पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६५५

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बतायेंगे। अपूप्य-अपूर्वत्व ६४६ अपूप्य (सं० क्लो०) अपूपका योग्य आटा, मैदा । (पु.) नास्ति पूर्व पूर्ववर्ती यस्य। ६ परब्रह्म, पर- २ खुराक। मेश्वर। (क्लो०) पूर्वे न दृष्टम् । स्वर्गजनक शुभादृष्ट, अपूर (हिं० वि०) आपूर्ण, भरा हुवा, लबरेज़। नरकजनक दुरदृष्ट, भली या बुरी किस्मत । अपूरणी (सं० स्त्री०) न पूर्यते मूले त्रिफलकत्वात्, "शाब्दबोधे पूर्व नोपस्थितमित्यत एवापूर्वम्।" (हरिदास) पूर कर्मणि ल्युट् ङौप्; नञ्-तत्। स्त्रियाः पु'बदित्यादि शाब्दबोधके पहले न रहनेसे अदृष्टका नाम अपूर्व अपूरणौ प्रियादिषु। पा हा३३७। १ शाल्मली वृक्ष, सेमर, पड़ा है। धर्मकार्य या पापकार्य करनेसे ही उसका सम्बुल। २ कार्यास वृक्ष, कपासका पेड़। ३ पूरणी फल स्वर्ग या नरक नहीं निकलता। इस स्थलमें अर्थक प्रत्ययभिन्न। आर्य अपने-अपने कर्मके लिये फलका द्वारखरूप अपूरना (हिं.क्रि.) १ आपूर्णन करना, भरना। अपूर्व ( अदृष्ट ) मानेंगे। उनके मतमें, अपने-अपने २ हवा भरना, नाद निकालना। अपूर्वसे यथाकाल फल मिला करता है। स्मृतिवेत्ता अपूरब (हिं.) अपूर्व देखो। कलिकापूर्व और परमापूर्व-दो प्रकारका अपूर्व अपूरा, अपूर देखो। उसकी जगह सोलह श्राद्ध में सोलह अपूरी, अपूर देखो। कलिकापूर्व होनेपर उसौसे एक परमापूर्व बनता अपूर्ण सं० त्रि.) पूर्ण-णिच्-त; न पूर्णम्, नञ्-तत् । और वही परमापूर्व प्रेतत्वके नाशका कारण ठहरता १ असम्पूर्ण, जो पूरा न हो, नाकामिल, कम । (क्लो०) है। मीमांसक तौन अपूर्व मानेंगे,-१ प्रधानापूर्व २ जो अङ्क पूरा न पड़े, अधूरी अदद। ( परमापूर्व ), २ अङ्गापूर्व और ३ कलिकापूर्व । अपूर्णकाल (सं० त्रि०) न पूर्ण कालो यस्य, नत्र - दर्शपौर्णमास यागमें उत्पन्न हुवा प्रधानापूर्व या बहुव्री। १ उचित कालके मध्य सम्पूर्ण न हुवा, जो परमापूर्व, प्रयाजादि अङ्गका अङ्गापूर्व और उसके मुनासिब वक्त में पूरे न पड़ा हो, पेशअज़वक्त, अगैती, भौतरवाले क्रियासमूहका अपूर्व कलिकापूर्व कहाता नारसौदा, अधूरा, बेमौका। (पु. ) कर्मधा। है, जैसे ब्रीहि(धान्य)प्रोक्षणादि संस्कार। कलिका- २ जो काल पूर्ण न हो, अधूरा वक्त । पूर्व, परमापूर्वको निकाल मिट जायेगा। अङ्गापूर्व, अपूर्णकालज (स त्रि०) उचित समयसे पूर्व उत् परमापूर्व का फलविशेष मात्र देखाता है । दैवात् यदि पन्न, जो मुनासिब वक्त से पेश्तर पैदा हुवा हो, अङ्गकम न बने, और प्रधान कम हो जाये, तो कच्चा। प्रधानापूर्व अवश्य ही निकलेगा। किन्तु विशेष इतना अपूर्णता (सं० स्त्री०) पूर्णताका अभाव, अधुरापन, हो होता, कि फलगत कुछ अल्पता आती है। नातमामी। प्रधान कार्य न बननेसे उसे अङ्गके साथ करे, किन्तु अपूर्णभूत (स० पु.) असमाप्त भूतकाल, माजी अङ्गके अनुरोधपर प्रधान कार्य कभी न चलाये। नातमाम, जो गुजरा हुवा जमाना पूरी न पड़ा हो अपूर्व कर्मन् (स० क्लो०) धार्मिक कर्म या याग प्रपूर्यमाण (स० त्रि०) जो पूर्ण न किया गया विशेष, जिस कर्मका भावी फल पहले न देख पड़े। नातमाम, अधूरा। अपूर्वता (सं० स्त्री०) अपूर्वस्य भावः, भावार्थे तल्-टाप् । अपूर्व (स० त्रि०) सुन्दरतया कुत्सिततया वा नास्ति प्रमाणान्तरालभ्यत्व, प्रमाणान्तरमें न मिलनेवालेका पूर्व पूर्वभूतं यस्य यस्माद्दा, नञ्-बहुव्री०। १ अनोखा, धर्मविशेष, तात्पर्यावधारणका हेतुविशेष, विलक्षणता, गरमामूल। २ अनुपम, आश्चर्य, विचित्र, नामुशा निरालापन, बेनज़ौरी। बिह, ताअज्जुबअङ्गेज, निराला। ३ अभूतपूर्व, नूतन, अपूर्व त्व (सं० लौ०) अपूर्वस्य भावः, भावार्थे त्व। जो पहले न रहा हो, नया। ४ अज्ञात, जो पहले | अपूर्वता, पूर्व के अप्राप्तका धर्म, अनोखापन, जोड़ न न मिला हो, अजनवी। ५ हेतु-शून्य, लासबव। मिलनको हालत। “न प्रकतावपर्वत्वात् ।" ( कात्यायन ) 163 -