पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६०९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अनाराष्ट्रीय -अनााशा अन्यराष्ट्रीय (सं० त्रि०) जिसका सम्बन्ध दूसरे भागविशेष यस्य । स्वभिन्न वेदशाखाध्यायौ, जिस- राज्य से हो। दूसरे राज्यका । की जा शाखा है उससे भिन्न शाखाका पढ़नेवाला। अन्यरूप (सं० पु०) दूसरा रूप, दूसरे भेषमें, भेष अनाशाखक (सं० पु०) वह ब्राह्मण जिसने अपना बदला हुआ। धर्म त्याग दिया हो, धर्मच्युत, अधर्मी। अन्यलिङ्ग (सं० स्त्र.) अन्यस्य स्वभिन्नस्य विशेष्य अनासङ्गम (सं० पु.) दूसरेसे राह रौति, दूसरेसे स्येति यावत्। विशेष्यका लिङ्गभाजी शब्द, जिस मेल मिलाप ; सोहबतदारी, हमविस्तरी। शब्दका कोई लिङ्ग निर्दिष्ट न हो, विशेषण । अनासाधारण (सं० पु.) अनधन साधारणं समा- अन्यलिङ्गक (स० त्रि०) अन्यस्येव लिङ्ग पुंस्त्वादि नम्। दूसरेके समान, अनेकको सत्वविशिष्ट वस्तु, चिह्न वा यस्य । विशेष्यका लिङ्गभाजी शब्द, अन्य जिसमें अपना और दूसरेका हक हो । चिन्तयुक्त, दूसरे चिन्हके सहित । अनासंभोगदुःखिता (स. स्त्री०) परस्त्री में अपने अन्यवर्ण (सं. त्रि.) अन्य वर्णका, दूसरे रङ्गका, वामौके संभोगचिन्ह देखकर दुःखित होनेवाली जिसका रङ्ग दूसरा हो। नायिका। अन्यवर्धित (सं० त्रि०) अन्यपुष्ट देखो। अनासुरतिदुःखिता ( स० स्त्री०) अन्धसंभोगदुःखिता देखो। अन्यवादिन् (सं० त्रि.) अन्यात् अन्यथा वदति अन्य अन्यस्त्रीग ( स० पु०) दूसरेको स्त्रोके निकट जाने- वद-णिनि। हौनप्रतिज्ञावादी, हीनप्रतिज्ञ, प्रतिवादी, वाला, व्यभिचारी। इतरवादी, झूठा, असत्य बोलनेवाला, विचारस्थलमै अनादृश (सं० पु०) अन्य इव पश्यति अन्य-दृश- जिसका पक्ष हीन हो गया हो। कर्तरि क्विन्। अन्धप्रकार, दूसरेको तरह । "अन्यवादी क्रियादोषी नोपस्थायी निरुत्तरः। अन्यादृश (संत्रि.) अन्य इव पश्यति अन्य-दृश-कर्तरि आहूतः प्रपलायौ च होनः पञ्चविधः स्म तः ॥" (नारदसहिता) कञ् आत्वञ्च । अन्यरूप, अन्यप्रकार, दूसरे जैसा। १-जी पहले एक तरह बोलकर फिर दूसरो| अन्याधीन (सं० त्रि०) दूसरेके अधीन, दूसरपर तरह बोले। भरोसा रखनेवाला। २-जा प्रतिपक्षको साक्ष्यादि क्रियामें देष | अन्यापदेश (सं० पु०) अन्योक्ति । करता है। अन्याय (सं० पु०) न्यायः अग्रेयः कल्पः देशरूपं ३-जी विचारके समय विचारालयमें उपस्थित समञ्जसं विचारः सङ्गतिः औचित्य प्रतिज्ञादिपञ्चप्रति- नहीं रहता। पादकवाक्यञ्च एतेषामभाव इति अभावार्थे नञ्तत् । ४-जी विचारकके प्रश्नपर निरुत्तर हो जाता है। देशविरुद्ध भाव, अविचार, अनौति, अनौचित्य, अत्या- ५-जा राजपक्षक मनुष्य के बुलानपर भाग जाता है। चार, अन्धेर, जुल्म। इन पांच प्रकारोंका नाम हीनपक्ष है अन्यायौ (संत्रि०) अन्याय करनेवाला, दुराचारी, अन्यविवदित (सं० वि०) अन्धपुष्ट देखो। अन्धेर मचानेवाला, जालिम । अन्यवौर्यज (सं० पु०) अन्यवीर्योद्भव, दूसरेके वीर्यसे अन्याय्य (सं० त्रि.) न्यायादनपेतं न्याय यत् न न्याय्यम्। उत्पन्न, पोष्यपुत्र। नञ्-तत् । अयुक्त, अनुचित, जो न्याययुक्त न हो। अन्यव्रत (स• पु०) अन्यदन्यविध श्रुतिस्मृत्यो- | अन्यार्थ (सं० पु.) अन्यश्चासौ अर्थश्चेति कर्मधार रननुयायि-व्रतं कर्म नियमो वा यस्य। जो श्रुति और वा दुगभावः । भिन्न अर्थ, भिन्न अभिधेय, भिन्न प्रयोजन, स्म तिके विरुद्ध काम करता है, असुरादि, यथेच्छा भिन्न धन, भिन्न वस्तु। चारी मनुष्य, अधर्मी, बेइमान, बेदीन । अन्यारा (हिं० वि०) जो न्यारा न हो, जो अलग न हो। अन्यशाख (सं० पु.) अन्या स्वभिन्ना शाखा वेद अन्याशा (सं० स्त्री०) अनास्य अनवाया वा आशा। -