सहजमें मृत्यु,
1 उस नामक अनुमरण ४७० सकेगा। पाईन-अकबरी देखो। किन्तु हिन्दू सर्वत्र इस ऊपर विषयका लोभ लगा रहा; कहीं कोई स्त्री कानूनको मान काम न करते रहे। उलानिवासी ज्ञातिशत्रु न बन जाती और सम्पत्तिका एक अंश मुक्ताराम नामक व्यक्तिको मृत्यु होनेसे उसको तेरह छातीपर रख चार युगतक बैठे मौज मारतो! विधवा- स्त्री जल मरी थीं। चिताको अग्नि धक-धक जलती का प्राण बहुत कठिन होता है। एक सन्ध्या निरामिष थी, जब दो स्त्री फिर जा उपस्थित हुयीं। उनमें एक भोजन मिलता और मासके मध्य दो-तीन दिन निर्जल चिताको अग्निमें कूदनेके विचारसे सूर्य प्रभृति उपवास पड़ता, किन्तु उससे भी शरीर नहीं सूखता, देवताको अध्यं देनेका मन्त्र पढ़ने लगी ; उसी बीच नहीं आतो। अतएव यही सोच अनेक हठात् उसके प्राणमें न जाने कैसा भय भर गया। ज्ञाति, अपनी चाची आदिको जबरन जला देते थे, इसी कारण वह श्मशानसे भागनेकी चेष्टा लगाने कि उतनी ज्वालायन्त्रणाकी बनिखत विष-वृक्षका मूल लगी। मुक्तारामके पुत्रने विमाताको पकड़ आगमें पूर्वाह्नमें ही उखाड़ डालना अच्छा रहा। किन्तु यह डाल दिया। अपर स्त्री सतनीको पकड़ने चली, सब काम छिपा न था। लोगोंके मुंहसे गवर्णमेण्ट- मुक्तारामके पुत्रने उसे भी आगमें ढकेल मारा। को सब बात सुनने में आ जाती थी। इसी कारण, समय फोर्ट-विलियम कालेजके पण्डित रमानाथने यह सन् १८०५ ई से पुलिस कुछ सखत पड़ी। विधवाके निष्ठुर व्यवहार अपनी आंखों देखा था। सन् १८२८ इच्छापूर्वक सम्मत न ठहरनेपर कर्ट पक्ष सहमरणको ई० को वों मार्चको जेमस पेगस अनुमति देनेसे दूर रहता था। हिन्दूवोंने भी सोच- अंगरेज़ने एक पुस्तक निकाला। उसका नाम रहा, समझ एक उपाय ढूढ निकाला। ऐसा जान सकनेसे, वृटिश जातिके निकट सतीका क्रन्दन । ( The Sati's कि सहमरणको जाते समय कोई स्त्री इतस्ततः करेगी, ery to Britain.) फेनी पार्कस नानो युरोपीय उसके आत्मीय वजन छिपकर उसे थोड़ी भांग महिलाका भी एक पुस्तक वर्तमान है। पूर्वदेशमें खिलाते थे। कुछ देर बाद भांगसे मन बौरानेपर चौबीस वर्षके भ्रमण बाद यह पुस्तक लिखा गया लोग उससे अनुमति मांगते, स्त्री भी नशेको झोंकमें था। इसका नाम है,-"Wanderings of a Pilg- कुछ न कुछ बता देती। .rim in search of the Picturesque, during इसका कोई ठिकाना नहीं, कि पहले कितनी four and twenty years in the East with हिन्दू महिला पतिको चितापर जल मरौ हैं। Revelation of life in Zanana.” 37 atat जहांगौरके समय जयपुर-महाराज मानसिंहको डेढ पुस्तकमें सहमरणको कहानी लिखी, उसे पढ़ कर हजार स्त्रीमें साठ सहमृता हुयीं, मारवाड़वाले राजा शरीर कांप उठता है। इन्हीं दोनो पुस्तकको देखनेसे | अजित्सिंहके मरने बाद चौहान-राणो, देवडा- मालूम हुवा, हिन्दू सहमरणके निमित्त स्त्रीपर | राणी, तुवर-राणी, चावड़ा-राणी, शेखावती-राणी और कहांतक अत्याचार मचाते थे। अट्ठावन दासी जल मरौ थीं। दाक्षिणात्य और उस समय मनुष्यका मन और विश्वास एवं महाराष्ट्र देशमें भी सहमरणको विलक्षण धूम रही। समाजको अवस्था इस प्रकार नहीं रही। पतिवियोग कहते हैं कि, रामेश्वरके निकट मदुराके नायकको के बाद किसीकी स्त्री सहमृता न होनेपर कलङ्कसे मृत्यु होनेसे उनके साथ ग्यारह हजार स्त्री एक ही देश भर जाता था। पांच आदमी इकट्ठे होनेसे ही चितापर जली थीं। सन् १८४० ई में महाराज नाना प्रकारके दुर्नाम निकालते थे। इसी कारण रणजित् सिंह मरे, उनके साथ संसारचंदकी कन्या चिरकाल कलङ्कका टोकरा शिर पर रखे घूमनेको कुन्दन, नूरपुरवाले. पद्मसिंहकी कन्या हिन्दरी, एवं बनिस्बत स्त्रौहत्या अच्छी रही। लोकगञ्जनाके भयसे जयसिहको कन्या राजकुंवर वसन्तअली यह चार हिन्दू कितनी ही स्त्री जबरन जला देते थे। उसके राी और सात दासौने प्राण छोड़े थे। कर्नल हेनरी 120