अनुमरु-अनुमार्ग ४७४ ६ ठौं दिसम्बरको सहमरण-प्रथा बन्द हुयो। यह कई गुणका समष्टि देख हमने एक-एक वस्तुका संवाद सुन कलकत्तेको धर्मसभाकै शिर वन टूट पड़ा विशेष-विशेष नाम रखा है। जैसे, जल रखनेको था। सभ्योंने विलायतमें अपील लगायौ, किन्तु उससे मिट्टीके बरतनने 'घट' नाम पाया है। पहले जिसने कोई फल न निकला। अनुमरणादिक मन्च और प्रकरण प्रभृतिका एक बार घट देखा, पौछ वैसा ही गुणविशिष्ट वस्तु विवरण अनुमृता शब्दमें देखी। देखनेपर उसे घटको याद आ जाती है। ऐसे स्थलमें अनुमरु (स० पु०) मरुदेशको द्वितीय श्रेणीका प्रदेश, प्रत्यक्ष ज्ञानके भीतर भी अनुमान आ पहुंचता है। जो मुल्क रेगस्तानसे दूसरे दरजेका रहे। प्रत्यक्ष ज्ञानका सही अर्थ पूर्वज्ञान या अभिन्नतासे अनुमा (सं० स्त्री०) अनु-मा-अङ् । व्याप्य हेतु उत्पन्न हुवा ज्ञान है। इसी कारण नैयायिक प्रत्यक्ष द्वारा व्यापक वस्तुका ज्ञान-निश्चय, युक्ति, अनुमिति, | ज्ञानको व्याख्या इसतरह करते हैं, जो स्वत:सिद्ध अनुमान, हवाला, अन्दाज़,चाल । होता और जिसके अस्तित्व विषयमें फिर प्रमाणको अनुमा (स. त्रि०) अनुमाति वा अनुमिमीते वा आवश्यकता नहीं पड़ती, उसोको प्रत्यक्ष ज्ञान अनुमायते, अनु-मा-च । अनुमान करनेवाला, जो समझना चाहिये। स्वतःसिद्ध ज्ञानपर बलस योगसे अन्दाज़ लड़ाये। दूसरा जो नूतन ज्ञान निकलता, वही अनुमान होता अनुमाद्य (सं० स्त्री०) क्रमशः प्रशंसा पानेवाला, है। जैसे-जहां धूम उठता, वहीं अग्नि जलती है। जिसकी तारीफ सिलसिलेवार हो, जो नामके साथ न्यायशास्त्रमें अनुमान-प्रमाणके तीन भेद माने बख्शा जाये। गये हैं,-पूर्ववत् या केवलान्वयी, शेषवत् या व्यतिरेको अनुमान (सं० क्लो०) अनु मा-भावे ल्यु ट । १ व्याप्य और सामान्यतोदृष्ट या अन्वयव्यतिरेको। केवलान्वयो ज्ञान द्वारा व्यापक वस्तुका निश्चय, दिये हुये उन्वान्से कारणसे कार्यका निश्चय करता ; जैसे, धुयेंको देख नतीजेका निकालना। जैसे, धूमको देख अग्नि रहनेका आग जलनेकी बात मनमें आती है। व्यतिरेकीका निश्चय पड़ता है। इस स्थलमें धूम हमारा व्याप्य ज्ञान काम कार्य देख कारणको समझना होता; है; क्योंकि सर्वत्र देखाई देता, कि जहां आग घटसे मिट्टीका खयाल बंधता है। सामान्यतोदृष्ट जलती, वहां धुवां भी उठता है। इसी पूर्वसंस्कारके सामान्य व्यापारसे विशेष व्यापारका अनुसन्धान स्मरणसे आग नज़र न आते भी यदि केवल धुवां देख लगाता ; जैसे, कोई द्रव्य किसी स्थानसे हट दूसरे पड़े, तो हम आगका रहना निश्चित कर लेते हैं। स्थानमें जानेपर उसके वहां पहुंचनेजा विचार सत्य और मिथ्या विचार बांधनेका उपाय दो उठता है। वैदान्तिक अनुमान प्रमाणको नहीं प्रकार होता है, एक प्रत्यक्ष ज्ञान और द्वितीय अनु- मान। अनुमानबलसे दो काम निकलते हैं। प्रथम २ प्रमाण, हवाला, विचार, खयाल, समझ। कोई विषय निजमें समझ सकते ; द्वितीय-कोई विषय ३ अन्दाज़, अटकल । दूसरेको समझा सकते हैं। प्रत्यक्ष ज्ञान निःसन्देह अनुमानना (हिं• क्रि०) अनुमान बांधना, ख्याल अनुमानको बनिखत श्रेष्ठ है ; किन्तु जिसे हम ज्ञान लड़ाना, अन्दाज लगाना, अटकल निकालना। समझते हैं, सर्वत्र ठीक नहीं उतरता। कारण | अनुमानोक्ति (सं० स्त्रो०) तक, ऊह, बहस, मन्तिक । हमें सकल वस्तु भली भांति देखनेको नहीं मिलती। अनुमापक (सं० वि०) प्रमाण पहुंचानेवाला, फल- हम जो देखते, वह केवल कितने ही विशेष गुणका स्वरूप, जो साबित करे, नतीजे-जैसा। समष्टिमात्र रहता है। जैसे, किसी वस्तुका देघा, | अनुमार्ग (सं• अव्य०) मार्गमनतिक्रम्य, अव्ययी। प्रस्थ, गाढ़त्व, दृढ़ता, वर्ण इत्यादि कुछ भी सही १ मार्गको अतिक्रम न कर, मार्गानुरूप, राहको न तौरसे हमारे देखने में नहीं आता। लांघ, राह-राह। २ पथसे पश्चात्, राहसे पोछ। मानते । 2 -
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