पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६७७

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अप्रिया-अप्सरस् ६७१ बीमारी। अप्रिया (सं. स्त्री०) १ शृङ्गिमत्स्य । २ वोदालि- | अप्व (सं० त्रि०) अप-वेच्-ड, अपवयति अपगमयति मत्स्य । (त्रि.)३ नापसन्द । सुख प्राणांच। १ भय, खौफ। २ व्याधि, बीमारी। अप्रीति (सं० स्त्री० ) १ प्रीतिका अभाव, स्नेहशून्यता, अप्वा (सं० स्त्रो.) आप्नोति, आप-वन् । शेव जड्डा- मुहब्बतका न रहना, नापसन्दगी, नाराजी, दुश्मनो। ग्रीवाशमीराः। उप १।१५२ । १ वायु, हवा। २ व्याधि, २ पीड़ा, दर्द, तकलीफ। ३ भय, खौफ। अप्रीतिकर (स• त्रि०) १ असन्तुष्ट, विरुद्ध, अकृपालु, अप्स (सं० क्लो.) आप बाहुलकात् स। १रूप, नामहरबान, खिलाफ। २ अग्रहणीय, असन्तोषप्रद, २ रस, अर्क। ३ जल देनेवाला वस्तु, जो नागवार, मुज़िर, जो खुश न करता हो। चौज पानी बखू शती हो। ४ अविनाश, बरबाद अप्रोत्यात्मक (स० वि०) पौड़ायुक्त, दर्दसे भरा, न करनेकी हालत। जो तकलीफसे ताल्लुक रखता हो। अप्सर (सं० पु.) जलमें गमन करनेवाला जोव, अप्रेण्टिस (अं० पु०-स्त्री०) उम्मीदवार, बेतनखाह जो जानवर पानी में चलता हो। काम सीखनेवाला। (Apprentice) अप्सरःपति (सं० पु.) अप्सरसां पतिः, ६-तत् । अप्रेतराक्षसी (सं० स्त्री.) न प्रेता प्राप्ता राक्षसौम्, वगैवेश्याका पति, परियों का मालिक, इन्द्र। अत्या०-तत्। तुलसी दृक्ष । (Ocimum Sanctum) अप्सरस् (सं० स्त्री०) अभ्यः सरन्ति, अप्-सू- (अ० पु.) अंगरेजी मास-विशेष । असुन्। स्वर्गको वेश्या, आस्मान्को परी । सागर. महीने में तौस दिन रहते हैं। (April) मन्थनकालमें समुद्रजलसे निकलने कारण इनका नाम अप्रेलफूल (अं० पु०-स्त्री० ) अप्रेल मासका मूर्ख, अप्सरा पड़ा। अप्सरस् शब्द नित्य बहुवचनान्त जो शख स अप्रेल महौनेको पहली तारीख को बेव है। किन्तु क्वचित् इसका एकवचनान्त प्रयोग भी क फ साबित हो। युरोपीय समाज पहली अप्रेलको देख पड़ेगा। रामायण में लिखा, कि इनकी संखया आपसमें तरह-तरहको दिल्लगी उड़ा एक दूसरेको साठ करोड़ है। षष्टि कोच्यो भव' स्तासामसराणां सुवर्चसाम्।' बेवक फ़ बनाता है। किन्तु साठ करोड़ नाम कही नहीं देखते। ताचो, अप्रेमन् (सं० क्लौ०) घृणा, ईर्षा, नफ़रत, दुश्मनो। मेनका, रम्भा, उर्वशी, तिलोत्तमा, सुकेशी, मिश्रकेशो, अप्रैष (सं त्रि०) प्रेष मन्त्रसे प्रार्थना न किया मजुघोषा, अलम्बु षा, विश्वाची, पञ्चचूड़ा, भानुमती, हुवा, जो प्रेष मन्वसे न मनाया गया हो। अबला, रम्या, पुञ्जिकास्थला, महारङ्गवती, विद्युत्- अप्रोट (सं० पु.) भारद्वाजाखा पक्षी, जिस चिड़ियेका पर्णा, अरुणा, रक्षिता, केशिनी, सुवाहु, सुरता, सुरसा, नाम भारद्वाज रहे। सुप्रिया, अतिवाहु, उग्रम्पश्या, उग्रजित् प्रभृति नाम अप्रोषिवस् (वै• त्रि.) अदूरगत, स्थित, न गुज़रा सुनने में आये हैं। हुवा, मौज द, जो ठहरा हो। तैत्तिरीय आरण्यकमें लिखा है, कि प्रजापतिके अप्रौढ़ (स. त्रि०) निरभिमान, गवरहित, नम्र, मांससे अरुणगण, केतुगण एवं वातराशनगण निकले कातर, नागुस्ताख, बेघमण्ड, शायस्ता, डरपोक । थे। उन्हों अरुणने केतु अञ्जलिसे जल उठा जपरको अप्रौढ़ा (सं० स्त्री०) १ अविवाहिता कन्या, जिस फेंक दिया। फेंककर वह बोल उठे,-'देवगण ऐसे लड़कीकी शादी न हुई हो। २ जिस कन्याका ही बनें। उसौ समय देवगण, मनुष्यगण, पिढगण विवाह हो गया, किन्तु वयसको न पहुंची हो, गन्धर्वगण एवं अप्सरोगण उत्पन्न हुये। उसोको कम उम्र में व्याही गयो लड़को। अर्धदिक् कहते हैं। अप्लव (सं० वि०) १ नौशून्य, जहाज, न रखनेवाला। “अथारुणः केतुरुपरिष्टादुपा दधात्। एवा हि देवा इति । ततो देव- २ संस्तरणरहित, जो न तैरता हो। मनुष्याः पितरः । गन्धर्वाप्सरसोदतिष्ठन्। सोर्धा दिक।" (वा । -