उस अनुराब-अनुराधपुर ४८७ अनुराजीका राजा नहीं रहता, आजतक यह पुर पड़ा। सिंहलके प्रथम बङ्गाली राजा विजयसिंहके किसोके वशीभून भी नही बने। इनमें कोई विरोध मित्र अनुराधके नामपर 'अनुराधपुर' नाम रखा गया बढ़नेसे यह आप हो उसका निबटारा लगा लेते हैं। (महावंश, १०म परि०) इस शहरका पूर्वगौरव अनुरात्र (सं० त्रि.) अनुगतं रात्रिम्, अत्या. तत् और पूर्वसौन्दर्य अब कुछ नहीं देख पड़ता। अच्-स० । १ रात्रिके अनुगत, जो शबमें दाखिल हो। समयके नरेशों साथ वह सकल सुखके दिन चले (अव्य०) २ प्रतिरात्रि, हरेक शब, रात-रात । गये। आजकल इसी पुरातन नगरको टूटो अट्टालिका अनुराध (स० वि०) फलित, पूर्ण, प्राप्त, हासिल निविड़ जङ्गलमें ढेर हुयो पड़ी है। क्या रात्रि और किया हुवा। क्या दिन ! केवल वनके पशु इसको चारो ओर अनुराध (सं० त्रि०) १ मङ्गलजनक, शुभ, मुबारक, कूदते फिरा करते, पास हो बड़े-बड़े पहाड़ खड़े, अच्छा, भलाई करनेवाला। २ अनुराधा नक्षत्रमें जिनपर देवालय दिखायो देते हैं। दूरसे उनकी उत्पन्न हुवा। (हिं॰ स्त्री० ) ३ प्रार्थना, अर्जु, विनय, ओर दृष्टि दौड़ानेपर पूर्वका दिन याद आता और आरज । प्राणमें कैसा अनोखा भाव समाता है। अनुराधग्राम (सं० पु.) अनुराधपुर देखो। प्राचीन अनुराधपुर सुत्रहत् नगर था। इसका अनुराधना (हिं० क्रि०) प्रार्थना करना, विनय सुनाना, व्यास अनुमान चार कोस रहा होगा। यह नगर विनती लगाना, अज गुज़ारना, मिन्नत दिखाना, सुरम्य सुबृहत् अट्टालिकासे परिपूर्ण रहा। यहांसे भक्ति से ध्यान धरना। राजधानी स्थानान्तरित होने पर इसका ध्वंस आरब्ध 'अनुराधपुर (सं. क्लो०) सिंहल होपमें बौद्धोंका तीर्थ हुवा। किन्तु सिंहलराज पराक्रम-वाहुके (सन् स्थान-विशेष। पहले लोग इसे अनुराध नामसे ११५३-११८८६०) यत्न और चेष्टासे बहुतर अट्टालिका- पुकारते रहे, उसके बाद इस स्थानका नाम अनुराध का सस्कार सधा, उनको मृत्यु बाद यह प्राचीन अनुराधपुरका महाविहार। राजधानी फिर जनशून्य बन जङ्गलसे भर गयो। वेत्ता तलेमो भी इस स्थानको पहचानते थे। विदेशीय गत पचास वत्सरसे अनुराधपुरके ध्वंसावशेष-समूहका लोगोंके मुंहसे इस देशको बात नहीं निकलतो, उद्धार कर सुरक्षा रखनेको व्यवस्था बंधी है। इसीसे वह अनुराधपुरका 'अनुग्रामम्' नाम लिख अनुराधपुर दो दिनका शहर नहीं होता। भूगोल गये हैं। सिहलके :महावंश नामक इतिहासमें
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