अनुमरण ४७५ । पहले चौन-देशमें अनुमरणका चलन कुछ अधिक था। सम्राटको मृत्यु बाद, दास-दासी और दो-चार साथी सङ्गो भी उनके साथ मर जाते, न मरनेपर लोकगञ्जनासे कान फूटने लगते थे। चीनदेशक इतिहासमें लिखा है, कि सन् १६६२ ई० में सम्राट चुच्च मरे थे। रात्रिकाल रहा, इसीसे उस दिन दास- दासी कुछ न बोले। प्रभात हुवा। चीनको फिर किस और देखना था ?-चारो ओर मृत्यु हो मृत्यु रही, मानो एकमरणसे जगत् मर गया ; सम्राटका जो प्यारा था, वही आत्महत्या लगा रहा था। चोनवासियोंको विश्वास है, कि प्रभुके सङ्ग मर जानसे जन्मान्तरमै फिर वही प्रभु मिल जाता है। चीनदेशको स्त्रियां पतिका अनुगमन करनेको गले में फांसी बांध मरती थों। मरनेसे पहले जो धूमधाम मचती, वह विवाहसे भी अधिक पड़ती थी। स्त्री मन-माना वसन भूषण पहन पालकीपर जा चढ़ती, अनुचर वही पालको कन्धेपर रख नगरका फेरा फिराते रहे। जीवनको माया भूल, जन्मके लिये संसारका सुख छोड़ जो पतिके निमित्त मरने जातो, वह छिपकर क्यों मरेगी? यत्नसे जिसे हृदयमें रखते, हृदयमें रख परस्पर प्यार करते, उसके मरनेसे मरना ही पड़ता है। अबला नारीचरित्रका यह वीरत्व पुरुषमें पाना कठिन है। कुलबालिकाओं- को सती साध्वी स्त्रौके पास पहुंच पतिपरायणता सौखना चाहिये। अनुमरणके दिन श्मशान लोगोंको भौड़का ठिकाना न रहता, आशीर्वादके दो-एक चावल और एक टुकड़ा रस्मो पानेके लिये आदमीपर आदमी टटता था। अनुमरणका आयोजन अधिक न लगता रहा। प्रशस्त स्थानमें ऊंचा मचान बंधता, उसपर काला शामि- याना तनता था। मचानको दोनो ओर ऊपर दो खूटे गाड़े जाते जिनमें बांसका लम्बा डण्डा रखते “थे। उसौ डण्डे में रेशमकी रस्मो गला फांसनेको लटकते रहती। स्त्री पालकौपर बैठ मचानके पास पहुंचती, वहां. नाना मुखाद्य इधर-उधर रखा रहता था। स्त्री उसे..खाकर मचानके ऊपरसे आशीर्वादवाले चावल चारो ओर फेंक देती। चावल लूटने के लिये इकट्ठी हुयो भौड़में महा कोला- हल गच जाता था। यह सब बातें पूर्वानुष्ठानको हुयीं। इसके बाद पतिव्रता स्त्री अपने हाथसे गले में फांसी लगा प्राण छोड़तो थो। जब स्त्रीको मृत्यु हो जाती, तब वही फांसोको रस्सो टुकड़े-टुकड़े कर उपस्थित लोगों में बंटती थी। इस विषयके लेखक जनक सम्भ्रान्त युरोपोय रहे। उन्होंने ऐसौ घटना अपनी आंखों देखी थी। यवद्दीपके निकट बलि और लम्बक होपमें आज भी हिन्दू धर्मका कुछ-कुछ आभास नजर आता है। हिन्दू धर्मके प्रधान प्रधान अस्थिपञ्जरमें सहमरणका बड़ा अङ्ग है। बलि और लम्बक होपमें आजतक यह प्रथा ठण्डी नही पड़ी। वहांके बर्धिष्णु लोगोंके मरने- पर विधवा स्त्री पतिको ज्वलन्त चितामें जल जाती है। किन्तु साधारण लोगोंके अनुमरणको व्यवस्था दूसरी तरहको है। सामान्य घरकी स्त्रीके विधवा होनेपर पहले उसे कुरी घुसेड़ मारना पड़ता, पौछे उसकी मृतदेहका सत्कार साधते हैं। ऐसे ही सहमरणके समय एक बार कोई युरोपीय वहां उपस्थित रहे, उन्होंने खड़े हो आदिसे अन्ततक सब व्यापार अपनी आंखों देखा था। घटनाका हाल यह है- अम्पनम नगरमें कोई दरिद्र व्यक्ति मर गया था। उसके तीन स्त्री रहों। उनमें सर्वकनिष्ठा अनुमरणके निमित्त प्रस्तुत हुयौ। उसके पिता, माता, श्वशुर, सास सबने कितना हो समझाया, कितना ही निषेध किया ; किन्तु उसने किसीको ‘बात न सुनी। चिरकाल मनको आगसे क्रमशः जलवे रहनेको बनिखत, एकबारगी हो प्राण छोड़ देना अच्छा होता है। सतीने अनुमरणका आयोजन लगाया। खामिवियोगके दूसरे दिन उसने सानादि संभाल उत्तम वस्त्रालङ्कार पहना और आत्मीय खजनके मुलाकात करने पानेपर वह सबसे मिली-जुली। अन्तको पूर्वाह्न देवार्चनामें बीता, अपराह्न चार बजे उसके खामोको मृतदेह बाहर निकली। पुरोहित
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