पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५२३

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एकान्तः; अनेहस्-अनेटत अनिपुणस्य भाव अण ।। अन हस् (सं० पु०) केनापि न हन्यते असौ, हन । अनैपुण (सं० लो०) उण् अस् इन एहादेशः। १ काल, समय, वक्त । निपुणताका अभाव, होशियारोका न होना। 'कालोदिष्टोध्यनेहापि समयोऽपि ।' (अमर) (त्रि०) २ अहिंस- | अनत, अनत, आनत-भारतवर्षका खण्डविशेष, नीय, न मारने काबिल। हिन्दुस्थानका एक टुकड़ा। वराहमिहरने भारतवर्षको अनेहा (सं० पु०) काल, समय, वक्त, जमाना। नव खण्डमें बांटा था। उनमें एक खण्ड अनऋत अन (हिं.) अनय देखो। अथवा अनर्त कहलाता है। नव खण्डके नाम यह अन काग्य (सं० क्लो०) एकाग्रस्य एकचित्तस्य भावः, हैं,-१ पाञ्चाल खण्ड-इसमें मध्यभारत मिला. है, थञ् न एकाग्रं, अभावे नज-तत् । १ एकचित्तताका २ पूर्व दिक्का मगध, ३ दक्षिण-पूर्व दिक्का कलिङ्ग, अभाव, दिलके एकतर्फका न रहना। (त्रि.) ४ दक्षिणका अवन्ति, ५ दक्षिण-पश्चिमवाला आनतं, २ एकचित्तताशून्य, जिसका दिल एकतर्फ न रहे, ६ पश्चिम दिक्का सिन्धुसौबौर, ७ उत्तर-पश्चिम. डावांडोल। दिक्का हारहौर, ८ उत्तरका मद्र,, ८ उत्तर-पूर्व अनेकान्त (सं० पु.) एकान्त एव स्वार्थे अण दिक्का कौनिन्द। (हत्संहिता १४।३२-३३)) यह नव न ऐकान्तः, नञ्-तत्। १ एकान्तशून्य, नाम रख इनके विशेष वर्णनास्थलमें वराहमिहिर जो निराला न हो। २ अनतिशय, थोड़ा। ३ अस्थिर, कुछ गड़बड़ डाल गये हैं। उन्होंने आनत और परिवर्तनशील, नापायदार, बदल जानेवाला। सिन्धुसौवीर इन्हीं दोनोको दक्षिणपश्चिम बताया है। ४ न्यायमतसे-सामयिक, मौकेवाला। किन्तु इसमें कोई भूल नहीं देख पड़तो, वरं बिलकुल अनेकान्तिक (सं० त्रि.) एकान्त 'अतिमात्र पश्चिम दिक् सिन्धुसौवीर कहनेसे भूल होती है। व्याप्नोति, एकान्त-ठक् । १ एकान्त, अतिशय, नितान्त, बृहत्संहिता एवं मार्कण्ड य-पुराणके मतसे आनत अतिमात्र, बहुत ज्यादा। २ परिवर्तनशील, बदल और सिन्धुसौवीर भारतवर्षसे दक्षिण-पश्चिम दिक्. जानेवाला। ३ अनेक प्रयोजनविशिष्ट, जिसके कितने अवस्थित हैं। ही मतलब रहें। अनेकान्तिकत्व (सं. ली.) अस्थिरता, निश्चयका अभाव, नापायदारी, यकीनका न जमना। अनैकान्तिकहेतु (सं० पु०) न्यायमतसे—वह हेतु या कारण जो स्थिर या निश्चयात्मक नहीं ठहरता, कल्पित कारण, फ़र्ज़ किया हुवा सबब । अनक्य (सं० लो०) एकस्य भाव ऐक्यम्, अभावार्थे नज-तत्। १ ऐक्वका अभाव, एकताका न रहना, बहुलता, अनेकका अस्तित्व, एकतायोका न होना। भारतवर्ष के नव खए। २ नेहाभाव, अराजकता, मेलका न मिलना, प-मद्र। क-कलिङ्ग। मंच-अवन्ति। फूट। पानत। मिसिन्धुसौवीर। र-हारहौर। म-मागध । अनैठ (हिं. पु०) हाट बन्द रहनेका दिवस, जिस दिन बाजार न खुले। किन्तु महाभारतमें भारतवर्षके जो विभाग लिखे, अनैतिा (सं० त्रि०) न ऐतिह्यम्, नत्र-तत्। वह दूसरे ही प्रकारके हैं। भास्कराचार्यके साथ भी परम्पराश्रुत प्रमाणशून्य, जिसका सुबूत किसीको वराहमिहिरके मतका ऐक्य नहीं आता। इन्द्र, जबानसे न सुन पड़ा हो। कशेरुमत्, ताम्रपूर्ण, गभस्तिमत्, कुमारिका, नाग, मा

  • -पाञ्चाल

कौनिन्द ।