पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५०

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४८ अक्षपोड़ा-अक्षयवट अक्षपौड़ा (सं० खो०) नेत्रको पौड़ा. आँखोंका कष्ट “यादृग् गुणेन भर्वा स्त्री संयुज्ये त यथाविधि । ताहग गुणा सा भवति समुद्रण व निमगा। या रोग। २ यवतिता लता। अक्षमाला वशिष्ठ न संयुक्ताऽधमयोनिजा। अक्षबन्ध (सं० पु०) नजरबन्दी,, वह विद्या जिससे शारङ्गी मन्दपालन जगामाभ्याई गीयताम् ॥" (हा२२ २३) पासके खड़े हुए लोग खेलोंका भेद न देख सकें। जैसे नदीका जल मोठा होते भो समद्रमें गिर अक्षफोर्ड,आक्सफोर्ड(Oxford) यह शहर लन्दनसे कोई खारा हो जाता है, वैसे ही स्त्रियां भी जिसके साथ २८ कोस दूर है। इसके एक ओर चार्वेल और दूसरी व्याही जाती हैं, वसौ हो बना करती हैं। अक्षमाला ओर टेम्स नदी बहती है। इसी युक्त वेणीपर अक्षफोर्ड शूट्रकन्या थीं, किन्तु वशिष्ठकै माथ विवाह होनेसे विराजता है। सरस्वती देवी कमलवन छोड़ इसी पूजनीया हो गई, और शारङ्गी मन्दपालके साथ नगरमें रहती हैं। यहां बौस सुप्रसिद्ध विद्यालय हैं, विवाह करके सम्मानित हुई। जिनमें विश्वविद्यालय कालेज, बेलियाल कालेज वशिष्ठके और भी कई स्त्रियां थीं। उनमें अरुन्धती तथा मार्टिन कालेज बहुत ही प्राचीन है। पहला सन् और ऊर्जा प्रधान हैं। ऊर्जा मन्तऋषियोंकी जननी ८७२, दूसरा १२६३ और तीसरा १२६४ ई० में स्था हैं। शक्ति प्रभृति अन्यान्य सन्तान दूसरी स्त्रियोंक पित हुआ था। यहांके एक गिरजाघरमें बृहदाकार गर्भसे उत्पन्न हुई थीं। (भागवत ४।१।३२-३३। विष्णु- एक घण्टा है, जिसको तौल दो सौ मनसे भी अधिक पुराण १।१०।१३।) है। यहांका वडलियन पुस्तकालय विश्वविख्यात है। ४ एक प्रकारका नेत्ररोग। इस पुस्तकागारमें २५०००० मुद्रित ग्रन्थ और २५,००० अक्षय (सं० पु०) जिसका क्षय न हो। अविनाशी। पाण्डुलिपि हैं। 'सर टमास विडलौ' इसके प्रतिष्ठाता अक्षर । शाखत। सदा बना रहनवाला। कभी न थे। चार्वेल नदीपर जो सेतु बँधा है, वह देखने में मिटने या चुकनवाला। कल्पान्तस्थायी, कल्पान्ततक बहुत सुन्दर है। विलायतके जो लोग नाना शास्त्रोंमें बना रहनेवाला। सुपण्डित होते हैं, उनमें कितने ही अक्षफोर्डके छात्र अक्षयकुमार (सं० पु०) रावणका एक बंटा । पतकमार देखी। पाये जाते हैं। यहांके विद्यालयमें कई प्रकारको अक्षयटतीया (सं० स्त्री०) अखयतितोया। वैशाखशक्ल- भाषा पढ़ाई जाती है। मालूम होता है, कि जितना तृतीया। आखातीज। इसी तिथिमे मत्युगका आ- - विद्यानुशीलन अक्षफोर्ड और केम्ब जमें है, उतना रम्भ माना जाता है, अतः हिन्दू इम दिन स्नान, दान और कहीं नहीं। आदि करते और आनन्द मनात है। यदि कृत्तिका या अक्षम (सं० त्रि०) १ क्षमारहित । २ असहिष्णु। रोहिणी नक्षत्रका भो योग हो, तो यह तिथि बहुत ३ असमर्थ, क्षमताशून्य। अशक्त। ४ अनुपचार। ही उत्तम समझी जाती है। ५ लाचार । ६ बैवश । (स्त्री०) अक्षमा। अक्षयनवमी (सं० स्त्री०) कात्ति कगलनवमी। अक्षमता (स. स्त्री०) १ क्षमताका अभाव । २ असहि तिथिस त्रेतायुगका आरम्भ माना, और नान-दान वणुता। ३ इर्था । ४ डाह । ५ असामर्थ्य किया जाता है। अक्षमा (सं० स्त्री०) १ ईर्था । २ हसद । ३ डाह। अक्षयवट (सं० पु०) प्रयाग और गयावाला एक बरगद- अक्षमाला (स. स्त्री०) १ रुद्राक्षको माला। जपमाला। का पेड़। पौराणिक इन दोनो वटवृक्षांका नाश प्रलय- २ 'अ' से 'क्ष'पर्यन्त वर्णमाला। ३ वशिष्ठमुनिको एक में भी नहीं मानते, इसौसे इनका नाम अक्षयवट पत्नी। वशिष्ठको पत्नी अक्षमाला शूद्रको कन्या पड़ा । कहते हैं, कि कोई वटवृक्ष नहीं मरता। थीं। किन्तु महर्षिके, संसर्गसे वह बड़ी गुणवती हो कितनी ही दृष्टि होनेपर भी उसको डालिया नहीं गई। मनुसंहितामें एक उदाहरण लिखा है टूटती और न कड़ी धूपमे ही उसकी पत्तियां सूखती. इस