पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५४२

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अन्तर्य ह–अन्तर्जलाचार ५३५ अन्तह (स. क्लो० ) अन्तर्मध्यस्थं गृहम्, कर्मधा० । १ काशी-स्थित सात आवरणयुक्त पुण्य स्थान । काशी देखो। २ ग्रहविशेष, मध्यस्थित राह, खास मकान, बीचवाला घर। (अव्य.) गृहेषु अन्तः । ३ ग्रहके मध्य, मकान्के दरमियान्, घरके बीच । अन्तर्गह-अन्तम् ह देखो। अन्तर्पण, (सं० पु०) अन्तर्हन्यते क्रोडीभवत्यस्मिन्, अन्तर्-हन्-अप, पृषो० घनादेश णत्वम्। हारके बाहरका खपरैल, जो छोटा मकान दरवाजेके बाहर खपर या घास-फूससे छा कर बनाते हैं। "तस्मिन्नन्तर्घणेऽपश्यन् प्रघाणे सीधसद्मनः ।" (भट्टि) अन्तर्धन (सं० पु०) अन्तर्मध्येन क्रोड़हृदाद्यङ्गेन हन्यते इति प्रसिद्ध क्रियासु पौड्यतेऽस्मिन्, अन्तर्-हन्- अधिकरणे अप; घनश्चादेशः । अन्तर्घनो देशे। पा ३।३।०८। १ ग्रामके बाहरका स्थान, गांवके बाहरको जगह । २ मल्लोंको कौड़ाका स्थान, अखाड़ा, जहां पहलवान् कुश्ती लड़ें। अन्तर्घात (सं० पु०) मध्यका आघात, दरमियानी चोट । अन्तर्ज (सं० वि०) मध्यभागमें उत्पन्न, जो भीतरी जगह पैदा हुवा हो। अन्तर्जठर (सं० अव्य) जठरस्य मध्ये, अव्ययौ । १ जठरके मध्य, उदरमें, मैदेके दरमियान, पेटमें। (क्लो०) २ उदरस्थ कोष्ठविशेष, मेदा, पेटको वह थैली जिसमें खाना पचता है। (अव्य.) ३ कुक्षिमधा, कोख-बीच। अन्तर्जन्मन् (सं० लो०) भौतरी जन्म, अन्दरूनी पैदायश। अन्तर्जम्भ (स० पु०) जबड़ेका भीतरी भाग, जब- डेका जो हिस्सा अन्दर रहे। अन्तर्जल (सं० पु.) अन्तश्चरणात् नाभिपर्यन्तं जलं येन आचारण यस्मिन् वा, बहुव्री । मृत्युकाल पहुंचनेपर बन्धुगण कटक मुमूर्ष व्यक्तिके अर्धाङ्गका जलमें डुबाना । अन्तर्जलाचार देखो। अन्तर्जलचर (सं• त्रि०) पानी में पैठते हुवा, जो आबके अन्दर दाखिल हो रहा हो। अन्तर्जलाचार (सं. पु०) अन्तर्मधादेशपर्यन्तं जले मज्जनरूपाचारः, ७-तत्। आसन्न मृत्यु काल आनेपर मुमूर्ष व्यक्तिको पैरसे नाभितक जलमें डुबाना। पवित्र स्थानमें प्राण छोड़नेपर मुक्ति मिलती है। इसी विश्वास पर अनेक वृद्धावस्थामें काशीवासी अथवा गङ्गावासी बन जाते हैं। "गङ्गायाञ्च जले मोचो वाराणस्वां जले स्थले । जले स्थले चान्तरीचे गङ्गासागरसङ्गमे ॥" ( पद्मपुराण) अर्थात् गङ्गाके जलमें मोक्ष मिलता है। काशीमें क्या जल क्या स्थल-सर्वत्र ही प्राण छोड़नेसे मुक्ति मिलेगी। फिर गङ्गासागर-सङ्गमपर जल-स्थल, अन्तरीक्ष कहीं भी प्राण छूटे, मुक्ति हो जायगी। जो तीर्थवासी नहीं बनता, मृत्यु काल उपस्थित पा बन्धुबान्धव उसको गङ्गायात्रा कराबैंगे। जिस समय प्राण कण्ठमें जा ठहरते हैं और रोगी नाभिखास निकालता, उस समय आत्मीय स्वजन उसे पैरसे नाभि पर्यन्त गङ्गाके जलमें डुबा देते हैं। कोई पैरके दोनो अङ्गुष्ठ मट्टीमें दबायेंगे। पुत्र झटसे पहुंचकर मुमूर्षु व्यक्तिका मस्तक अपनी गोदमें रख लेता है। किन्तु शास्त्र में मस्तकके नीचे बालोंसे तकिया बनानेकी व्यवस्था बताते हैं। पीछे चारों ओर बन्धुबान्धव उच्चैःखरसे-"राम, नारायण, गङ्गा, ब्रह्म”-इसीतरह देवताका नाम लेंगे। कोई-कोई मुख, कर्ण, कण्ठ और चक्षुमें तुलसीपत्र डाल देते हैं। दूसरे कपाल और वक्षःस्थलमें गङ्गा- मृत्तिका लगा उसपर राम नाम लिख देंगे। गङ्गायात्रा देनेपर दैवात् यदि कोई न मरा, तो लोग उसे गृहस्थके अमङ्गलका कारण समझते हैं। इसलिये अनेक दोषखण्डनके बाद कोई मुमूर्षको मकानमें वापस लायें, कोई-कोई उसे घरसे निकाल देंगे। गङ्गातोरसे किसीको मकान वापस ले जाने में सदर दरवाजे पर एक पूर्ण घट, एक कालौ हांडी और एक झाडू रखा जाता है। वापस आते समय गङ्गाप्रत्यागत मनुष्यका मुख कोई नही देखता। लोगोंको विश्वास है, कि उसका मुख देखनेसे मृत्यु अवश्य झपटेगी। इसीसे घर पहुंच पहले वह घटादि देखता है। उससे दोष मिट जायेगा