पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६०५

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अन्नभक्षण-अन्नाहारिन् अन्नभक्षण (सं० पु०) अन्न खाना। अवशेष (सं० पु०) बची हुई वस्तु ; खराब मांस, अन्नभाग (सं० पु.) भोजनका अंश । सड़ा हुआ मांस, मार डाले हुए पशुका वह अंश जो अन्नभोक्तृ (सं० पु०) अन्न-भुज-वच । अनखाने काम लायक न हो, निकम्मो चौज, बेकार वस्तु । वाला; समाजमें जो लोग एक दूसरेका अन्न अनसन (सं० लो०) भूखों और कङ्गालोंको भोजन खाते हैं। देनेका स्थान , अन्नक्षेत्र । अन्नमय (स० त्रि०) अन्नस्य विकारः अन्न विकारार्थे अन्नसंस्कार (स.पु.) भोजनको सामग्री अर्पण मयट् । खाद्यसामग्रीसे प्रस्तुत, भोजनको सामग्री करना ; भोजनको वस्तुको पवित्र करना। अथवा भातका बना हुअा, भोजन सामग्रीका बाहुल्य । अन्नहर्ट (स० स्त्री०) भोजनको सामग्रो हर (पु०) स्थूल शरीर। लेनेवाला; खानेकी चीज ले लेनेवाला। अन्नमयकोष (सं० पु.) अन्नमयस्य कोष इव । अनहोम (सं० पु०) अश्वमेधसे सम्बन्ध रखने- स्थूल शरीर ; वह जो अन्नसे पोषा जाय । बौद्द-शास्त्रके वाला होम। मतसे रूपस्कन्द, वेदान्तके मतानुसार पांच अन्ना (हिं० स्त्री० ) १ धाय, वच्चोंको दूध पिलानेवाली कोशोंमें प्रथम । औरत, दाई। २ सोना चांदी आदि मलानेको अन्नमल (सं. क्लो०) अबका नि:सारित रस, मांड़, अंगीठी। मद, यव आदि अन्नोंकी बनी सुरा, काँजी, विष्ठा । अन्नाच्छादन (सं० लौ०) अन्न वस्त्र, खाना कपड़ा। पापका नाम मल है, और सुरा भी मल है, अन्नाद (सं० त्रि०) अन्नमत्ति अद भक्ष पर्यायात् इसीसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य, इन तीन जातियों- बाहुलकात् ण । अन्नभोजी, अन्न खानेवाला, विष्णुका को सुरापान न करना चाहिये। एक नाम। अबरस (सं० पु.) अबस्य रसः सारांशः स्वादो वा। अबादन (स लौ०) भोजन करना, खाना। भुक्ता अन्नका सारांश, जठरानलहारा अन्न परिपाक अन्नादिन् (सं० वि०) अन्नमत्ति भुङ्क्ते अन्न-अद- होकर जो अंश दूध सा हो जाता है (chyle); णिनि। अन्नभक्षणशील, अन्नभोजौ, अबखानेवाला। अन्नका स्वाद, वह वस्तु जो पोषण करती है। अन्नाद्य (सं० लो०) अन्नरूपम् आद्यं भक्ष्यम् । अन्नलिप्सा (सं० स्त्री०) भोजनको इच्छा, भूख । अवरूप भक्ष्य द्रव्य, साधारण भोजनको सामग्री, अब अन्नवस्त्र (सं० लो०) जीवनको आवश्यकीय वस्तु, खाना.कपड़ा। अबाधकाम (स• त्रि.) भोजनका इच्छुक, भूखा । अन्नवहनाली (स. स्त्री० ) पाकस्थली, गलेको नली, | अन्नायुस् (सं० वि०) अन्नमायुर्जीवनसाधनं यस्य । ( Alimentary Canal ) अांत आदि, जहां खाई हुई अन्न खाकर जीवन धारण करनेवाला। चौज जाकर निकल जाती है। अन्नार्थिन् (सं. त्रि.) भोजन मांगनेवाला, भोख अन्नवाहिस्रोतस् (सं? लो०). नहर, नाला, जानवरों मांगनेवाला, भिखमझा। के... गलेको वह नाली जिससे चारा पानो पेटमें अनावृध् (सं० त्रि०) अन्न वईतेऽनेन अन्न-वृध-क्विप् । जाता है। अन्नवर्द्धक ; अन्न बढ़ानेवाला, भोजन बढ़ना। अन्नविकार (सं० पु.) अन्नस्य विकारः विकृतिः । अन्नाशन (सं• क्लो) अन्नस्य अशनं विधानेन रक्त प्रभृति सप्त धातु; अबका बदला हुआ रूप, रेतः, आद्यभक्षणम् । अन्नप्राशन, घसनी, पहनौ । विशेष विवरण शुक्र, अनपचसे पेटको गड़बड़ी। अन्नप्राशनम देखो। अन्नविद (सं० त्रिः) भोजनको सामग्रीका पह- | अबाहारिन् (सं० त्रि.) अन्न ही है आहार चाननेवाला, जिसके अधिकारमें खाद्य वस्तु हो। जिसका; अब खानेवाला। प्रभृति वस्तु।