पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७१५

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००८ अबुल फजल सामन्त छूट पड़े। साथमें स्वयं अकबर और उनके उसके द्वारा बहुत हो अच्छा फल हुवा था। मुबारक प्रिय सदस्य कवि फैजो थे। अबुलफ.जल साथ न गये, जानते थे,-ईश्वरकी दृष्टि में हिन्दू-मुसलमान सभी आगरेमें ही पड़े रहे। किन्तु विहारमें फजलको न समान हैं। किन्तु कुरान यह मत नहीं ठहराता। देख सम्राट्ने फैजीसे कई बार पूछा-बताया था। फिर जो कुरानके खिलाफ. चलता, वह काफ.र होता में जीने वह सब बातें अपने कनिष्ठके पास लिख भेजी। है। मुबारक कुरानको सब बात न मानते, इसौसे बङ्गालका युद्ध दो दिनमें पूरे पड़ा था। अकबरने लोग उन्हें नास्तिक समझते थे ।अबल-फजलने बालक- समर जीत लिया और पताका फहराते फहराते कालमें पितासे जो पाठ पढ़ा था, अकबरके कानमें शीघ्र ही फतेहपुर-सोकरी वापस पहुंचे। जिस वही मन्त्र फेंक दिया। भारतवर्षको जनसंख्या समय जो अच्छा जचे, उस समय उसौके अनुसार अनेक है। भारतीयोंको जाति विभिन्न, धर्म विभिन्न काम करना चाहिये। अब लफ.जलने कुरानके विजय और विश्वास भौ विभिन्न रहेगा। सभी काममें परिच्छेदको टौका बना रखी थी। सम्राट्को बङ्गाल कुरानके मुवाफिक चलनेसे प्रजाका कल्याण नहीं और विहार जीत वापस आनेपर इन्होंने उन्हें वही होता। चिरकाल अन्ध-विश्वासमें पड़नेपर मनुष्य टीका-पुस्तक उपहार दिया। उन्नति कैसे करेगा ! कुरानमें जिस जगह भ्रम है, वह उस समय मखदूम-उल-मुल्क और शैख़ अबदुन्नबी स्थल छोड़ देना चाहिये। जिसमें भम न हो, उस अकबरके प्रधान सभासद रहे। वह दोनो हो विषयको कुरानमें न रहते भी मानना उचित है। सुत्री थे। धर्मको दोहाई दे शिया सम्प्रदाय और ऊपर कही हुयी बातें हो अबु ल-फजलके चिरजीवनका हिन्दू जातिपर अत्याचार करना उनका काम रहा। मूलमन्त्र रहीं। इसी मूलमन्त्रसे उन्होंने अकबरका यह सब बात अकबरके कानमें पहुंची। अबुल कान फूका था। सम्राटक नूतन नियम चलानेका फजलने देखा,-राज्यको उन्नति और समाजका फल यह निकला,-पहले हिन्दू और अन्य-अन्य संस्कार करनेको अच्छा सुयोग आया है। उससे लोगों सम्प्रदायपर जो अत्याचार उठते थे, वह सब मिट का मङ्गल हो और अपनी प्रतिपत्ति बढ़ेगी। इन्होंने गये। सकल धर्म और सकल सम्प्रदायके सन्यासा अकबरसे परामर्श कर यह प्रस्ताव सुनाया था, आने और सभामें आदर पाने लगे थे। उधर दुष्ट “सम्राट् सकल राज्य-विषयके कर्ता हैं। जो नया लोगोंको भी क्षमता दिन-दिन घट चली। कानन जरूरी पड़ेगा, उसे सम्राट् स्वयं बनायेंगे। उस समय अकबरको सभा फतेहपुर सीकरीमें प्रजाके नियमानुसार चलनेसे इस जन्म में सुख होगा रहौ। फैजी और फ.ज.ल दोनो वहां ही रहते थे और परकालमें सहति मिलेगो।" सर्वप्रथम फेजी कुमार मुरादको पढ़ानेके लिये शिक्षक सभामें वादानुवाद उठा,-सभी विरोधी बन गये। और दो वत्सर बाद आगरा, काल्पी और कालञ्जरके चारो ओरसे आपत्ति आ पड़ी थी। लोगोंने कहा, सदर हुये। सन् १५६५ ई में अबुल्-फजल एक "इसका कोई ठिकाना नहीं, अबुल फजल नास्तिक हैं हजार अश्वारोही सैन्यके मन्सब और दूसरे वर्ष. या हिन्दू। जो प्रस्ताव किया गया है, वह कुरानके दिल्लीके दीवान् बने थे। मुवाफिक नहीं आता।" किन्तु वादानुवाद बढ़ाना सन् १५८८ ई०के अन्तमें अबुल फज़लको माता विफल पड़ा, सुबो पक्ष अवशेषमें निरस्त हो गया था। मर गयौं। उस समय अकबरका प्रतिष्ठित - फजलने अपने हाथ प्रतिज्ञापत्रको लिख स्वाक्षरित चल रहा था। सम्राट्र्स कुछ कहनेको किसीका किया। जो विरोधी रहे, उन सब लोगोंको भी साहस न रहा, किन्तु सभासदोंमें अबुल्-फज़लके शत्रु खाक्षर बनाना पड़ा था। अवश्य थे। स्वयं सलीम भी सुयोग लगनेसे उस न तन नियमका उद्देश्य महत्. रहा। शेषमें शत्रुता देखाने में न चकते रहे। किसी दिन सलीम । नूतन धर्म