पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५९२

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अन्ध राजवंश मत्स्यपुराणको तालिकामें उन्नीसवें अन्धनृपति | प्राचीन तत्त्ववित् सर रामकृष्ण गोपाल भाण्डारकरने पुरोन्द्रसेनके साथ उनके पुत्र सौम्यकी बात लिखी है। लिखा है,- इन सौम्यको मिलानेसे मत्स्यमतानुसार ३१ व्यक्ति "At first the princes of the family must होंगे। किन्तु ‘एकोनविंशति य ते अन्धा भोच्यन्ति वै महीम् ।' have been subject to the paramount sove- इत्यादि वचनानुसार उन्तीस ही नृप निकलते हैं। reigns of Pataliputra and were hence called इधर इन उन्तीस राजाओंका राज्यकाल-'तेषां वर्ष शतानि स्युः Bhrityas or servants of those sovereigns and चत्वारः षष्टिरेव च-इस श्लोकानुसार ४६० वर्ष होंगे। afterwards they raised themselves to supreme मूलमें पुरोन्द्रसेनके पुत्र सौम्यका राज्यकाल निर्दिष्ट power." * नहीं हुवा। दूसरे तौस नृपतियोंकी जो राज्यकाल अर्थात् अन्ध वशीय राजकुमार प्रथम पाटलि- माना गया, उसमें हमें कुल ४५६॥ वर्ष मिलते हैं। पुत्रके सम्राटको अधीनता स्वीकार करते रहे। इसके साथ सौम्यका राज्यकाल कुछ कम ४ वर्ष मान इसीसे वह अन्धभृत्य नामसे पुकारे गये हैं। पीछे लेनेसे ४६० वर्ष निकलेगा। ऐसे स्थलमें मूलके वही क्रमसे राजपदपर जा वैठे। आश्चर्यका उन्तीस राजाओंको जगह ३१ अन्धटपति और उनका विषय है, कि अपरापर पाश्चात्य पुराविदगणने भी कुल राज्यकाल ४६० वर्ष माना जा सकता है। ऐसा हो अभिमत निकाला है। किन्तु उनको यह ब्रह्माण्डपुराणमें पुरीन्द्रसेनके बदले “पुरिकर्षण” नाम युक्ति समीचीन नहीं मालूम पड़ती। वह यदि लिखा गया, किन्तु उनके पुत्र सौम्यका नाम नहीं पाटलिपुत्रके अधीश्वर मौर्य, शुङ्ग या काणायणके मिलता। सुतरां ब्रह्माण्डमतसे । कुल तीस अन्ध राजका भृत्य या कर्मचारी होते, तो मौर्यभृत्य, शुङ्गभृत्य या राज्यकाल ४५६ वर्ष होता है। तालिकानुसार भौ काखभृत्य नामसे ही पुकारे जाते ; वह ४५५॥ वर्ष निकलेगा। इसलिये मत्स्यपुराणके कोई न कहता। हम पुराणमें देखते, कि काणायन- मूल श्लोकको तरह ब्रह्माण्डपुराणके श्लोकमें परस्पर वंश प्रथम शुङ्गोका काम करता था। इसोसे उनके कोई भेद नहीं पड़ता। सम्भवतः मत्स्यपुराणके वंशधर पाटिलपुत्रके अधोखर 'शुङ्गभृत्य' नामसे ही मूलमें- पुकार गये। “एकवि'शत् नृपाद्यते अन्ध भोक्षान्त वै महौम्।" "चत्वारः शुङ्गभृत्यास्त नृपाः काणायणा दिजाः ।” (ब्रह्माण्डपुराण ) यही पाठ रहा था। किन्तु लिपिकरके प्रमादसे ऐसी स्थितिमें अन्धभृत्योंको पाटलिपुत्रके पूर्वाधीश्वरोंका 'एकत्रिंशत्के' स्थानमें ‘एकोनविंशति' बन गया है। कर्मचारी बताना ठीक नहीं मालूम पड़ता। जो हो, उभय पुराणके मध्य मतभेद पड़ते भी उसका महापुराणोंमें देखते, कि दाक्षिणात्यका अन्ध वंश कारण खूब समझ चुके हैं। एकने सौम्यको मिला और अन्ध भृत्यवश एक नहीं, यह दोनों वंश कुल ४६० वर्ष एवं दूसरेने सौमाको निकाल कुल स्वतन्त्र हैं। ब्रह्माण्ड और मत्स्य उभय पुराणमें स्पष्ट ४५६ वर्ष राज्यकाल मान लिया है। मत्स्यपुराणके ही लिखा है, मुद्रित और हस्तलिखित उभय हो ग्रन्थमें पुरीन्द्रसेन “अन्धाणां सस्थिते व शे तेषां भृत्यान्वये पुनः । और सौमा नृपतिका नाम मिलेगा। सुतरां यह सप्तं वान्धा भविष्यन्ति दशाभौरास्तथा नृपाः ॥" नाम नहीं छूटता। ऐसी अवस्थापर हम अन्ध वंशमें अर्थात् अन्ध व शके राज्याधिकार कालमें ही उनके इकतीस राजा और उनका कुल राज्यकाल ४६० भृत्य या कर्मचारोवंशीय सात राजा राज्य करेंगे। वर्ष मान सकते हैं। ब्रह्माण्डपुराणकारने अन्ध सम्राटोंके ४५६ वर्ष राज्य- पाश्चात्य और देशीय पुराविद्गणने इस अन्धव'श

  • Transactions of the Second International Congress

एवं अन्धभृत्यवंशको अभिन्न रूपसे पुकारा है। प्रसिद्ध of Orientalists, 1874. p. 349. अन्धभृत्य उन्हें सकल