पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६४८

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अपामार्ग भाग नीचेको लटकेगा। यह भारतवर्ष में प्रायः कभी पागल गीदड़, कुत्ते आदिके काट लेनेपर जला- जगह पाया जाता है। तङ्क होने में लटजीरा महौषध है। पहले काटे वैद्यशास्त्रके अनुसार लटजीरा तिक्त, कटु और हुए स्थानको कुरौसे अच्छी तरह चौरकर उसके उष्ण होता है। यह धारक और वान्तिकर ठहरेगा। ऊपर कच्चे लटजीराका प्रलेप कर दे। इसमें कुछ इसके सेवनसे कफ, अर्श, कण्डु, उदरामय और दाहिका शक्ति है, इसका प्रलेप देनेसे विष बहुत कुछ विष मिटता है। यूरोपीय चिकत्सकोंने इस दूर हो जायेगा। उसके बाद पूर्णवयस्क व्यक्तिको पौधको विशेषरूपसे परीक्षा कर इसके अनेक गुण ३।४ दिनके अन्तर प्रातःकालमें आध पाव लटजीरके स्वीकार किये हैं। उनके मतसे यह कटु और मृदु पत्तेका रस सेवन कराये। फिर सप्ताह पीछे इसके विरेचक है। उदरी, शोथ, अर्श, फोड़ा और कण्डु पत्ते भावना दे। इस प्रकार चिकित्सामें रखकर प्रभृति रोगोंको इसके सेवनसे शान्ति होगी। भोजनके साथ रोगीको यथेष्ट गायका घी खिलाना इसका फल और पत्तेका रस वान्तिकर होता है। चाहिये। प्रथमावस्थासे इस प्रकार यत्न करनेपर इसके सेवनसे शृगाल, कुत्ता और सांपका विष भी प्रायः असाध्य जलातङ्क नहीं होने पाता। नष्ट हो जायेगा। डाकर टर्नरने 'फर्मेकोपिया इंडिका' शोथ एवं बवासोरके लिये लटजौरका काष्ठ हो नामक पुस्तकमें लिखा कि, सांप काटनेपर अधिक प्रशस्त है। दो ड्राम पत्रमूल पाव भर गर्म लटजीरा उपकार पहंचता है। इस देशके सर्प-वैद्य जलसे ढके हुए बरतनमें तीन घण्टे भिजो रखो सांप काटनेपर लटजौरका समस्त पौधा मिर्च के साथ यह फाण्ट आधौ छटांकको मात्रासे प्रतिदिन तीन बांट कर रोगीके सब अङ्गोंमें चुपड़ देते और कच्ची बार सेवन कराना चाहिये। पत्तीका आध पाव रस पिलाते हैं। इस रसके पेटमें पुराने ऐकाहिक ज्वरमें पारोके दिन प्रातःकाल पहंचनेसे कुछ देर बाद अत्यन्त वमन होता है। किसी ही लटजौरको जड़ हाथपर बांध देनेसे फिर ज्वर किसीको दस्त भी आयेगा। यदि एकबारके सेवनसे नहीं आता। देखा जाता, कि अनेक स्थलों में दस्त और वमन न हो, तो कुछ देर बाद फिर आध स्नायुमण्डलके क्रियाविकारसे ही पारीका ज्वर पाव रस पिलाना चाहिये। किन्तु केवल इसका दौड़ता है। इन सब स्थानों में इस प्रकारको औषधसे रस पिलाकर ही निश्चिन्त न हो जाये; इसके साथ फल निकलेगा। जहां सांपने काटा हो, उसके ऊपर तीन चार धागे खाज खुजली आदिमें कच्ची हल्दीके साथ साथ • कसकर बांधे, मस्तकके ऊपर ठंडा पानी छोड़े और लटजौरका सारा पौधा पीसकर शरीर भरमें लगानेसे कपड़ेका कोड़ा बनाकर जखमपर ज़ोर ज़ोरसे रोग अच्छा हो जाता है। पुराने घावके लिये फटकार। कोई कोई क्षतस्थानको कुरोसे काट कर लटजीरा बहुत अच्छी दवा है। सरसोंका तेल लटजौरका प्रलेप लगाते हैं, उससे भी शायद दस्त एक पाव, लटजीरको जड़ एक छटांक, और गुलाबी और वमन लगता है। सिन्दूर सोवा तोले लाये। पहले कण्डे को जलाकर मेजर मेडेन् कहते हैं, कि लटजौरके समीप पौतलके बरतनमें तेल चढ़ा देवे। धीमी धीमी आँच- लखेरौ, बर प्रभृति विषैले पतङ्ग नहीं आ सकते। में जब तेलका फेन मर जाय, तो उसमें सिन्दूर आनेपर उनका इन्द्रियस्तम्भ हो जाये, इसलिये छोड़े, उसके बाद लटजौरको जड़ छोलकर डाल वह फिर काट न सकेंगे। डाकर शर्टरके मतसे बिच्छ दे। जड़ भुन जानेसे तेलको उतार लेना चाहिये । आदि कौड़ोंवाले विषका लटजौरा महौषध है। जखमको साफ कर उसमें प्रति दिन यह तेल २४ हमारे देश में किसीको बर अथवा बिच्छू काट लेनेपर बार लगानेसे घाव शीघ्र ही अच्छा हो जाता है। लोग जखमपर लटजीरा बांटकर लगा देते हैं 'यजाब प्लाण्ट' नामक पुस्तकमें ण्यार्टने लिखा