पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५८०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५७४ अन्वशिला-अन्वावरोध उस अधिक मल सञ्चित रहनेपर उष्ण जलको पिचकारी लगाये, उससे अन्त्रको उत्तेजना घट सकती है। इस रोगमें अफीम ही उत्कृष्ट औषध होगा। अर्ध ग्रेन मात्राम २४ घण्टे अन्तरसे अफीमका सार कर्पूरके साथ खिलाना चाहिये। पीड़ासे प्रथम दो-एक दिन केलामेल १ ग्रेन, कर्पूर १ ग्रेन और सोडा बाइकार्ब ३ ग्रेन एकत्र मिला पुड़िया बना ले। ऐसी ही पुड़िया प्रत्यह दो बार देना होगा। पेटपर मलनेके लिये पोस्त और वेलेडोनेका सार समभागमें ले एकत्र मिला डालिये। पौके वही सार समस्त उदर पर लगा धीरे धीरे उष्ण जलका सेंक पहुंचाना उचित है। शरीर दुर्बल, नाड़ी क्षीण और द्रुत होनेसे पतले मांसका शोरबा एवं अल्प अल्प ब्राण्डौ देना चाहिये। किन्तु प्रसवके बाद यह अवस्था होनेसे अधिक ब्राण्डी पिलाना अथवा वलकर औषध देना आवश्यक होगा। अन्वशिला (सं० स्त्री०) किसौ नदीका नाम, यह विन्ध्याचल पर्वतसे निकलती है। अन्त्रसज् (स. स्त्री०) अन्तड़ियोंकी माला। इसे नृसिंह भगवान् पहनते हैं। अन्वाद (सं० पु०) आभ्यन्तर कमि, अन्दरूनी कौड़ा, जो कौड़ा अन्तड़ियोंमें पड़ जाये। अन्वालजी, अन्धालजी (सं० स्त्री०) वातश्लेष्मजन्य क्षुद्ररोग विशेष, एक छोटी बीमारी जो वात और कफसे पैदा होगी। इसका लक्षण यह है,- "घनामवक्रां पिडकामुन्नता परिमण्डला । अन्त्रालजीमल्पपूां तां विद्यात् कफवातनाम् ॥" (माधवनिदान) अन्तावरोध (सं० पु०) अन्तड़ियोंको गांठ (Obs. truction of the bowels)। अन्तावरोध अति भयानक पीड़ा है। यह पीड़ा होनेसे रोगीका जीवन बचना कठिन हो जायेगा। अन्ववृदि-रोगमें अन्व जकड़ जानेसे यह पीड़ा प्रायः उठती है। इसलिये अन्त्रावरोधका कोई लक्षण झलकनेसे अच्छी तरह जांचना आवश्यक होगा, अन्वद्धि हुयो या नहीं। रोगीके पेड़, जांघ, ऊरदेश' किंवा अण्डकोषको सूजनको खूब देख लेना चाहिये। अन्त्रावरोधको मल-संयुक्त वमन होनेसे इलियम ( Ileus) कहते हैं। कोई-कोई इसे भल्भ्यूलस ( Valvulus ) pa' cage 0149 (Ilise passion) नामसे भी पुकारेंगे। डाकर ब्रिण्टन, बेनेट, एबारक्रम्बो एवं अन्यान्य चिकित्सक बताते हैं, कि अन्त्रके किसी स्थानपर आक्षेप पड़नेसे अन्त्रावरोध लग सकता है। समय ऊपरका भुक्त द्रव्य किंवा मल फिर निम्नदिक्की न जायेगा। स्वभावतः अन्त्रको आकुञ्चन गति ऊपरसे क्रम क्रम निम्नदिक्को आ पहुंचती है। इस आकुञ्चन गतिके दबाबसे ऊपरका भुक्त द्रव्य और विष्ठादि अन्त्रको निम्नदिक्को सरकेगा। किन्तु सामान्य हो अन्त्रावरोध पड़नेसे यह आकुञ्चन- गति उलटतौ, अर्थात् उस समय निम्न दिक्से ऊध्र्व दिक्को चलती है। इसीसे अन्त्रके भीतरका मल भौ निम्नदिक्से ऊर्ध्वको उठे, अन्तमें मुखसे निकलेगा। ऐसे अन्त्रावरोधमें मलबार पर पिचकारी लगानसे, रोगी मुखमें उसका आखाद और गन्ध समझ सकता है। डाकर हाभेनने २५८ रोगियोंका अन्वावरोध जांच इस पौड़ाके बहुतसे कारण ठहराये थे। उनकी मौमांसा, सन् १८५५ ई में फिलेडेलफियाके किसी पत्रमें छापी गयी। वह कहते, अन्त्रको भौतरी लैष्मिक झिल्ली एवं पेशीके परदेमें कोई न कोई पीड़ा उठनेसे अन्तावरोध हो सकता है। (१) अन्त के भीतर कर्कट अर्थात् केन्सर रोग लगनेसे अन्त जुड़ सकेगा। (२) कर्कट रोग न लगते भी प्रदाह किंवा अन्त में आघात पाने अथवा अन्तके मध्य दूषित पदार्थ सञ्चित होनेसे अन्तका छिद्र रुकता है। (३) क्षतस्थान सूखनेसे अन्त्र भी जुड़ जायगा । (8) अन्त्रके भीतर अन्त्रका कियदंश घुसनेसे (Intus-susception) अन्त्रका पथ रुच होता है। (५) बहुपद ( Polyp) नामक कोई कौटाणु है। उसके देहपर सीधी-सोधी शाखा-जैसा विस्तर अङ्ग प्रत्यङ्ग निकलेगा। मानवशरीरके अन्त प्रभृति नाना स्थानमें वैसा ही बहुपद मांस उभरता यथा, - -