पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६८३

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६७७ अफगानस्थान मिटा और गज.नीमें तुर्की सुबुक्तगीनको राजधानी पांचवें जमान् मिरजाने इस राजाको अपने हाथ बनो। सन् ई० के १२वें शताब्द तक उनके लड़के लिया। भाइयों में खूब झगड़ा चलता और लड़ाई होती महमूद और उसके सन्तानका दबदबा रहा, जिस थो । सन् १८१८ ई० में सद्दोजाइ काबुल, गजनी और समय गजनी एशिया में सबसे अच्छा शहर बन गया कन्धारसे निकाले गये और मुश्किलमें हेरात पहुंचे। था। इसके बाद अलाउद्दीन् गोरीका आधिपत्य हुवा। सन् १८४२ ई० में कमरान्के मरने तक हेरातका उन्होंने अपना भाई बहरामके हाथों मारे जाते ऐसा ही डावांडोल हाल रहा था, पोछे उनके मन्त्री गजनीका मटियामेट किया था। अन्तको खारिजम यार मुहम्मदने उसपर कब्जा किया । अफगानस्थानका राजवशके हाथ यह देश गया। इसी वंशके जला बाकी हिस्सा बर कजाइयोंके अधीन था। सन १८२३ लुद्दीनने चङ्गेज खान्की चढ़ाई रोको थो। सन् १३२१ ई० में सिखोंने नौशेहरे में अफगानोंसे लड़ पेशावर से १४२१ तक तातारों और १४५०से १५२६ और सिन्धुके दाहने किनारको जीता। तैमूर शाहके तक लोदी पठानोंका राज्य रहा। पौछे पश्चिम मरते ही तुर्कस्थान स्वतन्त्र बन गया था। अफ.ग.ानस्थानमें कुतै राजा बने, और गोर, हेरात सन् १८३८-४२ में प्रथम अफगानयुद्ध हुवा। और कन्धारपर शासन चलाया। सन् १८०८ ई०में माउण्ट ष्टुवर्ट राजदूतको भांति सन् १५०१ ई० में अफगानस्थान मुगल बादशाह पेशावरमें शाहशुजासे मिलनेको भेजे गये थे। सन् बाबरके अधिकारमुक्त हुआ । सन् १५२२ ई० में बाबरने १८३२ ई में बोखारा जाते समय सर अलेक्जन्दर मुगल वंशीय अरघूनोंसे कन्धारको छोड़ाया था। बार्नसने काबुलको देखा । सन् १८३३ ई में ईरानि- सन् १५२६ ई. को २१ वीं अप्रेलको पानिपथमें योंके हेरात घेरने और रूशके आगे बढ़नेसे घबरा हिन्दुस्थान जीतने बाद बाबरने दिल्ली-साम्राज्यमें बड़े लाटने बार्नसको काबुल अमौरको कचहरीमें काबल और कन्धार मिला लिया। सन् १७३८ ई० रसोडण्टकी भांति रहनेको भेजा था। किन्तु दोस्त में नादिर शाहके आक्रमण करने तक काबुल भारतके मुहम्मद उससे राजी न हुये। अन्तमें अंगरेजी राज्यमें हो अधीन रहा, किन्तु कन्धार कभी मुगलों और कभी शरणलेनेवाले शाहशुजाको अफगानस्तानको गद्दी ईरानी सूफियोंके हाथ चला जाता था। सन् १६४२ पर बैठानका विचार किया गया। पजाबके राजा से १७०८ ई. तक सफवो या सूफी कन्धारमें राज्य रणजित् सिंहने अपने राज्यसे अंगरेज़ी फ़ौज कावुल करते रहे, किन्तु पीछे गिलजाइ ईरानी हाकिम जाने न दी थी। शाहनवाज खान्के अत्याचारसे चिढ़ बलवायी बने सन् १८३८ ई. के मार्च महीनेमें लड़ाई शुरू और सूफियोको निकाल बाहर किया। मौर वाइस हुयी। बोलन घाटीको राह २१ हजार फौजके साथ कन्धारके राजा हुये। अन्तको वाइसके लड़के महमूद सर जोड्न् कोनने ( Sir John Keane ) काबुल- ईरानियोंसे लड़े और सन् १७२२ ई के अकोबरमें पर धावा मारा था। कन्धारके कोहनदिल खान् ईरानको जा जीता था। ईरानको भागे। सन् १८३८ ई०के अप्रेल महीने सन् १७३७-३८ ई० में नादिरशाह दुरानोने कन्धारमें शाहशुजा गद्दीपर बैठाये गये थे। २१ वीं काबुल और कन्धारको जीत लिया। सन् १७४७ जुलाईको इञ्जिनियरोंने गजनीका फाटक सुरङ्गसे उड़ा ई० में नादिर शाहके मारे जानेपर सद्दोजाइ वंशके उसपर अधिकार किया और दोस्त मुहम्मद हिन्दू अहमद खान् राजा बने थे। सन् १७७३ ई० में वह कुशको ओर भाग खड़े हुये। अन्तको आठ हजार अपने लड़के तैमूरको अफगानस्थान, पञ्जाब, काश्मीर, सिपाहो वहीं छोड़ और शाहशुजाको अफगानस्थान तुर्कस्थान, सिन्धु, बलूचिस्थान और खोरासानका सौंप सेनापति सर जोहन कोन भारत राजा सौंप मर गये। तैमूरके तेईस लड़के थे। उनमें पाये थे। 170 वापस