पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५५२

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अन्त्यावसायिन्-अन्त्येष्टि ५४५ रूपसे दोहराया जाये, उसे अन्तयानुप्रास कहते हैं। रक्षणम् ; अवभावे तिन् उट् पक्षे कलोपश्च । आसव पादके अन्त में इसतरह अनुप्रास आता है,- रक्षण, शरण-प्राप्तको रक्षा, मुहताजका बचाव, पनाह- "केश: काशस्तवकविकास: में पहुंचे हुएको हिफाज़त । कायः प्रकटितः करभविलासः ।" अन्तार-दक्षिण-हैदराबाद राज्यवाले औरङ्गाबाद यहां प्रथम पादके अन्तमें 'विकासः' इस शब्दका ज़िलेके कन्नड़ ताल्लुकका पुराना किला। यह खान्देश 'आसः' और दूसरे पादके अन्तमें 'विलासः' इसका भौ पहुंचनेवाले पर्वतपर अक्षा २०.२७ उ. और द्राधि- 'आसः' इन दोनोंके एकसे होने कारण यह अन्तयानु ७५. १५ पू में अवस्थित है। सन् ई० के १५वें शताब्दमें प्रास कहलाया है। पदान्तका उदाहरण नीचे इसे किसी महाराष्ट्र-नृपतिने बनवाया था, पीछे देखिये,- अहमदनगरके अधीन हो गया। किन्तु औरङ्गजे बने 'मन्दं हसन्तः पुलकं वहन्तः।' इसपर अधिकार जमा सन् ई०के १७ वें शताब्दमें यहां 'हसन्तः' और 'वहन्तः' इन दोनों पदके इसका तोपखाना उठवा लिया। किलेसे एक कोस अन्त में 'अन्तः' यह एक ही प्रकारका है, इसौसे दक्षिण एक गोल स्तम्भ खड़ा, जिसपर खुदा यह यह पदगत अन्तयानुप्रास कहलाता है। शिलालेख मिलता है, अहमदनगरके मुतैजा- अन्तबावसायिन् (सं० पु० स्त्री०) अन्ता भवं अन्तं निज़ाम शाहके शासनकालपर सन् १५८८ ई० में वस्त्रादिकं अवस्यति गृह्णाति ; अन्त-अव-सो-णिनि, यह स्तम्भ खड़ा किया गया। उपस । १ मृत व्यक्तिका वस्त्र, लेप प्रभृति लेनेवाला। अन्तष्टि (सं० स्त्री०) अन्ता भवा इष्टिः यागादिक्रिया २ निषादस्त्रीके गर्भ और चण्डालके वीर्यसे उत्पन्न कर्मधा । मृत्यु के बाद साग्निकोंकी देह संस्कारादि हुवा व्यक्ति। (स्त्री०) अन्तावसायिनी। अङ्गिरा क्रिया। निरग्नियों के केवल दाह करनेको व्यवस्था मुनिने सात प्रकारको हौनजातिको अन्तावसायौ है। पतित मनुष्यको दाहक्रिया नहीं होती। इसके बताया है। यथा,- अतिरिक्त जाति और देशाचारके भेदसे कोई मृतदेह- "चण्डाल: अपच: चत्ता सूतो वैदहकस्तथा । को गाड़ और कोई सड़नेके लिये छोड़ देते हैं। इन्हों मागधायोगवो वैव सप्तै तेऽन्त्यावसायिनः ॥” (अङ्गिरस् ) सब अन्तकी क्रियाओंका नाम अन्तोष्टि है। चण्डाल, खपच, क्षत्ता, सूत, वैदेहक, मागध, मृत्यु के बाद शरीर निश्चल और बेकाम हो जाता आयोगव-यह सात तरहके अन्तयावसायी होते हैं। उस समय उस मलिन मुखको देखकर पाषाण अन्ताश्रम (सं० पु०-क्लौ०) अन्ताश्चासौ आश्रमश्च, हृदय भी कांप उठेगा। दो एक दिन बाद लाश कर्मधा। चतुर्थाश्रम, भिक्षुरूप चौथा पाश्रम। सड़ने लगती, दुर्गन्धसे लोगोंको कष्ट पहुंचता है। अन्तयामिन् (सं० पु०) अन्ता आश्रमोऽस्त्यस्य, अन्त्य इसौसे आदमीके मरनेपर शीघ्र ही लाशको हटा आश्रम-इनि। चतुर्थ आश्रम युक्त भिक्षु । देना आवश्यक है। मैदान में फेंकना, जलमें डालना, अन्त्याहुति (सं० स्त्री०) अन्तमा चासौ आहुतिश्चेति, अथवा गाड़ देना-यही सब सहज उपाय हैं। कर्मधा । १ अन्तेष्टिक्रिया। साग्निकोंका मृत्युके बाद पहले असभ्य अवस्थामें सब - जातिके आदमी ऐसा संस्कार विशेष। ही करते थे। किसीको मृत्यु हो जानेपर बन्धुबान्धव "अन्त्याहुति हावयितु सविप्राः।” (भट्टि २३३) लाशको जलमें डुबा, ज़मीनमें गाड़ अथवा बस्तीसे अन्तुक र-मन्द्राज प्रान्तको कृष्णा नदीके तटका एक गांव। इसे गण्ट्ररके राजा अत्तिवर्मणने किसी समय यह विश्वास मूों को ही अधिक है, कि मनुष्य दान किया था। मरनेपर भूत होजाता है। कोल, संथाल आदि असभ्य अन्तूति सं० लो०) अन्ति अन्तिकस्य वा ऊतिः जातियां भूत मानतीं और उसकी पूजा भी करती हैं। 137 कुछ दूर फेंक देते रहे।