पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६०७

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अन्यथानुपपत्ति-अन्यथासिद्ध विद्यमान हैं, ऐसा स्वीकार करते हैं। किन्तु इदमें गधा ढो लाता है। पर गदहेपर न लाद लाकर दूसरी अग्नि है, ऐसा ज्ञान स्वीकार नहीं करते। परन्तु तरहसे भी मट्टी लाई जा सकती है, इससे गर्दभ इदमें वह्निके संसर्गाभावका ज्ञान नहीं होता। इससे अनाथा सिद्ध है। इस अनाथासिद्ध धर्मको अनाथा- इसका नाम असंसर्गाग्रह है। सिद्धि कहते हैं। अनाथानुपपत्ति (सं० स्त्री०) अनाथा अनाप्रकारण किसी कार्यको सिद्ध करनेके निमित्त पूर्ववर्ती जो न उपपत्तिः। किसी पदार्थक अभावमें किसी और जो पदार्थ नितान्त आवश्यक हैं, अर्थात् जिस पदार्थके -पदार्थको उपपत्ति। मीमांसक मतसे अना प्रकारसे रहनेसे वह कार्य सिद्ध होता है और न रहनेसे सिद्ध उपपत्ति अर्थात् सिद्धान्तका अभाव । जैसे,—'यह दृष्ट नहीं होता, वैसे पदार्थको कारण कहते हैं। उस पुष्ट मनुष्य दिनमें भोजन नहीं करता।' विना भोजन कारणका एक विशेष भेद हो उक्त अनाथासिद्धरूप किये मनुष्य कभी हृष्टपुष्ट हो नहीं सकता। सुतरां इस धर्म है। वही धर्म जिसमें रहता है वही अनाथा- अनुपपत्ति ज्ञानसे यह स्थिर होता है, कि यह हृष्टपुष्ट सिद्ध है। सुतरां कारण भिन्न सभी पदार्थ अनाथा. मनुष्य तब रात्रिमें अवश्य हो भोजन करता है। सिद्ध कहे जाते हैं। मीमांसक लोग इस अनुपपत्ति ज्ञानको अर्थापत्ति अनाथासिद्ध पांच प्रकारका है। १म-कारण- प्रमाण स्वीकार करते हैं। नत्रायमतसे, अर्थापत्ति वृत्ति वा कारणतावच्छेदक रूप धर्म। जैसे दण्डसे अतिरिक्त प्रमाण नहीं है, यह केवल अनुमान मात्र चाक घुमानेसे घट बनता है, इसलिये दण्ड घटका है। कारण, यह हृष्टपुष्ट मनुष्य रातमें भोजन करता कारण हो सकता है। किन्तु दण्ड का जो धर्म दण्डव है, कि नहीं, यह किसीने प्रत्यक्ष नहीं देखा। किन्तु है, वह घटका कारण नहीं हो सकता, इससे भोजन न कर अनाहार रहनेसे शरीर सूख जाता दण्डत्वको अनाथासिद्ध कहते हैं। है और भोजन करनेसे शरीर हृष्टपुष्ट होता है। २य-कारणका गुण। जैसे दण्डका काला वा इसीसे उसके शरीरको पुष्टता देखकर अनुमान किया खेतवर्ण, किंवा अना प्रकारका गुण घटका कारण जाता है, कि वह रातमें भोजन करता है। नहीं हो सकता, इसलिये कारणका गुण अनाथा- अनाथाभाव (स० पु०) अनाथा अनारूपेण भावः । भावान्तर, जिसका जैसा भाव है, उसके उस भावका ३य-जिस पदार्थमें कारणत्व ज्ञान करनेसे अना अनारूप हो जाना। पदार्थका कारणत्व ज्ञान आवश्यक करता है। जैसे, अनाथाभूत (सं० त्रि.) अनाथा अनाप्रकारण आकाशमें घटत्वका कारण-ज्ञान करनेसे शब्दके भूतः। प्रकारान्तर प्राप्त। औरका और हो गया, कारणत्वके ज्ञानको अपेक्षा करता है। सुतरां आकाश दूसरी तरहका हो गया। अनाथासिद्ध है। अनाथावृत्ति (सं० स्त्री०) अनाथा अनारूपेण वृत्तिः । ४र्थ-जिसमें कारणत्व-ज्ञान करनेसे कारणके अनाथास्थिति। अना प्रकारका हो जाना। कारणत्व-ज्ञानको अपेक्षा होती है। जैसे कुम्भकार घट- अनाथासिद्ध (स'. वि.) अनाथा अनाप्रकारेण निर्माण करता है। इस स्थलमें कुम्भकार घटका सिद्धम्। जो पदार्थ अना प्रकारसे सिद्ध हो, असम्बद्ध कारण कहा जाता है। किन्तु कुम्भकारका पिता न कारणसे सिद्ध। रहता, तो कुम्भकारका जन्म न होता। सुतरां नग्रायादिके मतसे जिस पदार्थक न रहनेपर कुम्भकारका पिता कारणका कारण है। इसलिये भी अना प्रकारसे कार्यको सिद्धि होती है, वैसे पदार्थ इसे अन्यथासिद्ध कहते हैं। को उस कार्यका अनाथासिद्ध कहते हैं। जैसे ५म-जिस कार्यके निमित्त पूर्वमें जो जो पदार्थ कुम्हार घड़ा बनाता है, किन्तु घड़ा बनानेको मट्टो नितान्त आवश्यक होता है, वैसे पदार्थसे भिन्न अना 151