहारशक्ति रखते थे। यह बेगम इन्हें व्याह दी और उस राज्यमें प्रथम श्रेणीका प्रति दिन बाईस सेर द्रव्य खाते रहे। कर्मचारी बनाया। किन्तु थोड़े ही महीनों बाद पाहारशक्ति भोजनके समय इनके पुत्र अब्दुर रहमान इन्होंने काब लका शासन पानेको इच्छासे सन् १५६४ पास ही बैठते थे। अबुल्-फजल जिस द्रव्यको दो बार ई०के मार्च मास मिर्जा मुहम्मद हाकिमको माताको उठाकर खाते, अब्दुर-रहमान उसे ही सुस्वादु समझा हत्या को। वह इनको सास रहों और असाधारण