पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५७८

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५७२ अन्ववि 1 आता, जिससे नाभिके ऊपर फल जाता है। नाभिसे और आमाशयमें पौड़ा उठनेसे अतिरिक्त वेगके लिये थोड़ी दूर नाड़ी चोरने में यह दोष न दौड़ेगा। अन्त वृद्धि रोग दौड़ता है। जांधके ऊपर ( inguinal ) और जांधके नीचे यह पीड़ा सकल वयस और सकल श्रेणौके ( femoral ) भी अन्त्र खिसक पड़ता ; किन्तु अनेक लोगोंमें हो सकेगी। किन्तु जिसे सर्वदा हो निहायत लोगोंके अण्डकोषमें ही अन्त्र उतरता है। वज़नौ चीज़ उठाना पड़तो, उस व्यक्ति के अन्त वृद्धि किसी-किसौ शिशुको जन्मकालसे ही अन्ववृद्धि रोग लगनेकी अधिक सम्भावना रहती है। फ्रान्सके रोग लगेगा। कितना ही अन्न अण्डकोषमें उतरता, डाकर मेलगेन कहते, कि सचराचर १३ पुरुष और फिर किञ्चित् काल बाद आप हो चढ़ जाता है। ५२ स्त्रीमें प्रायः एक-एक आदमीके अन्त वृद्धिरोग उससे शिशुको कोई यन्त्रणा न पहुंचेगी। किन्तु मिलेगा। शैशवावस्था और वाल्यावस्था में यह रोग यौवनकालमें कोई वज़नी चीज़ उठानेसे यह पीड़ा नितान्त अल्प रहता,-प्रायः ७७ लोगोंमें एकके बढ़ती है। देखनेमें आया, किसी-किसी व्यक्तिके होता है। किन्तु १।१४ वत्सर वयःक्रम बाद अण्डकोषपर पेटका आधा अन्त्र उतरे कायिक परिश्रम बढ़नेसे उस समय अनेकको हो यह और हाथसे थोड़ा दबाने ही से उपर व्याधि धर दबायेगी। चढ़ जायगा। यहां गर्भसे जात अन्वत सावधानता-जन्मावच्छिन्न अन्त वृद्धि हो या न हो, विका चित्र खींचा गया है। बाहरको जोरसे किसीको कभी ज्यादा वजनी चौज़ उठानेको स्थूल कृष्णवर्ण रेखा कोषका चर्म है। चेष्टा न करना चाहिये। स्वभावतः कोष्ठबद्ध धातु इसके भीतर अन्त्र उतर आया था। होनेसे मलत्यागके लिये दो घण्टे बैठ जोर लगाना जिसको अन्त्रहद्धि रोग लगता, अण्डकोषमें अन्त्र अकर्तव्य ठहरेगा। वह लोग सुपथ्य हारा कोष्ठ उतरनेसे उसके कष्टको सीमा नहीं रहती। पेटको परिष्कार रखनेको चेष्टा करें। मूग और चनेको वेदनासे रोगी छटपटाया करता है। मध्य-मध्य दाल , सब्जी, बेल, नारियल, पपीता, दुग्ध प्रभृति वमन भी होगा। मलत्याग जैसा पुनः-पुनः वेग द्रव्य खानेसे दूसरा झगड़ा नहीं उठाना पड़ता। उठता, किन्तु मल नहीं निकलता। प्रमहसे पेशाब रुकनेपर व्यर्थ जोर लगाना मना है। अन्त्र बढ़नेसे किसी-किसी स्थलमें उसे स्वस्थानपर सत्वर चिकित्सकका परामर्श लेनेसे पीड़ाको शान्ति पहुंचा देते हैं ( reducible)। किसी स्थलमें अन्त्र हो सकेगी। जन्मकालसे अन्त वृद्धि होनेपर आदर• स्वस्थानमें नहीं भी ठेला जाता (irreducible )। पूर्वक लड़केको आनन्दको वंशी बजाने न देना चाहिये, फिर कहीं अन्त्र बंधता, (strangulated ) जिसमें वैसे शिशुको चिल्लाने या रोने देना भो अनिष्टकर रक्त सञ्चालन नहीं होता; इसलिये अन्त्रका वह होगा। अतएव पितामाताको सर्वदा ही उसपर स्थान सड़ जाता है। ऐसौ अन्तद्धि अतिशय दृष्टि रखना उचित है। भयानक होगी। कारण पहले ही बता चुके हैं, कि चिकित्सा-पेटसे नीचे जांधके पास अन्त वृद्धि जोरसे वजनी चौज़ उठानेपर अन्त बढ़ सकता है। होनेसे अङ्गुलिके अग्रभाग द्वारा अल्प उठा देनेपर हो सिवा उसके जन्मावधि शारीरिक गठनको विकृति अन्त स्वस्थानको चला जायगा। अण्डकोषमें अन्त उदरके किसी आघात एवं पौड़ा और पेटको उतर आनेसे उसे स्वस्थानमें पहुंचाना कष्टकर होता दुर्बलतासे भो अन्त, बढ़ेगा। जिन सब लोगोंका है। रोगीको चित लेटाये एवं जिस दिक् अन्त वृद्धि खभावतः कोष्ठ परिष्कार नहीं पड़ता; वह मलत्यागके हो, उसों दिक्का पैर छातीके पास खींचकर पहुं- समय अनेकक्षण पर्यन्त जोर लगाते हैं। उनको भी चाये। उसके बाद अण्डकोषके भीतर अन्त की ऊपर क्रमसे अन्त वृद्धि रोग लग सकेगा। पेशाब बन्द होने और सामने हटाना चाहिये। अनेक बार इस.