पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६६९

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अप्रतीकार- -अप्रत्युत अप्रतीकार (सं० पु०) १ दमन-विहीनता, विरोध- | अप्रत्ता (सं० स्त्रो.) अविवाहिता स्त्री, कन्या, जिस राहित्य, रोकको नामौजूदगी, बदलेका न लिया औरतकी शादी न की गयी हो। जाना। (त्रि.)२ दमनके अयोग्य, लादवा । "अप्रत्ता चेत् समूढ़ान् लभते मालकं धनम् ।" (स्म ति ) अप्रतीकारी, अप्रतिकारिन् देखो। अप्रत्यक्ष (सं० अव्य.) अक्षोः प्रति अव्ययी टच् अप्रतीक्ष (सं० त्रि०) नास्ति प्रतीक्षा यस्य ; गौणे प्रत्यक्षम्, नज्-अव्य० । १ अतीन्द्रिय, इन्द्रियज्ञानके ह्रस्वः, नञ्-बहुव्री। १किसौको अपेक्षा न रखने अभाव, बेजान-बूझ, आंखके पौछ। (त्रि. ) प्रत्यक्ष- वाला, जो पौछ फिरके न देखे। (अन्य ) २ पोके मस्यास्तौति ; अर्शादित्वादच् प्रत्यक्ष प्रत्यक्ष-विषयम्, न देखके। नज-तत् । २ इन्द्रिय-ज्ञानके अतीत, दृष्टि से छिपा हुवा, अप्रतीक्षा (स. स्त्रो०) प्रतीक्षाका अभाव, राहका अदृश्य, जो मालूम न हो। ३ अज्ञात, जाना न हुवा । न देखना। अप्रत्यक्षता (सं. स्त्री०) अनुभवशून्यता, गैर मह- अप्रतौघात, अप्रतिघात देखो। सूसियत, बारोको, मालूम न पड़नेको हालत । अप्रतीत (वै० त्रि.) पश्चात् अप्रदत्त, वापस न अप्रत्यक्षशिष्ट (स.नि.) अस्पष्टरूपसे शिक्षित, दिया गया। साफ़-साफ तालीम न पाये हुवा, जो अच्छीतरह अप्रतीतता (स. स्त्री०) अप्रतीतत्व देखो। सिखाया न गयो हो। अप्रतीतत्व (सं० ली.) १ अज्ञातस्थिति, समझमें | अप्रत्यनीक (सं० पु.) काव्यालङ्कार विशेष । इसमें न आनेवाली बात। २ काव्यका दोष विशेष, शाय रिपुको विजय कर सकनेसे उसके द्रव्यादिको तुच्छ रोका कोई खास एब। सहज रचनामें कठिन संज्ञा नहीं समझते। लगानसे यह दोष आता है। "रावणसो हम लरहिंगे यद्यपि बली अपार । अप्रतीति (स. स्त्री०) न प्रतीतिः, नञ्तत्। तौन लोकको नौतिबो भूले समर मंझार ॥" १ अविश्वास, नाएतबारौ। २ ज्ञानका अभाव, समझ अप्रत्यय (सं० पु.) न प्रत्ययः, नत्र-तत् । अर्थवदधातु- न पड़नेकी हालत। रप्रत्ययः प्रादिपदिकम् । पा १।२।४५। १ अविश्वास, अशपथ, अप्रतीत्त (सं० त्रि.) प्रति-दा-क्त प्रतीतम्, नत्र -तत् । अज्ञान, अहेतु, अश्रद्धा, नाएतबारी, शक । २ प्रत्यय अप्रतिदत्त, वापस न दिया हुवा। भिन्न । (त्रि. ) नञ्-बहुवी० । ३ अविश्वस्त, जिसपर अप्रतीप (सं त्रि.) न प्रतीपम्, विरोधे नत्र-तत् । एतबार न आये। ४ अविधीयमान, जिसमें प्रत्यय अनुकूल, मुखातिब। न लगे। अप्रतीपदर्शिनी (सं. स्त्री०) प्रतीपं प्रतिकूल अप्रत्ययस्थ (स. त्रि०) व्याकरणमें प्रत्ययसे सम्बन्ध पश्यति, प्रतीप-दृश-णिनि स्त्रीत्वात् डीप् प्रतीपदर्शिनी, न रखनेवाला। नत्र-तत्। जो चीज़ प्रतीपदर्शिनी न हो, स्त्रीका | अप्रत्याख्यात (स. त्रि०) विरोध न किया गया, अभाव, औरतको छोड़ दूसरी चीज । जिसके खिलाफ कोई न हुवा हो। 'प्रतीपदर्शिनी वामा वनिता महिला तथा।' (अमर) अप्रत्याख्यान (सं० लो०) प्रत्याख्यानका न होना, अप्रतुल (सं० लो०) न प्रतुलम् । १ प्रकष्ट परिमाणका गैरतरदौदी, जो बात खिलाफ़ न हो। अभाव, भारी वज.नका न रहना, कमी, ज.रूरत । अप्रत्याख्यय (सं० त्रि०) प्रति प्रा-ख्या अर्हार्थ यत् (त्रि०) नास्ति प्रकृष्टा तुला यस्य धनादेः, नञ्-बहुव्रौ । प्रत्याख्येयम्, नञ्-तत् । अपरिहार्य, अत्याज्य, खिलाफ २ उत्कर्षरहित, बेवज.न, जिसे तौल न सकें। न कहने काबिल, जो छोड़ने लायक न हो। अप्रत्त (स• त्रि०) प्र-डुदाञ् दाने क्त, ततो नत्र । अप्रत्युत, (संत्रि०) अनाक्रान्त, जिसपर हमला अप्रदत्त, दोन हुयी। न हुवा हो।