पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६३३

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अपवर्तित-अपवित अपवर्तित (स त्रि०) अप-वृत-णिच्-क्त । परिवर्तित, । अपवार्य (स० अव्य० ) अप-व-णिच्-ल्यप् । आच्छा- बदला हुआ, पलटाया गया। दन करके, छिपा करके। नाघ्योक्तिसे, जिसमें दूसरा अपवत्यै (सं० त्रि०) अप-वृत-णात् । (Multiple) जेफ । कोई सुनने न पावे। अन्य राशि द्वारा जिस राशिको भाग देनेसे कुछ भी अपवास (सं० पु.) अपमृत्य वासः । अपसरणा, न बच रहे, उसे उस राशिका अपवता कहते हैं। भाग जाना, चल देना। जैसे १२ राशि ४ अङ्कका अपवर्ता है। अपवाह (सं० पु०) अपहार्य वाहः स्थानान्तर- अपवश (हिं० वि०) निज अधीन, अपने अखतियारका । प्रापणम्। १ अनुमान, एक जगहसे दूसरी जगह ले अपवाचा (हिं. स्त्री. ) अपकीर्ति, अपवाद, निन्दा । जाना। २ वृत्तरत्नाकर-लिखित एक प्रकार वर्णवृत्त । अपवाद (सं० पु०) अप-वद भावे घञ् । निन्दा, उसका लक्षण यह है,-"मोना: षट सगगिति यदि नव रस रस कुत्सित वाद, प्रवाद, अपकीर्ति । २ विश्वास, प्रणय।३ शर यतियुतमपवाहाख्यम् ।” अर्थात् जिसके आदिमें एक मिथ्या बात। ४ आदेश, विशेष विधि । ५ वेदान्त मतसे मगण, उसके बाद क्रमसे छः नगण, उसके बाद मिथ्याभूत पदार्थके निवारणार्थ उपदेशविशेष वाधक, फिर सगण, रहे और नवें, पन्द्रहवें अक्षरमें यदि यति जिससे वाधा दी जाय। पड़े, तो उस वृत्तको अपवाह कहते हैं। अपवादक (सं• त्रि.) अप-वद-ख ल् । सामान्य अपवाहक (सं.त्रि.) एक जगहसे किसी चोजको शास्त्रसे विशेष शास्त्रका व्यवस्थापक विशष शास्त्र, दूसरी जगह ले जानेवाला, ग्टध्र-यंत्र । निन्दक, निरासक, प्रतिरोधक, अयशस्कर, निन्दा अपवाहन (सं० लो०) अप-बह-णिच-ल्युट। पर- करनेवाला, वदनामी फैलानेवाला, विरोधी। देशके किसोको स्वदेश लाना, एक स्थानसे दूसरे अपवादकर (सं. त्रि.) अपवादं करोति अप- स्थानमें पहुंचा देना। वाद-क-ट। अपवादकारी, अपवाद करनेवाला, अपवाह्य (सं० त्रि०) अप-वह कर्मणि णात् । लोगोंको निन्दा करनेवाला, खल व्यक्ति । दूर करनेके योगा। (अव्य०) २ दूरीभूत कराकर। अपवादित (सं० त्रि०) निन्दित, जिसका विरोध अपवाहित (स० वि०) स्थानान्तरित, एक जगहसे किया गया हो। दूसरी जगह लाया हुआ। अपवादिन् (सं० त्रि.) अप-वद-णिनि। अपवादकर्ता, अपवाहुक (सं० पु०) भुजस्तम्भरोग, वायुके प्रकोपसे अपवाद करनेवाला, निन्दा करनेवाला। उत्पन्न एक रोग जो बाहुको नसोंको सुखाकर उसे अपवादी (हिं. वि.) निन्दक, विरोधी, बुराई बेकाम कर देता है। करनेवाला। अपविक्षत (सं० त्रि०) बेजखम, अछूता । अपवारण (स० क्लो०) अप-व-णिच् नन्दादि० ल्यु । अपविघ्न (स' त्रि.) अपगतो व्यवधायक, जिससे प्रोटको जाय, व्यवधान, वस्त्रादिसे ५-बहुव्री। विघ्नशूना, वाधारहित, निर्विघ्न । आच्छादन, अन्तर्वान, रोक। अपवित्र (स० त्रि०) न पवित्रं शुद्धम् । पवित्रताशूना, अपवारित (स.नि.) अप-व-णिच् कर्मणि क्त । अशुद्ध, अकृतशौचादि, अशुचि, नापाक, मलिन, आच्छादित, अन्तर्हित, व्यवधायित, वर्जित, अप्रकाश, दूषित। अपवारण, दूर किया हुआ, छिपा हुआ। अपवित्रता (सं. स्त्री०) अशौच, अशुचि, मलिनता, अपवारितक (सं० लो०) अदवारित-स्वार्थे कण् । नापाको। अप्रकाश, जो प्रकट न हो। अपविद्ध (सं० त्रि०) अप-व्यध-त। प्रक्षिप्त, त्यक्ता, अपवारुक (सं० पु.) अप- वाहुलकात् उकञ्। चर्णित, प्रत्याख्यात, प्रेरित, निरस्त, विद्ध, वेधा हुआ, 'प्रस्तर, पत्थर। वारह प्रकारके पुत्रों में एक प्रकारका पुत्र। माता- विघ्नो यस्मात्