पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५९८

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५८२ अन्धराजवंश 'शकयवनपह्नवनिसूदन,' 'अप्राणहिंसारुचि, 'हिजवर नगरमें Baleokouros या बिलिवायकुर और उज्ज- कुटुम्बी, 'खगारातवंश निरवशेषकर,' 'शातवाहन- यिनी में Tiastanes या चष्टनकी बात आती है। किसी- कुल यशप्रतिष्ठानक', 'असिक-अश्मक-मूढ़क-सुराष्ट, किसी पुरावित्के मतसे उक्त शकाधिप चष्टन गोतमो. कुकुर-अपरान्त--अनूप--विदर्भ--आकर--अवन्तिराज' पुत्र शातकर्णिके क्षत्रप थे ; फिर किसीके मतमें 'विधा यारियान-सह-कृष्णगिरि-मोच-श्रीस्तन-मलय हो चष्टन शकाब्द-प्रवर्तक समझे जाते हैं। सम्भव है, महेन्द्र श्रेष्ठगिरि-चकोर-पति' एवं 'त्रिसमुद्रतोयपीत कि शातवाहनराज गौतमीपुत्र शातकर्णिने शक, यवन, वाहन' इत्यादि समुच्च विशेषणसे विभूषित हुये हैं।* पल्हवादिको हरा जो नूतन अब्द चलाया एवं जो गोतमीपुत्रके इस संक्षिप्त परिचयसे अच्छी तरह अब्द उनके क्षत्रप उज्जयिनीपति चष्टनने वंशपरस्परासे समझ पड़ता, कि जिन शक, यवन और पवने व्यवहार किया, वही उभय वंशके नामानुसार 'शालि- पन्ध वशका अधिकार उठाया और जिन खगारात वाहन' शक-नामसे पुकारा गया होगा। या सौराष्ट्र के शकक्षत्रप-वशीय क्षहरात-वशने शात जो हो, गोतमीपुत्र शातकणि ने स्वीय प्रभुत्व वाहनकुलका गौरव बिगाड़ा, उन सबका दर्प गिरा और गौरव पाया था उनके प्रियपुत्र पुलुमायो वह और शकक्षत्रप-वंश बिलकुल मिटा. तीन ओर समुद्र गौरव अक्षुम रख न सके। उज्जयिनौके शक- जल-चुम्बित समग्र दक्षिणापथके वह एकच्छत्र अधीश्वर क्षत्रप अन्धोंके संघर्षसे बचनेको परस्पर आत्मोयता- बने थे । बुद्धके अहिंसा परम धर्मपर उन्हें पूर्ण विश्वास सूत्रसे बंध गये। चष्टनके पुत्र जयदामने अपनी था एवं ब्राह्मणों के वह पृष्ठपोषक थे। केवल वही नहीं, पौत्री (रुद्रदामको कन्या) दक्षमित्राको द्वितीय उनकी माता गोतमी, पत्नी वासिष्ठी एवं प्रियपुत्र पुलुमायोके करमें सौंपी थी। इस विवाहके फलसे पुलुमायी सकल ही जैसे एक और बौद्ध धर्मानुरक्त श्य पुलुमायो खशुर रुद्रदामके सौभागोबति-पथमें और श्रमणोंके प्रति यथेष्ट दया-दाक्षिण एवं कितना साहाय्य बने। जयदामके मरनेके ब्राह्मणों के प्रति भी यथेष्ट भक्ति और चातुर्वर्णको बाद उनके पुत्र रुद्रदामने विपुल बल बढ़ा, विशुद्धिरक्षाके लिये जो आग्रह दिखा गये, नानाघाट, (सन् ११३ ई० में ) अपनेको नासिक, कार्ली प्रभृति नाना स्थानके आविष्कृत महाक्षत्रप बनाया। धर्मभोर रय पुलुमायौने रुद्र- शिलालेखसे वह प्रमाणित हुवा है। दामके उसी अभ्यदयपथमें कोई वाधा न डाली। गोतमीपुत्र शातकर्णिके १८वें अहमें उनकी महिषौके लिये खशुरको अवाध्यताको उन्होंने न माताने अपनेको महाराजको माता और राजप्रवरको देखा। किन्तु उसके लिये उन्हें शीघ्र फलभोगना पितामही बताया है। इसी शिलालिपिसे प्रमाणित पड़ा। गोतमीपुत्र शातकणि ने निज बाहुबलसे होता है, कि धनकटक नामक स्थानमें गोतमीपुत्रको शकोंके कवलसे जो सकल राज्य छुड़ाये थे, रुद्रदामने राजधानी थी। एवं उनके प्रियपुत्र वासिष्ठीपुत्र एक एककर वही विपुल जनपद अधिकारमुक्त बनाये। पुलुमायौ उत्तरांशमें प्रतिष्ठानपुरपर राजप्रतिनिधि रुद्रदामको गिरनार-गुहालिपिसे मालूम होता है, कि रूपसे शासन करते थे। ७१ शकके (सन् १४८ ई.) पूर्व ही गुजरातसे पहले लिखा है, कि सन् १५१ ई० में यूनानी दक्षिणापथके समस्त उत्तरांशतक भूमि उनके हाथ भौगोलिक टलेमौने दाक्षिणात्यके तीन समसामयिक लग गयी थी। केवल निकट आत्मीयता निबन्धनसे नृपतिका उल्लेख किया; यथा, पैठानमें Siro रुद्रदामने अन्धराजको उनके पूर्वाधिकारसे नहीं Polmaios या श्रीपुलुमायो (श्य), हिप्पोकौरा नामक वञ्चित किया। श्य पुलुमाई भी अपना पिढगौरब वचा Transactions of the 2nd International Congress of न सके और खशरहस्तसे अपमानित बन भग्न हृदय- Orientalists, 1874, p. 207-8. हो प्रायः सन् १४२ ई०में उन्होंने प्राण छोड़े । । उनके ३५ शकमें