पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५५५

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अन्तष्टि ५४६ सामग्रीसे प्रेतनैवेद्य तैयार किया जाता है। अग्रदानौ । कृष्णवर्ण, तिक्त, और सर्वदा हो उससे बाष्प निकला ब्राह्मण और उनकी स्त्रीके उस नैवेद्य खाने बैठनेपर करता है। ग्राहस्थ कुटीरका हार बन्दकर आग लगा देगा। उस चारण-देवता निरानन्द हैं, मुखपर हंसी नहीं समय अग्रदानी ब्राह्मण और उनकी स्त्री दोनों किसी झलकतो; सर्वदा हो शोकगम्भीर भावसे निस्तब्ध प्रकार हार तोड़ बाहर निकल जाते हैं। बने रहते हैं। मुखपर छिन्न-भिन्न दाढ़ी लटकतो, प्रेतात्माक वैतरणी नदी पार करनेको हम गोदान शिरके केश शुक्ल और परिधानका वस्त्र मलिन और करते हैं। पहले रूस और यूनान देशमें भी बहुत जीर्ण पड़ गया है। इस्कानके स्तम्भमें चारण- कुछ ऐसा ही नियम प्रचलित था। रूसवासी मृत देवताके हाथ और उनको हथौड़ो देख पड़ेगी। शरीर गाड़ते समय उसके हाथमें कोई परवाना' लिख यूनानी मृत्युके दिन ही अन्तेष्टिक्रिया न कर रख देते थे। प्रतात्मा वही परवाना पितरको करते थे। वह, तृतीय दिवस मट्टीके कफनमें ( Pater ) देखानेसे अनायास वर्ग पहुंच सकता था। शवको रख नगरके बाहर गाड़ देते रहे। कब्रस्थान यूनानी मृतदेहको स्नान करा सर्वाङ्गमें सुगन्धादि जानेसे सबको ही नहाना पड़ता था। सान न लगा देते रहे। उसके बाद उत्तम वस्त्रालङ्कार पहना करनेसे कोई देवालयमें घुसने न पाता। तृतीय, मस्तकपर पुष्पमाला चढ़ा और फूलोंका मुकुट लगा नवम और त्रिंशत् दिवस पिण्डदान होता था। उसे नूतन शय्यापर सुलाते। यूनानियोंको वैतरणी रोमवासी मृतदेहको जला डालते थे । हम सत्कार्यके नदीका नाम आचरण-नद है। बुद्ध चारण देवता बाद स्नान और अग्निस्पर्श करते। रोमवासी मृत- उसी नदके कर्णधार बने हैं। जब प्रेतात्मा वहां देहको जला जल छूने या अग्नि सुलगानेसे ही शुद्ध पहुँच चारण देवताके हाथ एक रुपया रखे, तब होते रहे। नवम दिवस उनका अशौचान्त आता था। वह उसे आचरण-नदके पार उतारेंगे। किन्तु पार उस समय यूनानी और रोमवासी मृतदेहको जिस जानेका मूल्य न दे सकनेसे दुर्भाग्य प्रेतात्मा जलके तरह साज-बाज बाहर निकालते, वैसे ही आज किनारे रोते घूमते रहता था। यूनानी स्त्रियां भी भारतवर्षको सिंगानी प्रभृति कोई-कोई जाति मृतदेहके मुखमें एक रुपया और थोड़ी सी मिठाई मृतदेहको उत्तम कपड़े-गहने पहना धूमधामसे इसलिये डाल देतीं, जिसमें आचरण-नदके पास श्मशान पहुंचाती है। पहुंचनेपर कोई विघ्न न पड़े या साईरस कुत्ता पूर्व कालके मिश्रवासियोंकी अन्तेष्टिक्रिया कुछ प्रेतपुरीका हार न रोके। इसके बाद पुरमहिला अद्भुत प्रकार थी। वह मृतदेहको जला या गाड़ मृतशय्याको चारो ओर बैठ रोती; रोते-रोते अपने बिगाड़ते न थे। तरह-तरहका मसाला शरीरमें वस्त्र और केश नोचते जाती थीं। लगा सर्वाङ्ग कपड़ेसे लपेट देते थे। उससे किसी थेम्प्रशियाके मध्य एक आचरण-नद विद्यमान है। जगह जरा सा भी मांस न गलता और न कोई हड्डी यह आचारुशिया इदके भीतरसे निकल आयोनियन ही टूटती थी। मिश्रवासियोंका विश्वास था, कि सागरमें जा गिरा है। एसिल प्रदेशमें भी कोई दूसरा शरीर, आत्मा. ज्ञान और आकारसे मनुष्यका आचरण-नद बहता है। इसे अब साकूटो कहते जीवन सधेगा। इनके पृथक्-पृथक् होनेसे मृत्यु, हैं। पौशनीया बताते हैं, कि महाकवि होमरने दौड़ती है। मृत्यु के बाद ज्ञान, इतस्ततः चक्कर थेम्पृशियाके आचरण-नदको बात लिखी है। लगाते घूमता, आत्मा अधोलोक पहुच नाना प्रकार हमारी वैतरिणी नदीका जल दुर्गन्ध और उष्ण है, कष्ट सहता, जिसके द्वारा उसको धर्मनिष्ठा जांची सर्वदा हो मैला-कुचैला और शोणित, अस्थिकेशसे जाती है। अवशेषमें, कहीं तीन और कहीं दश परिपूर्ण रहता है। यूनानियोंके आचरण-नदका जल हजार वर्ष बाद पुनर्वार वही ज्ञान और आत्मा पूर्व- 138