पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६४५

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असाध्य अपाकज–अपाच ६३६ (त्रि.) ३ असिद्ध, कच्चा, जो पका न हो। ४ प्राज्ञ, अपाक्रिया (स. स्त्री०). अप-आ-क भावे श टाप् । विद्वान्, अनल्प, अशिशु अजरा, अनिष्पत्ति, असिद्ध, अपाकरण, अपसारण, दूर या अलम करना, हटाना। अपचन, अक्लेद। अपाक्ष (सं० ली.) अपनतम् अनुपगतम् अचम् मनुष्यका साध्य और पाक दो इन्द्रियम्। अतिक्रां तत्। १ इन्द्रियके निकट जात, प्रकार होता है। जल और अग्नि प्रभृति हारा प्रत्यक्ष । (वि०) २ प्रत्यक्षका विषय । ३ विना आंखका, चावल आदि पकाना मनुष्यका साध्य है। मनुष्य- ख़राब आंखवाला। का असाध्य पाक भी दो प्रकार है। यथा, काल अपाङक्त, अपात य देखो। क्रमसे फलादिका पाक एक प्रकार एवं जठराग्निद्दारा अपाङ्क्तेय (सं० त्रि.) सद्भिःसह पक्तिभोजनमर्हति भुक्त अन्नादिका पाक अन्य प्रकार होगा। अर्थिं यक् ततो नञ्-तत्। साधुओं के साथ एक अपाकज (सं० त्रि.) न पाकाज्जायते जन-ड। पंक्ति में भोजनके अयोग्य । अस्मी तोले सोना चुराने- नञ्-तत् । पाकज भिन्न, जो पाकज न हो। वाला, पतितादि, लौव, नास्तिक, भण्ड जटादि "अपाकजानुष्णाशीत: स्पर्शस्तु पवने मतः।” (भाषापरिच्छेद) धारी, जो वेद वा वेदाङ्ग अध्ययन न करे, यज्ञादि वायुमें जो स्पर्शगुण है, वह पाकज नहीं होता। न विषयमें योगाताहोन, धत, शठ, सङ्करजाति, चिकित्- अति उष्ण और न अति शीतल । सक, पुजारी ब्राह्मण, मांसविक्रयी, लोहादि निषिद्ध अपाकरण ( स० क्लो०) अप-अ-क-ल्य ट। निराकरण, द्रव्य विक्रयकारी प्रभृति अनेक रूप मनुसंहितामें निषेध, अलग करना, दूर करना, हटाना। अपात य बताये गये हैं। अपाकरिष्णु (सं• त्रि०) अप-अा-क्क बाहुलकात् इष्णुच् । अपाङ क्य (सं० वि०) साधुभिः सह भोजने न पंक्ति- दूरीकरणशील, अपसारणक्षम, निवारणशील, अलग महति, नत्र-तत्। अपाङ्क्तेय, साधुओंके साथ करनेवाला। जो एक पंक्ति में बैठकर भोजन करने के योगा न हो। अपाकर्लोस् ( स० अव्य० ) अप-आ-क-तुमर्थे तोमुन्। अपाङ्क्तयोपहत (सं० त्रि०) अशुद्ध मनष्योंकी उप- अपाकरणनिमित्त, निराकरणके लिये, हटानेको। स्थितिसे अपवित्र वा भ्रष्ट । अपाकर्मन् ( स० क्लो०) अप-आ-व-मनिन् । निकास, अपाङ्ग (सं० पु०) अपाङ्गति तिर्यक् चलति नेत्र निराकरण, भुगतान, अदायगी, चुकौता। यत्र अप-अङ्ग-घज । १ नेत्रका प्रान्त, आंखका कोना । अपाकशाक ( स० क्लो०) न पच्यतेऽसौ अपाकः पाका- २ कामदेव। ३ तिलक, बिन्दो। ४ लटजौरा। ना इत्यर्थः तथाभूतः शाको यस्य। आर्द्रक, अद (त्रि०) ५ अङ्गहोन। (स्त्री०) अपाङ्गी। रक, पादा। अपाङ्गक (सं० पु.) अप अपकष्टमङ्ग यस्य कप् । अपाकिन् (सं० त्रि०) पाकोऽस्तास्य पाक इनि, नञ् १ अपामार्ग, लटजीरा। २ नेत्रान्त । तत् । पाकशून्य, अपाक, कच्चा, जो पका न हो। छोर । (त्रि.) ४ अङ्ग होन। अपाकृत (संत्रि.) अप-श्रा-क-ता। निराकत, अपाङ्गदर्शन (सं० लो०) अपाङ्गेन नेत्रप्रान्तेन दर्शनम्, दूरीकत, दूर या बरबाद किया हुआ। ६-तत्। कटाक्ष, तिरछी नज़र। अपाक्कति (स• स्त्री०) अप-श्रा-क भावे तिन् । अपाङ्गदेश (सं० पु०) आंखसे बाहरवाले कोनेके निराकरण, दूरीकरण, हटाना, ले लेना। चारो ओरको जगह। अपावत्य (स' अव्य०) अप-आ-क-ल्यप् । निराकरण | अपाङ्गनेत्र (सं० लो०) अपाङ्ग पर्यन्तं नेत्रम् । दीर्घ- करके, निकालकर, अलग करके, शोधकर। नेत्र, दीर्घनत्रयुक्त, बड़ी आंखवाला। अपाक्तात् (स० अव्य०) अधोदिक् जात, अपरदिक्- अपाच् (स० वि०) अप अञ्चति अप-अच्च-क्विप् । जात, पश्चिमदिक् जात, पीछेसे, पश्चिमसे । १ अपगमनकर्ता, जो चला जाय। (अव्य०) २ पौछ । ३ आंखका